बड़ी खबर LIVE: बिहार वोटर वेरिफिकेशन पर रोक लगाने से SC का इनकार, EC से कहा- आधार, राशन, वोटर ID पहचान में करें शामिल
सुप्रीम कोर्ट में बिहार में मतदाता सूची के विशेष गहन पुनरीक्षण के चुनाव आयोग के फैसले को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई हुई। कोर्ट ने वोटर वेरिफिकेशन पर रोक लगाने से इनकार कर दिया है।

बिहार वोटर वेरिफिकेशन पर SC के फैसले पर वेणुगोपाल बोले- यह लोकतंत्र के लिए राहत की बात
कांग्रेस सांसद केसी वेणुगोपाल ने कहा, "...यह लोकतंत्र के लिए राहत की बात है। अब इस मामले की सुनवाई 28 जुलाई को होगी। सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में कहा है कि आधार, वोटर आईडी और राशन कार्ड को सत्यापन प्रक्रिया का हिस्सा बनाया जाना चाहिए। मुझे लगता है कि चुनाव आयोग सुप्रीम कोर्ट के इस सुझाव को मानेगा। इसका इंतज़ार कीजिए।"
बिहार वोटर वेरिफिकेशन पर रोक लगाने से सुप्रीम कोर्ट का इनकार
बिहार विधानसभा चुनाव से पहले वोटर लिस्ट के विशेष गहन पुनरीक्षण (SIR) के विरोध में गुरुवार को सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई हुई. इस दौरान याचिकाकर्ताओं और चुनाव आयोग का पक्ष सुनने के बाद कोर्ट ने फिलहाल SIR पर रोक लगाने से इनकार कर दिया. सुप्रीम कोर्ट अब इस मामले पर 28 जुलाई को सुनवाई करेगा। कोर्ट ने कहा कि आधर कार्ड, राशन कार्ड को भी पहचान का सबूत मानें।
बिहार मतदाता सूची पुनरीक्षण मामले पर कोर्ट ने कहा कि इस न्यायालय के समक्ष दायर इन याचिकाओं में एक महत्वपूर्ण प्रश्न उठाया गया है जो हमारे देश जैसे गणतंत्र की कार्यप्रणाली के मूल में जाता है। प्रश्न है मतदान के अधिकार का। याचिकाकर्ताओं का तर्क है कि 24 जून 2025 के आदेश में भारत निर्वाचन आयोग द्वारा की गई प्रक्रिया, जो कि जनप्रतिनिधित्व अधिनियम 1950 की धारा 21 की उपधारा 3 के अंतर्गत मतदाता सूची का विशेष गहन पुनरीक्षण है, न केवल संविधान के अनुच्छेद 14, 21 और अनुच्छेद 324, 325 और 326 के तहत मतदाताओं के मौलिक अधिकारों का उल्लंघन है, बल्कि जनप्रतिनिधित्व अधिनियम 1950 के प्रावधानों और इसके लिए बनाए गए नियमों, विशेष रूप से मतदाताओं के पंजीकरण नियम, 1960 की वैधता का भी उल्लंघन है।
दूसरी ओर द्विवेदी का तर्क है कि अंतिम गहन पुनरीक्षण 2003 में हुआ था और अब नियमों के साथ प्रतिनिधित्व अधिनियम की धारा 326 और धारा 21(3) के तहत यह आवश्यक है। कोर्ट ने कहा कि हमारा विचार है कि इस मामले की सुनवाई 28 जुलाई 2025 को उपयुक्त न्यायालय में होनी चाहिए। इस बीच, चुनाव आयोग द्वारा आज से एक सप्ताह के भीतर जवाबी हलफनामा दायर किया जाएगा और यदि कोई प्रत्युत्तर होगा तो उसे 28 जुलाई 2025 से पहले दायर किया जाएगा।
कोर्ट ने बताया कि ईसी के वकील द्विवेदी ने कहा कि 11 दस्तावेजों की सूची संपूर्ण नहीं है, जैसा कि जून के आदेश में संकेत दिया गया है, इसलिए हमारा विचार है कि चुनाव आयोग निम्नलिखित दस्तावेजों पर भी विचार करेगा, जैसे कि आधार कार्ड, चुनाव आयोग द्वारा जारी मतदाता पहचान पत्र (ईपीआईसी) और राशन कार्ड। याचिकाकर्ता इस स्तर पर अंतरिम रोक के लिए दबाव नहीं डाल रहे हैं, क्योंकि किसी भी स्थिति में मतदाता सूची का मसौदा 1 अगस्त 2025 को ही प्रकाशित किया जाना है और मामला उससे पहले 28 जुलाई 2025 को अदालत के समक्ष सूचीबद्ध है।
