कर्नाटक: इस बार मुकाबला कांग्रेस बनाम बीजेपी नहीं, बल्कि राज्य बनाम मोदी है

कर्नाटक के लोगों में केंद्र की बीजेपी सरकार के प्रति खासी नाराजगी है क्योंकि उन्होंने देखा है कि कैसे उनके राज्य के साथ भेदभाव किया जा रहा है।

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नाहिद अताउल्लाह

अनदेखी पड़ेगी भारी!

कर्नाटक में इस बार लोकसभा चुनाव न तो कांग्रेस और बीजेपी के बीच और न ही कांग्रेस और मोदी के बीच, दरअसल इस बार का चुनाव कर्नाटक और मोदी के बीच है। यह कहना है वरिष्ठ पत्रकार डी उमापति का। उनका कहना है कि कर्नाटक की भावनाओं को कांग्रेस के प्रचार में भी देखा जा रहा है और इसका अच्छा असर भी है।

कर्नाटक में कल यानी 26 अप्रैल को राज्य की कुल 28 में से 14 सीटों पर चुनाव मतदान होना है। दो दिन पहले ही केंद्र की मोदी सरकार ने सुप्रीम कोर्ट से एक सप्ताह का समय मांगते हुए कहा कि वह कर्नाटक की शिकायत पर ‘कुछ’ करने वाली है। बता दें कि कर्नाटक सरकार ने इस बारे में सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया है कि केंद्र की मोदी सरकार जानबूझकर राज्य के सूखा राहत की मांग को अनदेखा कर रही है। हालांकि अगले ही दिन केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने इन आरोपों को खारिज किया था।

मामले की सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट में जस्टिस बी आर गवई और जस्टिस मेहता की बेंच ने अटॉर्नी जनरल से कहा था कि, “मामले की सौहार्दपूर्ण हल निकालिए। हम एक संघीय व्यवस्था हैं। केंद्र और राज्य दोनों ही इसमें बराबर के साझीदार हैं।” कर्नाटक ने राष्ट्रीय आपदा राहत कोष से कर्नाटक के सूखा राहत के लिए 6 महीने पहले 18,171.55 करोड़ रुपए की मांग की है। 

कर्नाटक सरकार कोर्ट में दलील दी है कि केंद्र ने उसकी मांग पर फैसला न कर राहत प्रबंधन कानून 2005 के उस नियम का उल्लंघन किया है जिसमें सूखा राहत की मांग  पर केंद्र को एक महीने के अंदर फैसला करना होता है। इसके लिए केंद्र अंतरमंत्रालय टीम संबंधित राज्य में भेजता है जो अपनी रिपोर्ट केंद्र को सौंपती है। कर्नाटक का कहना है कि यह टीम अक्टूबर 2023 में राज्य का दौरा कर अपनी रिपोर्ट दे चुकी है, लेकिन केंद्र ने अभी तक कोई फैसला नहीं किया है।

दरअसल जब से कर्नाटक में पिछले साल कांग्रेस की सरकार ने शासन संभाला है तब से ही केंद्र पर राज्य की अनदेखी के आरोप लग रहे है। मुख्यमंत्री सिद्धारमैया और उप मुख्यमंत्री डी के शिवकुमार की अगुवाई में इसी सिलसिले में 7 फरवरी को दिल्ली में धरना भी दिया गया था। कर्नाटक सरकार ने यह भी आरोप लगाया है कि केंद्र सरकार द्वारा टैक्स बंटवारे में भेदभाव किया है जिसके चलते कर्नाटक को बीते चार सालों में 45,000 करोड़ से ज्यादा के राजस्व का नुकसान हुआ है।

सिद्धारमैया सरकार का यह भी आरोप है कि भारतीय खाद्य निगम (एफसीआई) अपने उस वादे से भी मुकर  गया जिसके तहत वह राज्य की अन्न  भाग्य योजना में बांटे जाने के लिए सरकार को चावल बेचने को तैयार हो गया था। इसी तरह केंद्र ने मनरेगा का पैसा भी नहीं दिया है और कर्नाटक को विशेषराज्य का दर्जा भी नहीं दिया जा रहा है।

कांग्रेस का आरोप है कि हालांकि 2019 के चुनाव में बीजेपी ने राज्य से 28 में से 25 सीटें जीती थीं, लेकिन एक भी बीजेपी सांसद ने कर्नाटक का मुद्दा संसद में नहीं उठाया।


इनके अलावा भी राज्य की तमाम छोटी-मोटी शिकायतें हैं जैसे कोली समुदाय को अनुसूचित जनजाति सूची में शामिल करने का मामला जिसके लिए बीजेपी ने 2019 में वादा भी किया था लेकिन अब केन्द्र सरकार अपने पैर खींच रही है। प्रियांक खड़गे कहते हैं कि कलबुर्गी में ट्रॉमा सेंटर खोलने जैसी तमाम परियोजनाएं हैं जिन्हें पिछली कांग्रेस सरकार के दौरान शुरू किया गया लेकिन उन्हें पूरा नहीं किया गया।

कन्नड़ डिजिटल प्लेटफॉर्म eedina.com ने चुनाव पूर्व सर्वे कराया था जिसे उसने 16 अप्रैल को जारी किया जिसमें कहा गया कि इस बार कांग्रेस को नौ सीटों जबकि बीजेपी-जेडीएस गठजोड़ को सात सीटों पर जीत मिलने की संभावना है। इस पोर्टल ने पिछले विधानसभा चुनाव के दौरान कांग्रेस की शानदार जीत की भविष्यवाणी करके सनसनी मचा दी थी। पोर्टल का मानना है कि जिन बाकी 12 सीटों के लिए 7 मई को मतदान होना है, उनमें 5-7 सीटों पर कांग्रेस को बढ़त होगी। सर्वे का अनुमान है कि कांग्रेस को 13 से 18 सीटें और बीजेपी-जेडीएस गठजोड़ को 10 से 13 सीटें मिलने जा रही हैं।

