जस्टिस वर्मा की बढ़ी मुश्किलें, महाभियोग के लिए दोनों सदन में नोटिस दिए गए, 200 से ज्यादा सांसदों के हस्ताक्षर
इस साल मार्च में दिल्ली में जस्टिस वर्मा के आवास में आग लगने की घटना में घर के बाहरी हिस्से में एक स्टोररूम से जली हुई नकदी से भरी बोरियां मिली थीं। उस समय वर्मा दिल्ली हाईकोर्ट में पदस्थ थे। सुप्रीम कोर्ट की जांच में न्यायमूर्ति वर्मा को दोषी पाया गया है।

इलाहाबाद हाईकोर्ट के न्यायाधीश यशवंत वर्मा को दिल्ली हाईकोर्ट का जज रहते सरकारी आवास से भारी मात्रा में नकदी मिलने के मामले में पद से हटाने के प्रस्ताव से संबंधित नोटिस सोमवार को लोकसभा और राज्यसभा में दिए गए। लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला को सौंपे गए नोटिस पर कुल 145 सदस्यों ने हस्ताक्षर किए हैं। राज्यसभा के सभापति जगदीप धनखड़ को सौंपे गए नोटिस पर 63 सांसदों ने हस्ताक्षर किए हैं।
निचले सदन में अनुच्छेद 124, 217 और 218 के तहत नोटिस दिए गए हैं। नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी, बीजेपी के वरिष्ठ नेता रविशंकर प्रसाद, अनुराग ठाकुर, कांग्रेस के संगठन महासचिव केसी वेणुगोपाल, राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (एसपी) की सुप्रिया सुले और बीजेपी के राजीव प्रताव रूड़ी समेत कई अन्य सदस्यों ने भी इस पर हस्ताक्षर किए हैं। प्रसाद ने कहा, ‘‘न्यायपालिका की ईमानदारी, पारदर्शिता और स्वतंत्रता तभी सुनिश्चित होगी, जब न्यायाधीशों का आचरण अच्छा होगा। आरोप संगीन थे और ऐसे में महाभियोग के लिए नोटिस दिया गया है। हमने आग्रह किया है कि कार्यवाही जल्द शुरू होनी चाहिए।’’
कांग्रेस सांसद सैयद नासिर हुसैन ने कहा कि कुल 63 सांसदों ने हस्ताक्षर किए हैं और अब इस मामले की जांच होगी और दोषी पाए जाने पर संबंधित न्यायाधीश को हटाया जाएगा। उन्होंने कहा कि इस मामले पर विपक्षी ‘इंडिया’ गठबंधन के घटक एकजुट हैं। हुसैन ने कहा कि आम आदमी पार्टी ने भी इस नोटिस पर हस्ताक्षर किया है और तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) के सदस्य सोमवार को सदन में मौजूद नहीं थे, लेकिन वे इस मुद्दे पर सहमत हैं और बाद में इसका समर्थन करेंगे।
कांग्रेस नेता जयराम रमेश ने ‘एक्स’ पर पोस्ट किया, ‘‘आज विभिन्न विपक्षी दलों के 63 राज्यसभा सांसदों ने न्यायाधीश जांच अधिनियम, 1968 के तहत न्यायमूर्ति यशवंत वर्मा को हटाने के लिए राज्यसभा के सभापति को प्रस्ताव का नोटिस दिया। न्यायमूर्ति शेखर यादव को हटाने के लिए भी इसी तरह का एक प्रस्ताव 13 दिसंबर, 2024 को राज्यसभा के सभापति को प्रस्तुत किया गया था।’’
