अयोध्या केस में फैसला देने वाले तीसरे जज हैं अब्दुल नजीर, जिन्हें रिटायरमेंट के बाद मोदी सरकार से मिला बड़ा पद

अयोध्या केस के अलावा भी जस्टिस एस अब्दुल नजीर कई ऐसे केस के फैसले में शामिल थे जो वर्तमान केंद्र सरकार के लिए महत्वपूर्ण थे, जिसमें इसी साल नोटबंदी पर आया फैसला शामिल है। इसके अलावा तीन तालक केस की सुनवाई और फैसला देने वाली पीठ में वह शामिल थे।

फोटोः सोशल मीडिया
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नवजीवन डेस्क

राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने रविवार को महाराष्ट्र, बिहार, लद्दाख और आध्र प्रदेश समेत देश के 13 राज्यों में नए राज्यपालों की नियुक्ति का आदेश जारी किया है। इस लिस्ट में सुप्रीम कोर्ट के पूर्व न्यायाधीश एस अब्दुल नज़ीर का भी नाम शामिल है, जिन्हें आंध्र प्रदेश का राज्यपाल नियुक्त किया गया है। वह एक महीने पहले ही 4 जनवरी को शीर्ष अदालत से सेवानिवृत्त हुए थे। अयोध्या केस में फैसला देने वाली पीठ में शामिल जस्टिस एस अब्दुल नजीर रिटायर होने से ठीक पहले उस बेंच का हिस्सा थे, जिसने नोटबंदी पर सुनवाई की थी और मोदी सरकार के नोटबंदी के फैसले को सही ठहराया था। जस्टिस नजीर तीन तलाक के खिलाफ फैसला देने वाली सुप्रीम कोर्ट बेंच के भी सदस्य थे।

अयोध्या केस के तीसरे जज, जिन्हें मिला बड़ा पद

लेकिन आज की नियुक्ति में सबसे खास बात यह है कि आंध्र प्रदेश के राज्यपाल बनाए गए सुप्रीम कोर्ट के रिटायर्ट जस्टिस अब्दुल एस नजीर अयोध्या विवाद में फैसला देने वाली पीठ में शामिल तीसरे ऐसे जज हैं, जिन्हें मोदी सरकार ने सेवानिवृत्ति के बाद किसी बड़े पद से नवाजा है। उनसे पहले अयोध्या केस में पीठ की अध्यक्षता करने वाले न्यायमूर्ति रंजन गोगोई को सेवानिवृत्ति के तुरंत बाद राज्यसभा का सदस्य बनाया गया था और जुलाई 2021 में सेवानिवृत्त हुए न्यायमूर्ति अशोक भूषण को उसी वर्ष बाद में राष्ट्रीय कंपनी कानून अपीलीय न्यायाधिकरण का प्रमुख बनाया गया था।


राज्यपाल बनने वाले शीर्ष कोर्ट के चौथे रिटायर्ड जज

जस्टिस अब्दुल नज़ीर आज़ाद भारत के इतिहास में सुप्रीम कोर्ट के चौथे रिटायर्ड जज होंगे जिन्हें राज्यपाल बनाया जाएगा। न्यायमूर्ति एस फजल अली को 1952 से 54 तक उड़ीसा का राज्यपाल और फिर 1956 से 59 तक असम का राज्यपाल बनाया गया था। जस्टिस फातिमा बीवी को सुप्रीम कोर्ट से उनकी सेवानिवृत्ति के पांच साल बाद 1997 में तमिलनाडु का राज्यपाल बनाया गया था। इसी तरह मोदी सरकार ने सेवानिवृत्ति के तुरंत 2014 में भारत के पूर्व मुख्य न्यायाधीश पी. सदाशिवम को केरल का राज्यपाल नियुक्त किया था।

नजीर समेत पूरी पीठ ने राम मंदिर के हक में दिया था फैसला

जस्टिस नजीर अयोध्या राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद विवाद की सुनवाई करने वाले पांच जजों की पीठ में शामिल थे। सुप्रीम कोर्ट की इस पीठ ने 9 नवंबर, 2019 को राम मंदिर के हक में फैसला दिया था। जस्टिस एस. अब्दुल नजीर ने रिटायरमेंट के मौके पर कहा था कि वह चाहते तो अयोध्या विवाद में बाकी चार जजों के उलट अपनी राय रखकर अपने समुदाय का हीरो बन जाते, लेकिन उन्होंने देशहित को सर्वोपरि समझा। गौरतलब है कि सुप्रीम कोर्ट की पीठ में शामिल सभी पांचों जजों ने एकमत से अयोध्या में राम मंदिर निर्माण के पक्ष में फैसला दिया था।


कई अहम मामलों की सुनवाई में रहे शामिल

अयोध्या केस के अलावा भी जस्टिस एस अब्दुल नजीर कई ऐसे मामलों की सुनवाई में शामिल थे जो वर्तमान केंद्र सरकार के लिए महत्वपूर्ण थे, जिसमें इस साल 2 जनवरी को नोटबंदी पर आय़ा फैसला भी शामिल है। इसके अलावा तत्काल ट्रिपल तालक मामले में भी उन्होंने असहमति जताते हुए कहा था कि यह प्रथा अमान्य नहीं है। जस्टिस नज़ीर ने दिसंबर 2021 में, अखिल भारतीय अधिवक्ता परिषद (संघ परिवार से संबद्ध) की 16वीं राष्ट्रीय परिषद की बैठक में 'भारतीय कानूनी प्रणाली के उपनिवेशीकरण' पर बात की थी। उन्होंने कहा था कि भारतीय कानूनी प्रणाली औपनिवेशिक है, जो भारतीय आबादी के लिए उपयुक्त नहीं है। समय की मांग कानूनी प्रणाली का भारतीयकरण है। 

कौन हैं जस्टिस एस. अब्दुल नजीर?

जस्टिस एस. अब्दुल नजीर कर्नाटक में दक्षिण कन्नड़ जिले के एक गांव से आते हैं। एस. अब्दुल नजीर जब काफी छोटे थे, तभी उनके पिता का निधन हो गया था। स्कूली शिक्षा के दौर में ही उनके ऊपर पारिवारिक जिम्मेदारी आ गई थी। उन्होंने ग्रैजुएशन पूरा करने के बाद लॉ डिग्री ली और कर्नाटक की अदालतों में वकालत की प्रैक्टिस शुरू की थी।

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