हिजाब पर कर्नाटक का वह तालिबानी फरमान जिसने हजारों लड़कियों से छीन लिया शिक्षा का अधिकार

कर्नाटक में स्कूल-कॉलेज में हिजाब पर रोक के एक साल हो गए हैं। मुस्लिम लड़कियां सरकारी कॉलेज छोड़-छोड़कर निजी कॉलेजों में दाखिला ले रहीं। जो फीस नहीं दे सकतीं, मजबूरी में घर बैठ गई हैं।

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नाहिद अताउल्लाह

कई लोगों को राज्यसभा में सीपीएम सदस्य जॉन ब्रिटास की यह बात अतिशयोक्ति लग सकती है कि हिजाब पर रोक के कारण कर्नाटक में एक लाख मुस्लिम विद्यार्थियों ने शैक्षणिक संस्थान छोड़ दिए हैं, लेकिन यह तो सच है ही कि इस किस्म के प्रतिबंध ने न सिर्फ मुस्लिम विद्यार्थियों को आतंकित कर दिया है बल्कि इससे शिक्षा परिसरों में सांप्रदायिक आधार पर तेज ध्रुवीकरण हुआ है।

कर्नाटक सरकार ने बीते सितंबर में विधानसभा में बताया कि हिजाब पर रोक के बाद करीब एक हजार विद्यार्थियों ने पढ़ाई छोड़ी। इस बारे में असली संख्या चाहे जो भी हो, बड़ी संख्या में मुस्लिम छात्राओं और छात्रों की शिक्षा बाधित तो हुई ही।

गौसिया को मंगलोर विश्वविद्यालय से अब तक ग्रैजुएट कर लेना चाहिए था। लेकिन महामारी की वजह से दो साल और फिर, हिजाब विवाद के कारण पिछला साल जाया हो गया और तीन साल का अंडरग्रैजुएट कोर्स पांच साल खिंच गया। फिजिक्स, केमिस्ट्री और मैथेमेटिक्स के बी.एससी. (ऑनर्स) डिसटिंक्शन की इस विद्यार्थी को अपना कोर्स पूरा करने के लिए छह महीने का एक और सेमेस्टर पूरा करना होगा।

लेकिन गौसिया अकेली ऐसी लड़की नहीं है। कॉलेज कैंपस और क्लासरूम में हिजाब पर राज्य सरकार ने जिस तरह अचानक प्रतिबंध लगा दिया, उससे कई लोगों की शिक्षा बाधित हो गई। गौसिया बताती हैं, "जब अधिकारियों ने मुझसे कहा कि अगर मैं क्लासरूम के अंदर हिजाब पहनना जारी रखती हूं, तो मुझे कॉलेज छोड़ देना चाहिए, उस वक्त मैं फाइनल ईयर के छठे सेमेस्टर में थी। मैंने मैंगलोर यूनिवर्सिटी से संबद्ध बसंत कॉलेज में अपना तबादला चाहा लेकिन चूंकि कॉलेज मिड सेशन में था, मुझे मार्च, 2023 में आने को कहा गया।"

लड़कियों के लिए किसी शैक्षिक सत्र का छूटना कितना मुश्किल भरा है, वह इससे समझा जा सकता है कि इस दौरान वह पढ़ाने लगी और उसने शादी-ब्याह के मौके पर दुल्हन के मेक-अप और मेहंदी लगाने के काम हाथ में ले लिए। खाली समय में वह सिलाई का काम भी करने लगी जो वह कर सकती थी।

जनवरी, 2023 में जारी 'क्लोजिंग द गेट्स टु एजुकेशनः वायलेशंस ऑफ राइट्स ऑफ मुस्लिम वीमेन स्टूडेंट्स इन कर्नाटक' रिपोर्ट में पीपुल्स यूनियन फॉर सिविल लिबर्टीज (पीयूसीएल) ने विद्यार्थियों के कटु अनुभव को दर्ज किया है और कॉलेज अधिकारियों, प्रशासन और पुलिस की भूमिका की जांच की है।


रिपोर्ट में कहा गया है, 'यह विद्यार्थियों के लिए जख्म पहुंचाने वाला था। एक ही झटके में उन लोगों की पढ़ाई-लिखाई छूट गई और वैसे दोस्तों और शिक्षकों का समर्थन उनसे दूर हो गया जिन पर उन्हें लंबे समय से यकीन था। इस संकट के दौरान उन लोगों ने अपने को अलग-थलग पाया और उन्हें लगा कि और अधिक भारतीय नागरिकों को उनकी प्रतिष्ठा तथा मूलभूत अधिकार के लिए खड़ा होना चाहिए था।' पीयूसीएल टीम ने राज्य के हासन, दक्षिण कन्नड़, उडुपी, रायचूर और शिवमोगा जिलों के विद्यार्थियों से उनके अनुभव इकट्ठा किए थे।

