जोशीमठ में आपदा से पहले जैसी शांति: लौट चुके हैं मीडिया के कैमरे और सरकार ने भी एक तरह से फेर ली हैं आंखें

जोशीमठ में धंसान धीरे-धीरे बढ़ता ही जा रहा। हिमालय की वजह से पूरा उत्तराखंड भूकम्प की दृष्टि से संवेदनशील है। इसलिए भविष्य अनिश्चित है। और अब तो मीडिया के कैमरे भी लौट गए हैं और सरकार की तरफ से भी एक तरह की खामोशी है।

फोटो - सोशल मीडिया
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त्रिलोचन भट्ट

विरोध-प्रदर्शनों, सरकारी बैठकों, टीवी टीमों और यूट्यूबरों के दरार वाली दीवारों और फर्श तथा ढह रही छतों के चित्र खींचने और लोगों के इंटरव्यू करने के कुछ हफ्तों की गहमागहमी के बाद जोशीमठ अब शांत है। प्रभावित लोगों की मदद के लिए जोशीमठ का दौरा करने वाले अधिकारी, वैज्ञानिक, मीडिया और एनजीओ वगैरह से जुड़े सोशल ऐक्टिविस्ट जा चुके हैं। कुछ बाकी हैं तो सेंटीमीटर-दर सेंटीमीटर, इंच-दर-इंच बढ़ रही दरारें और इससे प्रभावित-आशंकित लोगों की परेशानियां।

इसकी गति का अंदाजा इस बात से लगा सकते हैं कि स्थानीय लोगों ने 20 साल पहले 2003 में एनटीपीसी के तपोवन-विष्णुगाड पावर प्लांट के खिलाफ प्रदर्शन किया था। इस परियोजना से क्या कुछ हो सकता है, इसे लेकर आशंका जताते हुए राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री तक को ज्ञापन दिए गए। इन 20 वर्षों बाद वे आशंकाएं सच साबित हो रही हैं।

इस बीच यह अफवाह भी फैल रही है कि सेना जोशीमठ में तैनात सैन्य ब्रिगेड को यहां से अन्यत्र ले जाने की गंभीरता से योजना बना रही है। जब तक सेना या सरकार इस बारे में कुछ नहीं कहती, निश्चित तौर पर यह अफवाह ही है लेकिन इससे आम लोगों में एक किस्म का आतंक तो फैल ही रहा है। यहां के लोगों के लिए यह बड़ा नैतिक बल तो रहा ही है कि सेना उनके आसपास ही है। अगर किसी भी कारण से ब्रिगेड यहां से हटाई जाती है, तो यहां के लोगों का यह भरोसा किस तरह दरकेगा, इसकी कल्पना ही की जा सकती है।

जोशीमठ के लंबे इतिहास की बात बार-बार की जाती है। आम तौर पर धारणा है कि 8वीं शताब्दी में जिस 'कल्पवृक्ष' के नीचे आदि शंकराचार्य ने ध्यान लगाया था, वह 2,200 साल पुराना है। करीब 1,000 साल पहले जोशीमठ में भूस्खलन और धंसान हुआ था और उसके बाद 1975-76 में। कोई नहीं जानता कि अगली त्रासदी कब होगी। अभी जो कुछ हो रहा है, उसे देखते हुए लगता तो यही है कि बिना सोचे-विचारे, आकलन किए लागू कर दी गई विकास योजनाओं की वजह से कभी भी कुछ भी भयानक हो सकता है।


प्रदेश बीजेपी अध्यक्ष महेंद्र भट्ट के बयान को लेकर इन दिनों जोशीमठ के साथ ही राज्यभर के लोगों में गुस्सा है। महेंद्र भट्ट अपने विवादास्पद बयानों के लिए सुर्खियों में रहते रहे हैं। उदाहरण के लिए, जब वह विधायक थे, तो कोविड के दौर में, मार्च, 2020 में उन्होंने कोविड से बचाव के लिए सुबह दो चम्मच गौमूत्र पीने के साथ ही गाय के गोबर की राख को पानी में मिलाकर उसे छानकर उस पानी से नहाने की सलाह दी थी। उसी दौरान उन्होंने पहाड़ के लोगों को सलाह दी थी कि वे नजीमाबाद से आने वाली सब्जियां न खरीदें और यह भी देख लें कि जो सब्जी वे खरीद रहे हैं, वह किसकी दुकान की है।

