CAA Protest में मेरठ में मारे गए लोगों के परिजनों का दावा- पुलिस ने सिर, सीने और पीठ में मारी गोली

उत्तर प्रदेश में पुलिस हैवानियत का अंदाजा मेरठ में मारे गए लोगों की संख्या से लग जाता है। वह जमीन जहां से 1857 के गदर की चिंगारी उठी, जहां मंगल पांडे ने शहादत दी। तब यहां के लोगों ने संविधान के लिए कुर्बानी दी थी, आज वे संविधान बचाने के लिए जान दे रहे हैं।

फोटोः सोशल मीडिया
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नवजीवन डेस्क

योगी राज में उत्तर प्रदेश कश्मीर बन गया है। एक ऐसा प्रदेश जहां ताकतवर और हथियारों से लैस सत्ता व्यवस्था के लिए निरीह-निहत्था आम आदमी ‘खतरा’ बन गया है। संविधान-विरोधी संशोधित नागरिकता कानून और राष्ट्रव्यापी एनआरसी की साफ आहट से घबराए-परेशान लोगों के विरोध-प्रदर्शन को ताकत से दबाने के सरकारी आतंकवाद की बानगी है कि उत्तर प्रदेश में खबर लिखे जाने तक 21 लोग मारे जा चुके हैं।

सूबे में पुलिस वाले कैसी हैवानियत कर रहे हैं, इसका अंदाजा लगाने के लिए मेरठ पर गौर करना ही काफी होगा। वह जमीन जहां से 1857 के गदर की चिंगारी भड़की, जहां मंगल पांडे ने शहादत दी। तब इस मिट्टी के लोगों ने संविधान बनाने के लिए कुर्बानी दी थी, आज वे संविधान बचाने के लिए जान दे रहे हैं। खबर लिखे जाने तक मेरठ में छह लोग पुलिसिया कार्रवाई में मारे जा चुके हैं, दर्जनों घायल हैं और तमाम लापता हैं। मेरठ जिले में सात थाना क्षेत्र हैं और मारे गए सभी छह लिसाड़ी गेट थाना क्षेत्र के हैं। ये सभी मजदूरी करके पेट पाल रहे थे। इनके परिजनों से बातचीत में जो बातें सामने आती हैं, वे भयावह हैं।

मारे गए लोगों के रिश्तेदारों का आरोप है कि तमाम लोगों की छाती-सिर में गोलियां लगने से मौत हुई और ये तांडव मुस्लिम बहुल इलाकों में हुआ। पुलिस ने मुसलमानों के घरों में घुसकर लोगों को मारा-पीटा, उनके साथ वहशियाना बर्ताव किया। ये नतीजा है सूबे के संवैधानिक मुखिया के उस बयान का जिसमें उन्होंने ऐलानिया तौर पर यह कहने से परहेज नहीं किया कि ‘उपद्रव’ करने वालों से ‘बदला’ लिया जाएगा।

आलिम के बूढ़े बाप पर टूटा पहाड़

आलिम की उम्र 21 साल थी। वह कांच का पुल मोहल्ले की गली नंबर-10 में रहता था। पावर हैंडलूम के एक कारखाने में काम करता था। उसकी शादी अभी एक साल पहले ही हुई थी। घर की हालत ऐसी है कि उसमे दरवाजा भी नहीं है। पर्दे के लिए कपड़ा लटकाया गया है। आलिम के पिता अब बूढ़े हो रहे हैं और एक भाई है, जो अपाहिज है। इन दोनों के लिए आलिम की मौत सिर पर पहाड़ टूटने जैसा है।

बीड़ी लेने गया जहीर वापस नहीं लौटा

घंटा वाली गली के पास है जालीवाली गली। 44 साल का जहीर इसी इलाके में रहता था। जहीर के दोस्त शमीम ने बताया कि वह पूरी घटना का चश्मदीद है। उसके मुताबिक जहीर गली में ही चबूतरे पर बैठकर बीड़ी पी रहा था कि अचानक गोली लगने से नीचे गिर गया। ताबड़तोड़ गोलियां दागते पुलिस वाले गली में घुस आए थे। शमीम कहते हैं, “उसे गोद में उठाया और 100 नंबर डायल किया... एम्बुलेंस मंगाने के लिए भी फोन किया। कोई मदद नहीं आई। फिर उसे मिनी ट्रक में डाल सरकारी अस्पताल ले गए। रात में ही पोस्टमार्टम के बाद लाश सौंप दी गई। साथ में सख्त हिदायत भी दी गई कि तुरत इसे दफना दो। हम 8-10 लोगों ने सुबह 6 बजे जहीर को सुपुर्द-ए-खाक कर दिया।”