कांग्रेस के अभियान में धार

सांस्कृतिक कार्यकर्ता प्रोफेसर गणेश देवी को महसूस होता है कि 2024 का चुनाव भारतीय लोकतंत्र और संविधान को बचाने के नजरिये से अहम है। वह कहते हैं, ‘मतदाताओं को एहसास हो गया है कि न केवल कर्नाटक बल्कि उन्हें बाकी जगहों पर भी बीजेपी को सत्ता में आने से रोकना है।’ 2019 के चुनाव में राज्य की 28 सीटों में से महज एक सीट जीतने वाली कांग्रेस ने इस बार 20 सीटें जीतने का लक्ष्य रखा है। कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने समाचार एजेंसी एएनआई से बातचीत में कहा, ‘ लोग बदलाव चाहते हैं, वे चाहते हैं कि गरीबों की (हमदर्द) सरकार बने और बेरोजगारी और महंगाई घटे। हमने 15-20 सीटें जीतने का लक्ष्य रखा है और इतना हम जीतने जा रहे हैं।’

कांग्रेस के आक्रामक प्रचार अभियान के बारे में उमापति कहते हैं, ‘पहले कर्नाटक कांग्रेस में आक्रामकता की कमी थी...पार्टी को हमेशा से इंदिरा गांधी या राहुल गांधी के करिश्मे का इंतजार होता था और वह सत्ता-विरोधी लहर पर निर्भर करती थी।’ लेकिन इस बार बात ही अलग है और मुकाबला दिलचस्प दिख रहा है क्योंकि कांग्रेस जीतने की भूख दिखा रही है।

विश्लेषकों का मानना है कि पार्टी में पहले की तुलना में कहीं अधिक एकजुटता भी दिख रही है और इसी का नतीजा है कि मुख्यमंत्री सिद्धारमैया, डीके बंधु- डीके शिवकुमार और डीके सुरेश, मल्लिकार्जुन खड़गे समेत सभी नेता एकजुट होकर काम कर रहे हैं। हालांकि विश्लेषक यह जरूर कहते हैं कि संसाधन के लिहाज से यह मुकाबला फरारी और साइकिल की तरह का है क्योंकि बीजेपी और कांग्रेस के धनबल में आसमान-जमीन का फर्क है।


पांच गारंटी का असर

इसके साथ ही कांग्रेस ने विधानसभा चुनाव से पहले जो पांच गारंटी का वादा किया था, उन पर अमल भी गेम-चेंजर साबित हो रहा है। परिवार की महिला प्रमुख के खाते में हर माह सीधे 2,000 रुपये देना, राज्य परिवहन की बसों में महिलाओं को मुफ्त यात्रा और हर घर को 200 यूनिट तक मुफ्त बिजली देना कांग्रेस के पक्ष में काम कर रहे हैं।

लॉ फर्स्ट ईयर की छात्रा एम.ए. जयश्री ने 22 अप्रैल को प्रचार के लिए आए सिद्धारमैया को मुफ्त बस टिकट की माला भेंटकर अपना आभार जताया। एएनआई ने जयश्री को यह कहते उद्धृत किया- ‘कांग्रेस सरकार की मुफ्त बस यात्रा की बदौलत ही मैं बिना किसी आर्थिक परेशानी अपनी पढ़ाई कर पा रही हूं। मैंने उन मुफ्त टिकटों को इकट्ठा करके यह माला बनाई।’

ग्रामीण इलाकों में महिलाएं आम तौर पर कमजोर आर्थिक पृष्ठभूमि से होने के कारण कांग्रेस की इन पहलों से लाभान्वित हो रही हैं और इसलिए उनका झुकाव कांग्रेस की ओर दिख रहा है जबकि शहरी महिलाओं का झुकाव बीजेपी की ओर है। कांग्रेस को वोक्कालिगा समुदाय जिसका प्रतिनिधित्व शिवकुमार करते हैं, दलित, अन्य पिछड़ा वर्ग और कुछ हद तक लिंगायत वोटों से काफी उम्मीदें हैं।

बगावत से परेशान बीजेपी

उधर बीजेपी के साथ अन्य दिक्कतों के साथ एक परेशानी यह भी है कि उसे कई जिलों में बगावत का सामना करना पड़ा रहा है। इसी कारण केन्द्रीय मंत्री शोभा करांदलजी को उडुपी-चिकमंगलूरु की सीट छोड़कर बेंगलुरू उत्तर शिफ्ट होना पड़ा। आठ महीने के आसपास का वक्त कांग्रेस में गुजारने के बाद वापस बीजेपी में लौटे पूर्व मुख्यमंत्री जगदीश शेट्टार को कार्यकर्ताओं की नाराजगी का सामना करना पड़ रहा है।

बीजेपी के लिए एक और बड़ी चिंता के.एस. ईश्वरप्पा का विद्रोह है। ईश्वरप्पा के बेटे को बीजेपी ने टिकट नहीं दिया और इससे खफा होकर वह पूर्व मुख्यमंत्री येदियुरप्पा के खिलाफ शिवमोगा में मैदान में उतर गए हैं। बीजेपी ने जेडीएस के साथ यह सोचकर तालमेल किया कि एचडी देवेगौड़ा के राजनीतिक कद का उसे पुराने मैसूर इलाके में फायदा होगा। लेकिन सबसे बड़ा सवाल यही है कि क्या उनका वोट बीजेपी को ट्रांसफर हो पाएगा? 

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