वह पिछले विधानसभा चुनाव में हार गए। लेकिन जिस तरह के बयानों पर आमतौर पर लोग उनका मजाक उड़ाते हैं, उनकी जानकारी के बावजूद बीजेपी ने उन्हें प्रदेश अध्यक्ष बना दिया। पिछले वर्ष जब आजादी के अमृत महोत्सव में घर-घर तिरंगा अभियान चलाया जा रहा था, भट्ट ने यह कहकर एक तरह से लोगों को डराया कि जो तिरंगा नहीं लगाएगा, वह हमारा नहीं है। उन्होंने कार्यकर्ताओं से ऐसे घरों की तस्वीरें भेजने को भी कहा जिन पर तिरंगा नहीं लगाया गया हो। इस पर कई लोगों ने भट्ट को आरएसएस के नागपुर मुख्यालय की याद दिलाई जहां वर्षों तक तिरंगा नहीं फहराया गया।

इस बार भी महेंद्र भट्ट का बयान लोगों को ठेस पहुंचाने वाला साबित हुआ। उन्होंने जोशीमठ में पुनर्वास, विस्थापन और एनटीपीसी की कार्यप्रणाली को लेकर आंदोलन करने वालों को माओवादी और चीन का मददगार बता दिया। इस बयान पर जोशीमठ ही नहीं, पूरे राज्य में बवाल हो गया। जोशीमठ में तो उनके पुतले भी फूंके गए।

जोशीमठ बचाओ संघर्ष समिति के संयोजक और सोशल ऐक्टिविस्ट अतुल सती की मानें तो यह बयान दरअसल भट्ट ने 27 जनवरी के मद्देनजर तैयार किया गया था क्योंकि उस दिन जोशीमठ के लोगों ने एनटीपीसी के कार्यालय का घेराव करने का ऐलान किया था। सती का मानना है कि बीजेपी का इरादा अपने कार्यकर्ता भीड़ में भेजकर पथराव करवाने का था। उसके बाद लाठीचार्ज और गिरफ्तारियां होतीं और ठीक उसी वक्त महेन्द्र भट्ट को यह बयान देना था।

जोशीमठ संघर्ष समिति के सदस्य और पूर्व सभासद प्रकाश नेगी कहते हैं कि 26 जनवरी की रात समिति को पता चल गया कि बीजेपी ने आंदोलन को बदनाम करने का षड्यंत्र रचा है। इस वजह से एनटीपीसी का घेराव करने का इरादा बदल दिया गया और जोशीमठ की सड़कों पर ही जुलूस निकालने की बात तय हुई।

27 जनवरी को करीब 6 हजार लोग जोशीमठ की सड़कों पर उतरे। जुलूस शांतिपूर्ण रहा। उस दिन भट्ट जोशीमठ में नहीं थे। जोशीमठ आंदोलन में सक्रिय महादीप पंवार मानते हैं कि भट्ट का यह बयान उपद्रव करवाने के बाद के लिए था लेकिन उपद्रव हुआ नहीं, तो उन्होंने इसे बेमौके दे दिया। इसीलिए एक दिन बाद ही उन्हें कहना पड़ा कि माओवादी उन्होंने गलती में कह दिया। लेकिन घाव पर मरहम लगाने का उनका यह प्रयास सफल नहीं हो पाया।


सर्दी के सीजन में बर्फबारी का लुत्फ उठाने के लिए काफी संख्या में लोग जोशीमठ आते हैं। औली में इस सीजन में बर्फ आम तौर पर रहती ही है। लेकिन इस बार भूधंसाव और दरारें आने की सूचनाओं की वजह से काफी कम लोग जोशीमठ पहुंचे। डिजास्टर टूरिज्म के शौकीनों का डेरा भी जोशीमठ में कुछ दिन तक ही रहा। दरअसल, मीडिया के कैमरे के साथ ही डिजास्टर टूरिज्म के शौकीन टूटते पहाड़ों और ढहते घरों को देखकर प्रसन्न होते हैं। जोशीमठ क्योंकि एक झटके में नहीं, बल्कि धीरे-धीरे धंस रहा है इसलिए आखिर, वे कब तक इंतजार करते।

मैं जब भी जोशीमठ आता हूं तो सिंहधार के काफल होम स्टे में रुकता हूं। पिछले वर्ष 3 फरवरी को मैं जोशीमठ में था तो इस होमस्टे में एक भी कमरा खाली नहीं था। ठीक उसी दिन जोशीमठ में बर्फ गिरी थी और अगले दिन शहर में पर्यटकों का रेला उमड़ आया था। इस बार काफल होमस्टे के संचालक शिवराम सिंह ने कहा कि इस साल इस सीजन में जोशीमठ में सब चौपट है। औली से सैकड़ों लोगों की रोजी-रोटी चलती है। होटल और गेस्ट हाउस चलाने वालों के साथ ही यहां बर्फ में चलने के लिए जरूरी साजोसामान किराये पर उपलब्ध करने वाले भी दर्जनों युवक इस बार खाली बैठे हैं। बर्फ में चलने वाले जूते, हेलमेट आदि किराये पर देने वाले राघव ने भी कहा कि दिनभर में एक भी टूरिस्ट नहीं आ रहा है।

