गुजरात में बीजेपी की 'बी टीम' की भूमिका में केजरीवाल! मुकाबला त्रिकोणीय बनाने की खुली कोशिश

दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल भी जानते हैं कि बीजेपी का अकेले मुकाबला संभव नहीं है। फिर भी वह बीजेपी को जिस तरह हर जगह स्पेस दे रहे हैं, उससे कुछ नेताओं का यह आरोप सही लगता है कि आम आदमी पार्टी दरअसल बीजेपी की बी टीम की तरह काम कर रही है।

फोटोः GettyImages
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आर के मिश्रा

गुजरात प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और केन्द्रीय गृह मंत्री अमित शाह का गढ़ है और इस राज्य में अपना दबदबा बनाए रखने के लिए कोई भी कीमत ज्यादा नहीं है। इस मामले में एकदम ‘नीचे’ तक साफ संदेश है। राज्य में मोदी की मर्जी के बिना पत्ता भी नहीं खड़कता। इतनी ताकतवर शख्सियत, इतना संसाधन, इतनी सावधानी के बाद भी बीजेपी की सीटें घट रही हैं! आखिर माजरा क्या है?

मोदी ने 2001 में गुजरात के मुख्यमंत्री के रूप में कार्यभार संभाला। वर्ष 2002 में गोधरा में ट्रेन कांड के बाद पूरे गुजरात में सांप्रदायिक दंगे होते हैं। उसके बाद के चुनाव में बीजेपी को 182 में से 127 सीटें मिलती हैं और नरेन्द्र मोदी मुख्यमंत्री बने रहते हैं। तब कांग्रेस को 51 और जेडीयू को दो सीटें मिलती हैं। 2002 का वह चुनाव मोदी के चुनावी प्रदर्शन का चरम था। 2007 में कांग्रेस की सीटें सुधरकर 59 हो गईं और बीजेपी घटकर 117 पर आ गई। 2012 के चुनाव में बीजेपी 116 सीट पर आई और कांग्रेस को 60 सीटें मिलीं।

2017 में बीजेपी 17 सीटें खिसककर 99 पर आ गई जबकि कांग्रेस बढ़कर 77 पर पहुंच गई।चुनाव बाद की बाजीगरी की बदौलत, बीजेपी के पास अब 111 विधायक हैं, कांग्रेस के 63, भारतीय ट्राइबल पार्टी (बीटीपी) के 2, एनसीपी के एक और एक निर्दलीय हैं, जबकि चार सीटें खाली हैं। इस साल दिसंबर में चुनाव होने जा रहे हैं और मुकाबला त्रिकोणीय है। अरविदं केजरीवाल की आम आदमी पार्टी भी मदैान में है।

वैसे, गुजरात पारंपरिक प्रतिद्वंद्वियों कांग्रेस और बीजेपी के बीच चुनावी जंग का मैदान रहा है। अलग पार्टी बनाने वाले ज्यादा कुछ नहीं कर पाए। चाहे किसान मजदूर लोक पक्ष (केएमएलपी) की स्थापना करने वाले कांग्रेस के चिमनभाई पटेल हों, राष्ट्रीय जनता दल बनाने वाले बीजेपी के शंकरसिंह वाघेला हों, गुजरात परिवर्तन पार्टी का गठन करने वाले बीजेपी के दिग्गज केशुभाई पटेल हों, सबका हाल एक-सा रहा। ऐसी सियासी पृष्ठभूमि में आम आदमी पार्टी गुजरात के चुनाव में आई है।


वैसे, अरविंद केजरीवाल की मूल रणनीति तो यही थी कि हिमाचल प्रदेश पर ध्यान केन्द्रित करते हुए गुजरात में इस बार के चुनाव में वहां अपना संगठन मजबूत किया जाए। दिल्ली की सत्ता पर अच्छी तरह पकड़ बनाने और फिर पंजाब जैसे महत्वपूर्ण राज्य को जीतने के बाद केजरीवाल की रणनीति इसी क्षेत्र पर ध्यान केन्द्रित करने की रही है। इस लिहाज से हिमाचल और हरियाणा के चुनाव उनके लिए अहम हैं। केजरीवाल चाहते थे कि इन राज्यों के बूते 2024 के आम चुनाव में वह एक अहम शख्सियत बनकर उभरें।

हालांकि पार्टी के लिए हिमाचल प्रदेश के चुनाव का काम देख रहे दिल्ली के स्वास्थ्य मंत्री सत्येंद्र जैन पर प्रवर्तन निदेशालय के धावे के बाद केजरीवाल की रणनीति में बदलाव दिख रहा है। आम आदमी पार्टी अब पूरी आक्रामकता के साथ बीजेपी का मुकाबला करने का मन बनाती दिख रही है। सूरत नगर निगम के चुनाव नतीजों ने उसके हौसले बुलंद ही किए हैं जहां 120 सदस्यों वाले निकाय में उसने कांग्रेस की कीमत पर 27 सीटें हासिल कीं। इसमें बीजेपी को 93 सीटें मिलीं।

गांधीनगर के नगर निगम चुनावों में वह खुद तो कोई कमाल नहीं कर सकी लेकिेन उसने कांग्रेस का बंटाधार जरूर कर दिया। नतीजा यह रहा कि बीजेपी ने 44 में से 41 सीटों पर कब्जा जमा लिया। एक बात गौर करने की थी- कांग्रेस और आप का कुल वोट शेयर बीजेपी से ज्यादा था। यह एक ऐसा मामला है जिस पर दो विरोधियों को गौर करना चाहिए। अगर दोनों साथ काम करें तो गुजरात में भी मोदी का मुकाबला कर सकते हैं और अगर वे अलग-अलग लड़ेंगे तो एक-दूसरे को कमजोर करते हुए अपना ही नुकसान करेंगे और इसका फायदा होगा बीजेपी को।

कांग्रेस नैतिक प्रतिद्वंद्वी रही है लेकिेन आम आदमी पार्टी के लिए इस तरह की कोई बाध्यता नहीं है। दिल्ली के उपमुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया पर सीबीआई की छापेमारी के बाद गुजरात चुनाव प्रचार में आम आदमी पार्टी की आक्रामकता बढ़ गई है। जबकि राहुल गांधी ने भारत-जोड़़ो अभियान के नक्शे से गुजरात और हिमाचल प्रदेश को अलग रखा है क्योंकि वहां चुनाव होने हैं। ऐसा लगता है कि आम आदमी पार्टी 2024 में नरेन्द्र मोदी के मुकाबले केजरीवाल की राष्ट्रीय प्रोफाइल बनाने के लिए गुजरात चुनावों का उपयोग कर रही है। इस तरह की कोशिशें तब से तेज हुई हैं जब से नीतीश कुमार ने बिहार में बीजेपी का साथ छोड़ा है।

इसमें संदेह नहीं कि मोदी को गुजरात में शिकस्त देना आसान नहीं। लेकिन यह असंभव भी नहीं, बशर्ते उनके गढ़ में उनसे दो-दो हाथ कर रहे उनके दो विरोधी एकजुट होकर काम करें।

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