आसिफ की तो शादी भी नहीं हुई थी

आसिफ अंसारी की उम्र 22 साल थी और उसका परिवार कांच का पुल मोहल्ले की गली नंबर-9 में रहता था। वह पांच साल से दिल्ली में रहकर ऑटो चलाकर अपने परिवार का पेट पालता था। उसकी अम्मी कहती हैं, “आसिफ हर जुमे को हम से मिलने आता था। बवाल वाले दिन वह देर तक घर नहीं आया। बाद में पता चला कि पुलिस की गोली से उसकी मौत हो गई है। हमें अब तक उसकी पोस्टमार्टम रिपोर्ट भी नहीं मिली है। यह भी नहीं पता कि वह प्रदर्शन में शामिल था भी या नहीं। अगर शामिल रहा भी हो तो क्या उसे सीधे गोली मार देनी चाहिए थी? शहर के विधायक रफीक अंसारी जब हमारे साथ गए तब हमें बच्चे की लाश दिखाई गई।”

मोहसिन को सिर में लगी गोली

मोहसिन मलिक गुलजार ए इब्राहिम मोहल्ले की खत्तेवाले गली में रहता था। उसके बड़े भाई नसीम (बदला हुआ नाम) कहते हैं, “भाई घर से पैसे लेकर भैंस के लिए चारा लेने गया था। रास्ते में गोली लगी और वह वहीं सड़क पर गिर गया। उसके सिर में गोली लगी थी। कुछ लोग उसे अस्पताल लेकर गए, लेकिन बच नहीं सका। हम छह भाइयों में वह सबसे ज्यादा ताकतवर और हट्टा-कट्टा था। सियासी बातों में उसकी कोई दिलचस्पी नहीं थी और न ही प्रदर्शन में शामिल था। मगर पुलिस ने उसे उपद्रवी करार दे दिया और अखबार वाले दंगाई बता रहे हैं।”

आसिफ को पीठ में मारी गोली

आसिफ खान की उम्र 35 साल थी। घंटा वाली गली में किराये पर रहता था। वह पुराने टायर पर रबड़ चढ़ाने का काम करता था और बड़ी मुश्किल से अपना और अपने परिवार का पेट पाल रहा था। आसिफ के साले इमरान कहते हैं, “मैंने खुद पुलिस को उन्हें गोली मारते देखा... डर के मारे छिप गया और पुलिस के जाने के बाद निकला। आसपास के निजीअस्पतालों ने उन्हें भर्ती करने से इनकार कर दिया। फिर हम उन्हें लेकर सरकारीअस्पताल गए, लेकिन तब तक उनकी जान जा चुकी थी।” आसिफ के तीन बच्चे हैं। सबसे छोटा बेटा अभी छह माह का है। आसिफ की बीवी इमराना कहती हैं, “मौत तो एक दिन आनी ही है...लेकिन मेरा शौहर शहीद हुआ है...यह जुल्म है और खुदा एक दिन जरूर इसका इंसाफ करेगा।” आसिफ के माता-पिता का पहले ही इंतकाल हो चुका है।


लोगों में मोदी-योगी सरकार को लेकर गुस्सा भी है और भय भी। घंटा वाली गली में रहने वाले कल्लू कहते हैं, “मुझे नहीं पता कि संशोधित नागरिकता कानून क्या है और लोग क्यों विरोध कर रहे हैं। इतना पता है कि यह सरकार हमारे खिलाफ है। वे हम जैसों को इस मुल्क से निकालना चाहते हैं।” केरल से मुस्लिम लीग के कुछ लोग जहीर के घर दुख जताने गए। लीग के राष्ट्रीय महासचिव सीके जुबैर कहते हैं, “यूपी पुलिस ने अंग्रेजों से भी ज्यादा बर्बरता की है। क्या अपने ही देश के लोगों के साथ कोई ऐसा करता है? सब कुछ मुख्यमंत्री के इशारे पर हो रहा है। यह टारगेट किलिंग जैसा है क्योंकि कई लोगों को सीने और सिर में गोली मारी गई है।”

गौरतलब है कि19 दिसंबर को जुमे की नमाज के बाद पूरे उत्तर प्रदेश समेत मेरठ के कई इलाकों में भी बड़ी तादाद में लोग सड़कों पर उतर आए थे। इसी दौरान हिंसा भड़क गई और पुलिस और लोगों के बीच जमकर पत्थरबाजी हुई। इसके बाद कई इलाकों में पुलिस कार्रवाई में यहां कई लोगों को गोली लगी, जिसमें से 6 लोगों की मौत हो गई। वहीं, पुलिस का कहना है कि भीड़ ने पुलिस पर पथराव किया और वहां हुई हिंसा सोची-समझी साजिश का हिस्सा थी जिसके बाद उन्हें जवाबी कार्रवाई के लिए मजबूर होना पड़ा।

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