अब, जब जोशीमठ को किसी दूसरी जगह विस्थापित करने की बात हो रही है, तो ऐसे में सवाल उठाया जा रहा है कि किसी दूसरी जगह जाकर लोगों की रोजी-रोटी का क्या होगा? जोशीमठ के लोगों की रोजी-रोटी का मुख्य आधार बदरीनाथ और हेमकुंड की यात्रा और औली के साथ ही आसपास के क्षेत्रों में आने वाले ट्रैकर्स हैं। यहां से दूसरी जगह जाकर लोग क्या करेंगे, इस सवाल का जवाब किसी के पास नहीं है। यही वजह है कि जोशीमठ बचाओ संघर्ष समिति पुनर्वास और विस्थापन के बजाय एनटीपीसी को वापस भेजने की बात कह रही है।

10 फरवरी, 2021 को भी मैं जोशीमठ में था। उससे 3 दिन पहले, यानी 7 फरवरी, 2021 की सुबह ऋषिगंगा में अचानक बाढ़ आ गई थी। ग्लेशियर टूटने से आई इस बाढ़ से रैणी में एनटीपीसी का पावर हाउस ध्वस्त हो गया था और तपोवन में एनटीपीसी की निर्माणाधीन टनल में सैकड़ों मजदूर फंस गए थे। बाद के दिनों में 200 से ज्यादा लोगों की मौत की बात कही गई। कई लोगों के तो शव भी नहीं मिल पाए। करीब 4 महीने बाद जून, 2021 में भारी बारिश के कारण नीती घाटी में फिर कई जगह भूस्खलन हुआ था और चीन बॉर्डर तक सैनिकों का रसद पहुंचाने वाली सड़क पूरी तरह ध्वस्त हो गई थी तथा नीती घाटी के दर्जनभर गांव भी बाकी दुनिया से कट गए थे।


इन दोनों घटनाओं- यानी 7 फरवरी, 2021 को ऋषिगंगा के जल प्रलय और जून, 2021 की अतिवृष्टि का जिक्र इसलिए जरूरी है कि आज जोशीमठ में जो हालात हैं, उनकी शुरुआत दरअसल यहीं से होती है। फरवरी, 2021 में जोशीमठ से तपोवन होकर रैणी जाते हुए मुख्य सड़क पर कई दरारें देखी गई थीं। जून, 2021 में भारी बारिश के बाद तपोवन से होकर रैणी जाते वक्त ये दरारें और चौड़ी हो गई दिखी थीं। कुछ जगहों पर सड़क धंस भी गई थी।

जोशीमठ के ऊपरी हिस्से के सुनील गांव के दुर्गा प्रसाद सकलानी उनके दो भाइयों के परिवारों के घर की दीवारें, छत और आंगन बुरी तरह दरक गए हैं। दुर्गा के अनुसार, वे घर की दरारों को लेकर अक्तूबर, 2021 से लगातार अधिकारियों के चक्कर लगाते रहे लेकिन कोई कुछ सुनने को तैयार नहीं। एक ने तो कह दिया कि तुमने बुनियाद ही कच्ची डाली होगी।

दुर्गा प्रसाद ने कहा, अब जब जोशीमठ का एक बड़ा हिस्सा धंसने लगा और लोगों के घरों के अलावा कुछ बड़े होटल भी दरकने लगे हैं तो एसडीएम पहली बार हमारा घर देखने आईं। हमें अन्यत्र जगह दी गई है। परिवार के लोग रात को वहीं जा रहे हैं, दिन में घर आते हैं। लेकिन पूरे दिन कोई-न-कोई पुलिस वाला या कोई-न-कोई अधिकारी-कर्मचारी आकर अभी घर खाली करने की हिदायत दे जाता है। वह कहते हैं कि 'मैं अपनी पत्नी का अभी देहरादून में ऑपरेशन करवाकर लौटा हूं। हमारे 14 मवेशी हैं, उन्हें कहां रखें।' पास खड़ी उनकी 22 वर्षीय बेटी पिता को सांत्वना देने के प्रयास में खुद फफक पड़ती है।

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