बाबरी और ज्ञानवापी पर पूर्व सीजेआई चंद्रचूड़ के ताजा इंटरव्यू से तूफान
पूर्व मुख्य न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़ ने अयोध्या फैसले पर हाल के एक इंटरव्यू में जो कुछ कहा है, उससे तूफान खड़ा हो गया है। उन्होंने कहा कि हिंदुओं द्वारा मस्जिद तोड़ा जाना तो गलत था, लेकिन असली विध्वंस तो 1526 में मुसलमानों द्वारा किया गया था। की गई थी।

पूर्व मुख्य न्यायाधीश जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़ बीते काफी दिनों से लगातार किसी न किसी को इंटरव्यू दे रहे हैं। इस दौरान वह तमाम ऐसे सवालों के जवाब दे रहे हैं जो जज के रूप में उनके अनुभवों और न्यायपालिका की कार्य व्यवस्था से जुड़े हुए हैं। ज्यादातर इंटरव्यू के दौरान बिरले ही पूर्व सीजेआई से ऐसे सवाल पूछे गए हैं जो असहज करने वाले हों। लेकिन न्यूजॉन्ड्री-न्यूजमिनट के लिए श्रीनिवासन जैन के साथ इंटरव्यू में उनसे ऐसे कई सवाल पूछे गए जिनके जवाब देने में वे उलझे हुए नजर आए। श्रीनिवासन जैन ने उनसे वह सवाल भी पूछा कि उन्होंने गणपति पूजा में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को क्यों आमंत्रित किया था, जिसके जवाब में उन्होंने कहा कि उच्च संवैधानिक पदों पर आसीन लोग अकसर ऐसे मौकों पर एक दूसरे से मिलते हैं और यह एक दूसरे के प्रति सम्मान जताने का एक तरीका भर है।
सवालों की ऐसी ही कड़ी में उनसे कई विवादास्पद फैसलों पर भी प्रतिक्रिया मांगी गई, जिनमें अयोध्या का फैसला, हिंदुओं को पूजा का अधिकार देने का फैसला और ज्ञानवापी मस्जिद में पुरात्तव विभाग के सर्वे का फैसला भी शामिल है। इसके अलावा जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 की समाप्ति के बाद सुप्रीम कोर्ट द्वारा केंद्र के इस आश्वासन को स्वीकार करने का भी सवाल था कि किस तरह कोर्ट ने यह मान लिया कि लद्दाख और जम्मू-कश्मीर को राज्य का दर्जा दे दिया जाएगा।
इंटरव्यू के दौरान श्रीनिवासन जैन ने जब अयोध्या मामले पर सवाल पूछा तो जस्टिस चंद्रचूड़ का जोर इस बात पर था कि फैसला आस्था पर नहीं बल्कि सबूतों के आधार पर दिया गया था। लेकिन जब यह पूछा गया कि 1949 में तो हिंदुओं ने बाबरी मस्जिद को नुकसान पहुंचाया था, इसकी सजा तो हिंदू पक्ष को नहीं दी गई, तो जस्टिस चंद्रचूड़ का तर्क था कि बाबरी मस्जिद का 1526 में मस्जिद का निर्माण बुनियादी तौर पर एक विध्वंस कार्य के बाद किया गया था, क्योंकि इसका निर्माण एक पहले से मौजूद धार्मिक ढांचे को तोड़कर किया गया था।
श्रीनिवासन जैन ने इस ओर इशारा किया कि अयोध्या फैसले में तो सुप्रीम कोर्ट ने खुद ही कहा है कि इस बात का कोई पुरात्तव सबूत नहीं मिला कि बाबरी मस्जिद का निर्माण किसी पहले से मौजूद ढांचे को तोड़कर किया गया है। इसके अलावा जिस भी ढांचे के अवशेष खुदाई में मिले वह तो किसी भी ढांचे के हो सकते हैं और बाबरी मस्जिद के निर्माण और उस ढांचे के टूटने के बीच में कई सदियों का फासला है। श्रीनिवासन जैन ने कहा कि वह ढांचा तो किसी भी कारण से टूट गया हो सकता है।
