केरल: कांग्रेस की अगुवाई वाले यूडीएफ के पक्ष में झुका नजर आता है सियासी पलड़ा

भले ही कांग्रेस और लेफ्ट इंडिया गठबंधन में साथ हों, लेकिन केरल में एक दूसरे के प्रतिद्वंदी हैं। लेकिन इससे क्या बीजेपी की दाल गलेगी, जमीनी हकीकत इस संभावना से एकदम अलग है।

3 अप्रैल को वायनाड में नामांकन से पहले रोड शो में राहुल गांधी (फोटो - Getty Images)
3 अप्रैल को वायनाड में नामांकन से पहले रोड शो में राहुल गांधी (फोटो - Getty Images)
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अलेक्स चैंडी

केरल में हर बार की तरह इस बार भी दोतरफा ही मुकाबला है। वैसे, कथित राष्ट्रीय जनमत सर्वेक्षणों में संभावना जताई जा रही है कि इस बार भारतीय जनता पार्टी केरल में दो सीटों के साथ अपना खाता खोल सकती है। राज्य में 20 लोकसभा सीटें हैं और यहां 26 अप्रैल को मतदान होना है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी फिर से केरल में थे। हाल के महीनों में यह उनका यह छठा केरल दौरा था।

केरल में जब सीपीएम की अगुवाई वाले वाम लोकतांत्रिक मोर्चा (एलडीएफ) ने कांग्रेस की अगुवाई वाले संयुक्त लोकतांत्रिक मोर्चा (यूडीएफ) से पहले अपने उम्मीदवारों की घोषणा की और यह साफ हो गया कि 'इंडिया' गठबंधन के दोनों सहयोगियों के बीच सीटों पर कोई समझौता नहीं होगा, तो बीजेपी समर्थक अंदर ही अंदर खुश हो रहे थे। लेकिन स्थितियां वैसी नहीं हैं जैसी कि बीजेपी ने अपेक्षा की थी। वैसे केरल में आरएसएस पिछले चार दशकों से शाखाएं लगा रहा है और उसका दावा है कि यहां दूसरी जगहों से अधिक उसकी शाखाएं लगती हैं।

स्थानीय स्तर पर किए गए सर्वेक्षणों और गली-मुहल्लों में जो माहौल है उससे संकेत मिलते हैं कि चुनावी पलड़ा कांग्रेस के नेतृत्व वाले यूडीएफ की तरफ झुका हुआ है। 2019 में यूडीएफ और एलडीएफ के बीच गठबंधन था और इसने 20 में से 19 सीटें जीती थीं। वैसे, कांग्रेस समर्थक भी मानते हैं कि यूडीएफ की एक या दो सीटें कम हो सकती हैं और एलडीएफ जीत का अधिक अंतर हासिल कर सकता है।

वायनाड से राहुल गांधी की जीत तय मानी जा रही है। सीपीआई की एन्नी राजा यहां आक्रामक अभियान चला रही हैं। लेकिन अंतिम परिणाम पर किसी को शक नहीं है।

एक ऐक्टिविस्ट का कहना है कि राहुल गांधी भले ही अपने अपने चुनाव क्षेत्र में उतना प्रचार नहीं कर सके जितना करने के इच्छुक थे। लेकिन उन्होंने जितना कुछ किया है, उसने यहां के लोगों का दिल जीत लिया है।

सुल्तान बत्तेरि के बीजू शिवरमन मानते हैं कि राज्य या केंद्र में कांग्रेस के सत्ता में नहीं होने से राहुल को दिक्कतें हुईं। बीजेपी उम्मीदवार के सुरेन्द्रन ने यह घोषणा कर लोगों को निराश ही किया कि अगर बीजेपी की जीत होती है, तो सुल्तान बत्तेरि का नाम बदलकर गणपति वत्तम कर दिया जाएगा। बीजू कहते हैं कि इससे लोग निराश हुए। उन्होंने कहा कि 'लोग इसके लिए तैयार नहीं हैं।' ऐसा लगता है कि मलयालियों की मोदी की 'गारंटियों' में रुचि नहीं है। वे अलग किस्म की गारंटियां चाहते हैं- सौहार्द में रहने की गारंटी, समान धार्मिक अधिकारों की गारंटी और भयमुक्त जीवन की गारंटी।


बीजेपी जहां से काफी उम्मीदें हैं वह है केंद्रीय मंत्री राजीव चंद्रशेखर (तिरुवनंतपुरम) और सुरेश गोपी (त्रिसूर) के निर्वाचन क्षेत्र। लेकिन यह दोनों जीत हासिल करेंगे? नई दिल्ली में सेंट स्टीफेंस कॉलेज में प्राचार्य रहे डॉ. वाल्सन थम्पु कहते हैं, 'कोई संभावना नहीं।' डॉ. थम्पु तिरुवनंतपुरम में ही रहते हैं। वह कहते हैं कि यूडीएफ और एलडीएफ- दोनों ने जो उम्मीदवार दिए हैं, वे बीजेपी प्रत्याशियों से बेहतर हैं। वह कहते हैं कि 'मुसलमान तो शायद ही बीजेपी को वोट दें और वे लगभग 28 प्रतिशत मतदाता हैं।

इसके अलावा गुजरात के डांग में क्रूरता, ओडिशा के कंधमाल में ईसाई मिशनरी ग्राहम स्टेन्स की नृशंस हत्या, अनवरत धर्म परिवर्तन के विरोध के अलावा चर्चों और ननों पर लगातार आक्रमण, हिरासत में स्टेन स्वामी की मौत और मणिपुर नरसंहार की यादें अब भी ईसाइयों के मन में कौंधती हैं। लोग प्रधानमंत्री की बातों से शायद ही भ्रमित हों।'