इसके अलावा, जनवरी, 2023 में इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट में पुष्टि की गई कि उडुपी जिले में मुस्लिम विद्यार्थी उल्लेखनीय संख्या में सरकारी कॉलेजों से निजी प्री-यूनिवर्सिटी कॉलेजों (पीयूसी) में चले गए। उडुपी 2022 में हिजाब विवाद के केंद्र में रहा था। 2022-23 में सरकारी पीयूसी में मुस्लिम विद्यार्थियों की संख्या नाम लिखाने के मामले में आधे तक कम हो गई। इस दौरान मुस्लिम छात्रों की संख्या 210 से 95 हो गई जबकि मुस्लिम छात्राओं की संख्या 178 से 91 रह गई। इसकी तुलना में निजी पीयूसी में नाम लिखाने वाले मुस्लिम विद्यार्थियों की संख्या बढ़ गई।

उन दिनों की याद करते हुए गौसिया कहती हैं कि 'एक समय हम हिजाब छोड़ देने और यूनिफॉर्म के रंग के दुपट्टे से अपने सिर ढंकने पर सहमत हो गए थे लेकिन इसकी भी अनुमति नहीं दी गई। तब मैं अपनी दोस्तों के साथ बरामदे पर बैठकर लेक्चर्स सुनने लगीं लेकिन हमें वहां से भी चले जाने को कह दिया गया क्योंकि उनका कहना था कि इससे दूसरे विद्यार्थियों का ध्यान भटकता है। बाद में हमें लाइब्रेरी में भेज दिया गया लेकिन वहां से भी निकाल बाहर किया गया। उसके बाद हम कैंपस से बाहर गए लेकिन पुलिस ने हमें गेट पर भी नहीं बैठने दिया।'

जुबेदा (बदला हुआ नाम)-जैसी विद्यार्थियों ने मेंगलुरु छोड़ देने का फैसला किया। क्षेत्र धर्मस्थल के धर्माधिकारी और राज्यसभा सदस्य डी वीरेन्द्र हेगड़े द्वारा चलाए जा रहे श्री धर्मस्थल मुजुनाथेश्वरा (एसडीएम) कॉलेज की जुबेदा के साथ 10 अन्य विद्यार्थी बेंगलुरु में अल-अमीन कॉलेज चली गईं। जुबेदा ने बताया कि 'एसडीएम कॉलेज प्रशासन ने अंतिम वक्त तक हमें अंधेरे में रखा। एलएलबी की परीक्षा का टाइमटेबल आ चुका था लेकिन हमारे ट्रांसफर सर्टिफिकेट नहीं दिए गए। हमारे शिक्षकों ने दायित्व लिया कि हम सिर्फ इंटरनल परीक्षा में बैठेंगे। जब हमारा अल-अमीन में प्रवेश सुनिश्चित हो गया, हमें 10वें सेमेस्टर में 10 पेपरों की परीक्षा देनी पड़ी जिनमें पांच नौवें सेमेस्टर की थी।'


जब हिजाब विवाद आरंभ हुआ, बी.एससी. (केमिस्ट्री, बायलॉजी और जूलॉजी) की विद्यार्थी अफरा तीसरे सेमेस्टर में थी। उसने कहा, 'शुरू में कॉलेज ने दुपट्टे से अपने सिर ढंकने की अनुमति दे दी। लेकिन साथ पढ़ने वाले कुछ विद्यार्थियों ने जिनमें मेरी दोस्त भी थीं, ने शिकायत की और हमें जाने को कह दिया गया। हमने ऐसे कॉलेज में दाखिला ले लिया है जिसमें हिजाब और अबाया पहनने की अनुमति है और इंजीनियरिंग इन बायोटेक्नोलॉजी लेकर मैंने नए ढंग से पढ़ाई शुरू की है। मेरे दो साल बर्बाद हो गए जबकि मेरे कुछ दोस्तों को पढ़ाई छोड़नी पड़ी क्योंकि वे फीस नहीं दे सकते थे।'

कुछ ऐसे विद्यार्थी भी हैं जिन्होंने विवादास्पद नियम का पालन करना स्वीकार किया क्योंकि उनके पास विकल्प नहीं हैं। जलेका फिल्हा ने कहा कि 'मेरे पास कोई विकल्प नहीं था क्योंकि जब विवाद शुरू हुआ, तो मैं माइक्रोबायोलॉजी के चौथे सेमेस्टर में थी। हमलोग कांग्रेस विधायक यू टी खादर से मिले जिन्होंने दक्षिण कन्नड़ के डिपुटी कमिश्नर से बात की। डीसी ने कहा कि वाइस चांसलर प्रतिबंध को लेकर किसी तरह की छूट के खिलाफ हैं। अब मैं क्लासरूम में हिजाब हटा देती हूं।'

प्रतिबंधित पीपुल्स फ्रंट ऑफ इंडिया के राजनीतिक अंग एसडीपीआई के राष्ट्रीय महासचिव इलियास मुहम्मद थाम्बे को लगता है कि मई में होने वाले विधानसभा चुनावों के दौरान तटीय क्षेत्र में हिजाब पर रोक चुनावी मुद्दा होगा। वह यह भी कहते हैं कि 'पहले के खंडित आदेश को चुनौती देने वाली अपील पर हम सुप्रीम कोर्ट के आदेश का इंतजार कर रहे हैं।'

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