ये हैं वह 6 रास्ते जिनसे होकर मिलेगी कर्नाटक में सत्ता की कुर्सी

कर्नाटक में मंगलवार दोपहर से पहले-पहले सत्ता का फैसला हो जाना है। किसके हाथ बाजी लगेगी, इसे लेकर कयास लग रहे हैं। हम आपको बता रहे हैं वह 6 रास्ते जिनसे होकर ही कर्नाटक में सत्ता की कुर्सी हाथ आती है।

नवजीवन ग्राफिक्स
नवजीवन ग्राफिक्स
user

नवजीवन डेस्क

कर्नाटक चुनाव के नतीजे आने में अब 12 घंटे से भी कम समय बचा है। कांग्रेस और बीजेपी दोनों ही धड़ों में जोरआजमाइश के साथ ही जोड़-तोड़ के मंथन भी चल रहे हैं। लेकिन दोनों ही दलों को एहसास है कि कर्नाटक की सत्ता का रास्ता उन छह इलाकों से होकर गुजरता है, जिनके मिज़ाज अलग-अलग हैं। इन सभी छह इलाकों के राजनीतिक समीकरण और राजनीतिक दलों के लिए नफा-नुकसान अलग-अलग है।

आपको एक-एक कर इन इलाकों या राजनीतिक भाषा में कहें तो रीजन के बारे में बताते हैं। सबसे पहले बात करते हैं बेंग्लुरु की:

बेंगलुरु

कर्नाटक के इस रीजन या इलाके में कुल 28 विधानसभा सीटें हैं। यह इलाका मूलत: शहरी है। पिछले चुनाव में यानी 2013 में यहां से बीजेपी ने 28 में से 17 सीटें जीती थीं। इस इलाके को आमतौर पर बीजेपी समर्थक माना जा सकता है, वैसे इन 28 सीटों पर अल्पसंख्यक और उच्च जातियों के अच्छे खासे वोटर हैं, और मतदाताओं के इन तबकों पर कांग्रेस का प्रभाव है।

सेन्ट्रल कर्नाटक या मध्य कर्नाटक

इस इलाके में कर्नाटक की 224 में से 32 सीटें हैं। वैसे तो बीजेपी के मुख्यमंत्री पद के दावेदार बी एस येदियुरप्पा का जिला शिमोगा इसी रीजन में है, लेकिन फिर भी 2013 में बीजेपी के हाथ यहां की 32 में से सिर्फ 2 सीटें ही आई थीं, जबकि कांग्रेस ने 18 सीटों पर कब्जा किया था, जबकि दस सीटों पर जेडीएस जीती थी। इस इलाके में तुंकुर, देवनगरी, चित्रदुर्गा और शिमोगा ज़िले हैं। इस रीजन में कांग्रेस को इस बार ज्यादा भरोसा है और उसे यहां पहले से अधिक सीटों की उम्मीद है।

पुराना मैसूर

पुराना मैसूर इलाका कर्नाटक का सबसे बड़ा रीजना है और यहां करीब एक चौथाई यानी 51 सीटें हैं। इसे कांग्रेस का गढ़ माना जाता है, क्योंकि पिछले दो चुनावों, 2008 और 2013 में उसे यहां से क्रमश: 41 और 40 सीटें मिली थीं। इस इलाके में वोक्कालिगा समुदाय प्रभावशाली है, इसीलिए जेडीएस का प्रदर्शन भी अच्छा रहा था।

हैदराबाद-कर्नाटक

हैदराबाद कर्नाटक में कुल 31 सीटें हैं और आजादी से पहले यह निजाम की रियासत का हिस्सा हुआ करता था। फिलहाल इस इलाके को खनन माफिया रेड्डा बंधुओं के वर्चस्व वाला माना जाता है। इसके अलावा यहां लिंगायत समुदाय की भी अच्छी खासी आबादी है।

तटीय कर्नाटक

पिछले विधानसभा चुनाव में तटीय कर्नाटक में जीत हासिल करना बीजेपी के लिए काफी अहम था। यहां की 24 सीटों को बीजेपी का यूं तो गढ़ माना जाता है, लेकिन इस बार कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी के इन इलाकों में प्रचार से कांग्रेस काफी उत्साहित है।

मुंबई-कर्नाटक

इस इलाके को भी लिंगायत समुदाय का गढ़ माना जाता है और सिद्धारमैया सरकार द्वारा लिंगायतों को अल्पसंख्यक दर्जा दिए जाने से यहां माहौल कांग्रेस के पक्ष में नजर आया।

Google न्यूज़नवजीवन फेसबुक पेज और नवजीवन ट्विटर हैंडल पर जुड़ें

प्रिय पाठकों हमारे टेलीग्राम (Telegram) चैनल से जुड़िए और पल-पल की ताज़ा खबरें पाइए, यहां क्लिक करें @navjivanindia