न्यायपालिका में सुधार नहीं, बल्कि क्रांति के लिए आ चुका है ‘संवैधानिक क्षण’: जस्टिस गोगोई

सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ जज जस्टिस रंजन गोगोई ने कहा कि न्यायपालिका को आम आदमी की सेवा के लायक बनाए रखने के लिए इसमें सुधार नहीं, क्रांति लाने की जरूरत है। उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि न्यायपालिका को आगे बढ़कर और अधिक सक्रिय भूमिका निभानी चाहिए।

फोटोः सोशल मीडिया
फोटोः सोशल मीडिया
user

नवजीवन डेस्क

राजधानी दिल्ली में गुरुवार को तीसरे रामनाथ गोयनका स्मृति व्याख्यान में ‘न्यायिक दृष्टि’ विषय पर बोलते हुए सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ न्यायाधीश न्यायमूर्ति रंजन गोगोई ने कहा कि न्यायपालिका को आम आदमी की सेवा के योग्य बनाए रखने के लिए सुधार की नहीं, एक क्रांति की जरूरत है। इसके साथ ही जस्टिस गोगोई ने इस बात पर भी जोर दिया कि न्यायपालिका को और अधिक सक्रिय भूमिका निभानी होगी।

अपने व्याख्यान में जस्टिस गोगोई ने ‘दो भारत’ का जिक्र किया। उन्होंने दो भारत के बीच असमानता का जिक्र करते हुए कहा कि आज उस संवैधानिक क्षण की आवश्यक्ता है, जो अभी तक लंबित है। उन्होंने कहा कि एक भारत ऐसा है जो इसे एक नई व्यवस्था के तौर पर मानता है जबकि दूसरा भारत वह है जो बेतुके ढंग से खींची गई गरीबी रेखा के नीचे जिंदगी बसर करता है। उस भारत में रहने वाला दिहाड़ी मजदूरी कर अपना पेट पालता है, फुटपाथों और रैनबसेरों में रात काटता है। उसके लिए अदालतें ही उम्मीद की एकमात्र किरण हैं। जस्टिस गोगोई ने कहा कि दोनों आज संघर्ष की स्थिति में हैं। जस्टिस गोगोई के मुताबिक, आज उस संवैधानिक क्षण का समय आ गया है जो काफी समय से लंबित है।

जस्टिस गोगोई ने हाल की कुछ घटनाओं का जिक्र करते हुए कहा, “क्या यही संवैधानिक नैतिकता की धारणा है जो दिल्ली सरकार बनाम एलजी के मामले में देखने को मिली और अब सुप्रीम कोर्ट में धारा 377 पर चल रही सुनवाई में देखी जा रही है।”

जस्टिस गोगोई ने कहा कि आजादी के 50 साल बाद हम आज तक न्यायपालिका की गंभीर व्यवस्था को आगे बढ़ा रहे हैं। लेकिन आज हम एक ऐसी स्थिति में आ गए हैं, जहां कोर्ट में ट्रायल शुरू होने से पहले ही एक ट्रायल होने लगता है। उन्होंने कहा कि यह हमारी सामूहिक विफलता है, लेकिन क्या यह कानून और राष्ट्र के लिए चिंता का विषय नहीं है कि हम समावेशी के भाव को भी खत्म कर रहे हैं। जस्टिस गोगोई ने कहा कि हमें एक सुधार की नहीं बल्कि एक क्रांति की जरूरत है।

गौरतलब है कि इस साल के शुरू में न्यायमूर्ति गोगोई ने सुप्रीम कोर्ट के अन्य तीन न्यायधीश जे चेलमेश्वर (रिटायर), मदन बी लोकुर और कुरियन जोसफ के साथ एक अभूतपूर्व कदम के तहत प्रेस कॉंफ्रेंस कर कुछ मामलों पर चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा की कार्यप्रणाली को लेकर सवाल उठाए थे। प्रेस कांफ्रेंस में इन जजों ने प्रधान न्यायाधीश दीपक मिश्रा के नाम लिखे अपने पत्र को भी सार्वजनिक किया था।

इंडियन एक्सप्रेस अखबार के संस्थापक रामनाथ गोयनका के निधन के 25 साल पूरे होने पर 2016 में रामनाथ गोयनका स्मृति व्यख्यान की शुरुआत हुई थी। प्रथम रामनाथ गोयनका स्मृति व्याख्यान भारतीय रिजर्व बैंक के गवर्नर रघुराम राजन ने दिया था। मई 2017 में आयोजित द्वितीय व्याख्यान पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने दिया था।

Google न्यूज़नवजीवन फेसबुक पेज और नवजीवन ट्विटर हैंडल पर जुड़ें

प्रिय पाठकों हमारे टेलीग्राम (Telegram) चैनल से जुड़िए और पल-पल की ताज़ा खबरें पाइए, यहां क्लिक करें @navjivanindia


Published: 13 Jul 2018, 2:49 PM