डॉ. थम्पू कहते हैं कि 'केरल के साथ उनका सौतेला व्यवहार और पहले किए गए उस अपमान को लोग अब तक नहीं भूले हैं जब उन्होंने केरल की तुलना सोमालिया से की थी।'

मार थोमा चर्च के प्रमुख ने चर्च के मुखपत्र- सभा थराका में भी यही भावना प्रकट की है। उन्होंने समुदाय के मतदाताओं से ऐसी सरकार को वोट देने का आह्वान किया है जो संविधान के मूल सिद्धांतों से अलग न होने वाली हो। उन्होंने यह भी कहा कि सीएए का उपयोग कर लोगों को बांटना खतरनाक है। बिशप ने लिखा कि 'धार्मिक आधार पर समान अधिकारों वाले भारतीय नागरिकों में अंतर करने के प्रयास का विरोध किया ही जाना चाहिए।'

एक स्थानीय सर्वेक्षण को उद्धृत करते हुए कई राजनीतिक पर्यवेक्षकों और राजनीतिक टिप्पणीकारों ने कहा कि बीजेपी के सुरेश गोपी की उनके यूडीएफ प्रतिद्वंद्वी के मुरलीधरन पर 'हलकी-सी बढ़त' है। लेकिन राजीव चंद्रशेखर किसी भी तरह सांसद और यूडीएफ उम्मीदवार शशि थरूर को कोई वास्तविक चुनौती नहीं दे रहे हैं।

चंद्रशेखर बेंगलुरु में रहते हैं और करोड़पति हैं। एक तो उन्हें यहां 'बाहरी' माना जा रहा, फिर अपने चुनाव घोषणा पत्र में अपनी संपत्ति को लेकर वह विवाद में पड़ गए हैं। कांग्रेस ने उन पर गलत सूचना देने की निर्वाचन आयोग से शिकायत की है। इसमें आरोप लगाया गया है कि चंद्रशेखर ने बेंगलुरु के कोरामगला में शाही घर के अपने स्वामित्व की सूचना नहीं दी है और बताया है कि उन्होंने सिर्फ 638 रुपये आयकर दिया है (क्या ऐसा संभव भी है?) और उनके पास लगभग 60 करोड़ रुपये की मामूली संपत्ति है। आयोग ने यह शिकायत सीबीडीटी को जांच के लिए बढ़ा दी है। इसने विवाद को लंबा खींच दिया है जिससे मंत्री को मुश्किल होना स्वाभाविक है।


ऐक्टिविस्ट जे एस अडूर राज्य में विजयन सरकार के खिलाफ एंटी-इन्कम्बेंसी की बात करते हैं जो यूडीएफ को मदद करने वाला महत्वपूर्ण फैक्टर है। वह कहते हैं कि 'राज्य में वित्तीय संकट बहुत गंभीर संकट में बदल गया है।' रीयल एस्टेट सेक्टर में ठहराव आ गया है, सामाजिक सुरक्षा पेंशन नहीं मिल रही है, उचित मूल्य वाली दुकानें ठीक तरीके से काम नहीं कर रही हैं, 20 रुपये में महिलाओं को खाना परोसने वाली सैकड़ों कुदुम्बश्री दुकानें बंद हो चुकी हैं, स्कूलों में मध्याह्न भोजन (मिड डे मील) स्कीम बंद हो गई है, बिजली दरें 40 प्रतिशत तक बढ़ गई हैं, पानी की दरें तीन गुना तक बढ़ गई हैं, हाउस टैक्स, लैंड टैक्स, निर्माण टैक्स- सभी बढ़ गए हैं। मध्य वर्ग और उच्च मध्य वर्ग पर इन सबका गहरा असर हुआ है।

पिछले कुछ सालों में खास तौर से खाड़ी देशों से आने वाले पैसों में 12 से 20 प्रतिशत तक की गिरावट आई है। केएसआरटीसी गहरे कर्ज में है और महीनों से वेतन तथा पेंशन लंबित हैं। शिक्षा क्षेत्र भी पिछड़ रहा है। राज्यपाल और राज्य सरकार के बीच खींचतान की वजह से राज्य के नौ विश्वविद्यालयों में पूर्णकालिक कुलपति नहीं हैं। अधिकतर सरकारी अस्पतालों में दवाएं नहीं हैं।

अडूर का कहना है कि 'यह ज्यादा वादे करने और काफी कम पूरा करने का मसला है। चूंकि वोटर इसकी पीड़ा भोग रहे हैं, यूडीएफ इन सबका उपयोग अपने पक्ष में करने के लिए कर सकता है।'

और सबसे ऊपर, केरल कभी भी उत्तर से प्रभावित नहीं रहा है। यहां शिक्षा की दर काफी ऊंची रही है, यहां का मीडिया धारदार रहा है और यहां के कार्टूनिस्ट नई दिल्ली और उत्तरी राज्यों में होने वाली घटनाओं पर पैनी निगाह रखते रहे हैं। घर से काफी दूर रहने पर भी मलयाली अपने घर से जुड़े रहते हैं और नियमित अंतराल पर लंबे समय तक लौटते रहे हैं। सड़क के किनारे एक चाय वाले ने मुस्कुराकर कहा भी, 'उन्हें मूर्ख बनाना मुश्किल है।'

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