राज्यसभा के सभापति धनखड़ ने सोमवार को सदन को बताया कि उच्च न्यायालय के न्यायाधीश यशवंत वर्मा को पद से हटाने के लिए उन्हें एक नोटिस प्राप्त हुआ है और उन्होंने इस दिशा में आवश्यक प्रक्रिया शुरू करने के लिए महासचिव को निर्देश दिए हैं। धनखड़ ने कहा कि यह नोटिस संविधान के अनुच्छेद 217 (1)(बी), अनुच्छेद 218, और अनुच्छेद 124 (4) के साथ-साथ न्यायाधीश जांच अधिनियम, 1968 की धारा 31(बी) के तहत प्राप्त हुआ है, जिसमें न्यायमूर्ति वर्मा को हटाने के लिए जांच समिति गठित करने का अनुरोध किया गया है।
उन्होंने कहा, ‘‘यह प्रस्ताव आज मुझे प्राप्त हुआ है। इस पर राज्यसभा के 50 से अधिक सदस्यों के हस्ताक्षर हैं, जो उच्च न्यायालय के न्यायाधीश को हटाने की प्रक्रिया आरंभ करने के लिए आवश्यक संख्या है।’’ कानून मंत्री अर्जुन राम मेघवाल द्वारा यह पुष्टि किए जाने के बाद कि इसी तरह का एक नोटिस लोकसभा में भी दिया गया है, सभापति धनखड़ ने राज्यसभा के महासचिव को आवश्यक कदम उठाने के निर्देश दिए।
किसी न्यायाधीश को हटाने के नोटिस पर लोकसभा में कम से कम 100 और राज्यसभा में 50 सदस्यों के हस्ताक्षर होने चाहिए। प्रस्ताव को अध्यक्ष या सभापति द्वारा स्वीकार या अस्वीकार किया जा सकता है। न्यायाधीश (जांच) अधिनियम के अनुसार, जब किसी प्रस्ताव की सूचना संसद के दोनों सदनों में एक ही दिन प्रस्तुत की जाती है, तो न्यायाधीश के विरुद्ध लगाए गए आरोपों की जांच के लिए लोकसभा अध्यक्ष और राज्यसभा के सभापति द्वारा एक समिति गठित की जाएगी। अधिनियम में कहा गया है कि जब तक प्रस्ताव दोनों सदनों में स्वीकार नहीं कर लिया जाता, तब तक कोई समिति गठित नहीं की जाएगी।
उच्चतम न्यायालय के एक वरिष्ठ न्यायाधीश, एक उच्च न्यायालय के वर्तमान मुख्य न्यायाधीश और एक प्रतिष्ठित न्यायविद वाली समिति न्यायमूर्ति वर्मा के विरुद्ध लगाए गए आरोपों की जांच करेगी और उसे तीन महीने में एक रिपोर्ट प्रस्तुत करने के लिए कहा जाएगा। जांच रिपोर्ट संसद में प्रस्तुत की जाएगी, जिसके बाद दोनों सदनों में चर्चा होगी और उसके बाद न्यायमूर्ति वर्मा को हटाने के प्रस्ताव पर मतदान होगा।
इस साल मार्च में न्यायमूर्ति वर्मा के लुटियंस दिल्ली स्थित आवास में आग लगने की घटना हुई थी और घर के बाहरी हिस्से में एक स्टोररूम से जली हुई नकदी से भरी बोरियां बरामद हुई थीं। उस समय न्यायमूर्ति वर्मा दिल्ली उच्च न्यायालय में पदस्थ थे। न्यायमूर्ति वर्मा को बाद में इलाहाबाद उच्च न्यायालय स्थानांतरित कर दिया गया। लेकिन उन्हें कोई न्यायिक कार्य नहीं सौंपा गया। तत्कालीन प्रधान न्यायाधीश संजीव खन्ना के आदेश पर हुई आंतरिक जांच में उन्हें दोषी ठहराया गया है।
न्यायमूर्ति वर्मा ने हालांकि किसी भी गलत कार्य में संलिप्त होने से इनकार किया है, लेकिन उच्चतम न्यायालय द्वारा गठित आंतरिक जांच समिति ने निष्कर्ष निकाला है कि न्यायाधीश और उनके परिवार के सदस्यों का उस भंडारकक्ष पर गुप्त या सक्रिय नियंत्रण था, जहां नकदी पाई गई थी। इससे यह साबित होता है कि उनका कदाचार इतना गंभीर है कि उन्हें हटाया जाना चाहिए।
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