कर्नाटक हाईकोर्ट का जाति आधारित सर्वेक्षण पर रोक लगाने से इनकार, आंकड़े गोपनीय रखने का दिया निर्देश

हालांकि मुख्य न्यायाधीश विभु बाखरू और न्यायमूर्ति सी एम जोशी की खंडपीठ ने राज्य सरकार को आंकड़ों की गोपनीयता बनाए रखने का निर्देश देते हुए यह भी कहा कि सर्वेक्षण स्वैच्छिक होना चाहिए।

कर्नाटक हाईकोर्ट का जाति आधारित सर्वेक्षण पर रोक लगाने से इनकार, आंकड़े गोपनीय रखने का दिया निर्देश
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नवजीवन डेस्क

कर्नाटक उच्च न्यायालय ने गुरुवार को राज्य सरकार के जाति आधारित सर्वेक्षण पर रोक लगाने से इनकार कर दिया। चीफ जस्टिस विभु बाखरू और न्यायमूर्ति सी एम जोशी की खंडपीठ ने कहा कि उन्हें जाति आधारित सर्वेक्षण के नाम से प्रचलित सामाजिक और शैक्षिक सर्वे पर रोक लगाने का कोई कारण नहीं दिखता।

हालांकि मुख्य न्यायाधीश विभु बाखरू और न्यायमूर्ति सी एम जोशी की खंडपीठ ने राज्य सरकार को आंकड़ों की गोपनीयता बनाए रखने का निर्देश देते हुए यह भी कहा कि सर्वेक्षण स्वैच्छिक होना चाहिए। पीठ ने कहा, ‘‘हम यह स्पष्ट करते हैं कि एकत्र किए गए आंकड़ों का खुलासा किसी के साथ नहीं किया जाएगा। कर्नाटक राज्य पिछड़ा वर्ग आयोग (केएससीबीसी) यह सुनिश्चित करेगा कि आंकड़े पूरी तरह सुरक्षित और गोपनीय रहें।’’

न्यायाधीशों ने अंतरिम आदेश में केएससीबीसी को यह सार्वजनिक अधिसूचना जारी करने का भी निर्देश दिया कि यह सर्वेक्षण स्वैच्छिक है और किसी को भी कोई जानकारी देने के लिए बाध्य नहीं किया जा सकता है। बेंच ने आयोग को इन निर्देशों के पालन की पुष्टि करते हुए एक हलफनामा पेश करने का भी निर्देश दिया। अदालत ने कहा कि इस बात को गणना करने वालों को भी जनता को बताना होगा।


यह आदेश जातीय सर्वेक्षण के तरीके को चुनौती देने वाली जनहित याचिकाओं पर आया है। राज्य सरकार की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता अभिषेक मनु सिंघवी ने दलीलें पेश कीं, जिन्होंने कहा कि याचिकाकर्ताओं ने संविधान के अनुच्छेद 342A(3) को चुनौती नहीं दी है और न ही पिछड़े वर्गों से संबंधित धारा 9 और 11 पर रोक लगाने की मांग की है। सिंघवी ने कहा कि याचिकाकर्ताओं ने सर्वे में कोई गलती नहीं बताई है और न ही यह दावा किया है कि सरकार के पास इसे कराने का अधिकार नहीं है। सिंघवी ने कहा कि याचिकाकर्ता सिर्फ सर्वे के तरीके पर सवाल उठा रहे थे।

हाईकोर्ट ने कहा कि सर्वे के बाद किसी भी चूक पर सवाल उठाया जा सकता है, लेकिन याचिकाकर्ताओं ने सर्वे शुरू होने से पहले यह साबित नहीं किया कि सर्वे में क्या खामियां थीं, इसलिए इस पर रोक लगाने की कोई जरूरत नहीं है। कोर्ट ने कहा कि सर्वे का मकसद पिछड़े वर्गों को लाभ पहुंचाना है और ऐसी जानकारी जमा करना नागरिकों के अधिकारों का उल्लंघन नहीं है।

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