नए संसद भवन के उद्घाटन में राष्ट्रपति को निमंत्रण न देना मर्यादाओं का अपमान: खड़गे
कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने नए संसद भवन के उद्घाटन के मौके पर राष्ट्रपित को निमंत्रित न किए जाने पर मोदी सरकार पर निशाना साधा है। उन्होंने कहा है कि यह लोकतांत्रिक मर्यादाओं का अपमान है।

कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने केंद्र की मोदी सरकार पर निशाना साधा है। उन्होंने सिलसिलेवार ट्वीट में इस बात को उजागर किया है कि मोदी सरकार ने सिर्फ चुनाव जीतने और वोटों का लाभ लेने के लिए ही राष्ट्रपति पद पर दलित और आदिवासी समुदाय के लोगों का चयन किया है।
खड़गे ने इस बात को मोदी सरकार द्वारा नए संसद भवन के उद्घाटन के संदर्भ में उठाया है। उन्होंने कहा है कि जब नए संसद भवन की बुनियाद (आधारशिला) रखी गई थी, तो उस समय के राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद को निमंत्रण नहीं दिया गया था। उन्होंने कहा है कि अब जबकि नए संसद भवन का उद्घाटन होना है तो मौजूदा राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू को आमंत्रित नहीं किया जा रहा है।
उन्होंने कहा कि संसद भारतीय गणतंत्र का सर्वोच्च सदन है और राष्ट्रपति सर्वोच्च संवैधानिक पद होता है। खड़गे ने कहा कि राष्ट्रपति मुर्मू ही देश, सरकार, विपक्ष और प्रत्येक भारतीय नागरिक की एकमात्र प्रतिनिधि हैं। यदि उनके द्वारा संसद भवन का उद्घाटन होता है तो इससे साबित होगा कि मौजूदा सरकार देश के लोकतांत्रिक मूल्यों और संवैधानिक परंपराओं के प्रति संकल्पबद्ध है।
कांग्रेस अध्यक्ष ने कहा है कि मोदी सरकार निरंतर इन परंपराओं का उल्लंघन करती रही है। उन्होंने आरोप लगाा कि राष्ट्रपति कार्यालय को बीजेपी-आरएसएस सरकार द्वारा मात्र दिखावे में बदल दिया गया है।
गौरतलब है कि दो दिन पहले ही कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने भी एक ट्वीट में कहा था कि संसद भवन का उद्घाटन राष्ट्रपति द्वारा किया जाना चाहिए, न कि प्रधानमंत्री द्वारा।
मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक संसद भवन का उद्घाटन 28 मई को होना है और प्रधानमंत्री इसका उद्घाटन करेंगे। विपक्षी नेता सरकार की इस बात के लिए भी आलोचना कर रहे हैं कि 28 मई का दिन वी डी सावरकर का जन्मदिवस होता है, और उनके जन्मदिन पर लोकतंत्र के मंदिर का उद्घाटन करना उन सिद्धांतों पर कुठाराघात है जिनके पर देश आधारित है। आलोचक कहते हैं कि सावरकर जीवन भर गांधीवादी सिद्धांतों के विरोध में रहे और उन्होंने स्वतंत्रता संघर्ष में कभी हिस्सा नहीं लिया। इतना ही नहीं सावरकर ने तो बाकायदा शपथपत्र देकर तब के ब्रिटिश शासन से माफी मांगी थी।
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