लेकिन इस तर्क के बावजूद पूर्व सीजेआई ने अपने दावे को दोहराया कि 16वीं शताब्दी में बाबरी मस्जिद का निर्माण दरअसल विध्वंस की बुनियादी कार्रवाई थी न थी 1992 में हिंदुओं द्वारा बाबरी मस्जिद को तोड़ा जाना।
श्रीनिवासन जैन ने इस ओर ध्यान दिलाया कि अयोध्या मामले में आए फैसले में हिंदुओं द्वारा की गई हिंसा की जघन्य घटना को स्वीकार किया गया था; इस फैसले ने चिंताएं पैदा कीं, क्योंकि सुप्रीम कोर्ट ने यह स्वीकार करने के बाद कि 1992 में हिंदुओं ने जो किया वह गलत था, फिर भी पूरे क्षेत्र को हिंदुओं को सौंप दिया।
लेकिन पूर्व मुख्य न्यायाधीश ने दावा किया कि मुस्लिम पक्ष, जिनके पास ज़मीन का 'अधिकार' नहीं था (न ही हिंदू पक्ष के पास था), यह साबित करने में भी नाकाम रहा कि मस्जिद पर उनका 'निरंतर और निर्विवाद' कब्ज़ा था। उन्होंने आगे दावा किया कि अदालतों और दलीलों के रिकॉर्ड साबित करते हैं कि अयोध्या में बाबरी मस्जिद को लेकर हमेशा विवाद रहा, लेकिन किसी ने भी मस्जिद के बाहरी प्रांगण में हिंदुओं द्वारा पूजा करने पर कभी आपत्ति नहीं जताई, जिससे उनका मामला मज़बूत हुआ।
इस जवाब पर हैरान श्रीनिवासन जैन ने कहा कि जहां हिंदुओं ने उपद्रव और तोड़फोड़ की, और मुसलमानों के रास्ते में रुकावटें खड़ी कीं, वहीं अदालत ने मुसलमानों को ही गैरकानूनी गतिविधियों में शामिल न होने, उपद्रव न करने और कोई तोड़फोड़ न करने के लिए सज़ा दे दी। लेकिन जस्टिस चंद्रचूड़ ने फिर से इसका खंडन करते हुए '1526 में मुसलमानों द्वारा की गई अपवित्रीकरण की पहली, मौलिक घटना' का ज़िक्र किया।
न्यूज़लॉन्ड्री और न्यूज़मिनट के सब्सक्राइबर्स को भेजे एक न्यूज़लेटर में, जैन लिखते हैं, "अशिष्ट लगने के जोखिम के बावजूद, मुझे लगता है कि मैं पूर्व मुख्य न्यायाधीश पर दबाव डालने में कामयाब रहा – यहां तक कि उनके करियर के कुछ सबसे महत्वपूर्ण फैसलों के बारे में तथ्यों की जांच भी कर पाया – जैसा उन्होंने शायद ही कभी किया हो। इसका नतीजा एक ऐसा इंटरव्यू है जो चुभता है – और कुछ खुलासे भी करता है। अयोध्या का मामला ही लीजिए। जैसे ही मैंने उनसे पूछा कि अदालत ने हिंदुओं को अपवित्र करने का दोषी मानने के बावजूद फैसला मुसलमानों के खिलाफ क्यों दिया गया, तो वे अचानक वे एक ऐसे रास्ते पर चले गए और ऐसा जवाब दिया जो और भी उत्तेजक था क्योंकि उन्होंने फैसले में दर्ज सबूतों को भी बड़ी आसानी से नज़रअंदाज़ कर दिया।”
25 सितंबर को इंटरव्यू के कुछ अंश पोस्ट करते हुए जैन लिखते हैं, "मैंने जस्टिस चंद्रचूड़ से पूछा कि उन्होंने बनारस की ज्ञानवापी मस्जिद के सर्वेक्षण की अनुमति क्यों दी, जबकि कानून धार्मिक ढांचों के स्वरूप में किसी भी तरह के बदलाव पर रोक लगाता है। इस पर उन्होंने कहा कि ऐसा इसलिए क्योंकि यह "निर्विवाद" है कि मस्जिद के तहखाने में "सदियों से" पूजा होती रही है। यह तथ्यात्मक रूप से असत्य है। मस्जिद ट्रस्ट ने तहखाने में नमाज़ पढ़ने के दावे का सार्वजनिक रूप से और अदालत में लगातार खंडन किया है।
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