चुनाव आयोग एक संवैधानिक संस्था है जिसका मतदाता से सीधा संबंध है - वरिष्ठ वकील राकेश द्विवेदी
चुनाव आयोग की ओर से पेश वरिष्ठ वकील राकेश द्विवेदी ने कहा कि मतदाता सूची तैयार करना, उस पर पूरा नियंत्रण और पूरी निगरानी चुनाव आयोग के पास है। समय के साथ इसमें संशोधन की आवश्यकता है। एकमात्र प्रश्न शक्ति के प्रयोग के तरीके के बारे में हो सकता है।
जे. धूलिया ने कह कि वे कह रहे हैं कि आपके द्वारा किया जा रहा जल संशोधन न तो संक्षिप्त संशोधन है और न ही गहन संशोधन, बल्कि एक विशेष गहन संशोधन है जो पुस्तक में नहीं है। और अब आप जिस पर सवाल उठा रहे हैं वह नागरिकता है।
वकील राकेश द्विवेदी ने कहा कि चुनाव आयोग एक संवैधानिक संस्था है जिसका मतदाता से सीधा संबंध है। वह किसी को भी मतदाता सूची से बाहर करने का न तो कोई इरादा रखता है और न ही कर सकता है, जब तक कि आयोग को कानून के प्रावधानों द्वारा ऐसा करने के लिए बाध्य न किया जाए। पूरी प्रक्रिया का पालन किया जाएगा, प्राकृतिक न्याय के सभी सिद्धांतों का पालन किया जाएगा।
यह लोकतंत्र और बुनियादी ढांचे पर सीधा प्रहार- अभिषेक मनु सिंघवी
वरिष्ठ अधिवक्ता अभिषेक मनु सिंघवी ने कहा कि एक भी योग्य मतदाता को मताधिकार से वंचित करना समान अवसर को प्रभावित करता है, यह लोकतंत्र और बुनियादी ढांचे पर सीधा प्रहार करता है। जिसपर कोर्ट ने कहा कि हम आपके साथ है।
सिंघवी ने कहा कि यह मानते हुए कि चुनाव आयोग नागरिकता की जाँच कर सकता है, यह एक बिल्कुल अलग प्रक्रिया है। किसी को आकर दिखाना होगा। पूरा देश आधार के पीछे पागल हो रहा है और फिर चुनाव आयोग कहता है कि आधार नहीं लिया जाएगा। यह बिल्कुल नागरिकता जाँच की प्रक्रिया है।
बिहार सरकार के सर्वेक्षण से पता चलता है कि बहुत कम लोगों के पास प्रमाण पत्र हैं- सुप्रीम कोर्ट में बोले वकील कपिल सिब्बल
वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल ने कहा कि बिहार सरकार के सर्वेक्षण से पता चलता है कि बहुत कम लोगों के पास प्रमाण पत्र हैं। पासपोर्ट 2.5%, मैट्रिकुलेशन 14.71%, वन अधिकार प्रमाण पत्र नगण्य संख्या में लोगों के पास हैं। निवास प्रमाण पत्र और ओबीसी प्रमाण पत्र भी नगण्य संख्या में लोगों के पास हैं। जन्म प्रमाण पत्र शामिल नहीं है। आधार कार्ड शामिल नहीं है। मनरेगा कार्ड शामिल नहीं है।
कोर्ट में कपिल सिब्ल ने समझाया अगर मेरा जन्म 1950 के बाद हुआ है, तो मैं भारत का नागरिक हूँ। अगर किसी को इसे चुनौती देनी है, तो मुझे यह जानकारी देनी होगी कि मैं भारत का नागरिक नहीं हूँ। और अगर कोई प्रवासी राज्य से बाहर का है, तो उसे आकर यह फॉर्म भरना होगा। और मुझे अपने माता-पिता का जन्म प्रमाण पत्र कहाँ से मिलेगा? यह प्रक्रिया पूरी तरह से भारतीय चुनाव आयोग के अधिकार क्षेत्र से बाहर है।
वोटर लिस्ट संशोधन प्रक्रिया पूरी होने दीजिए: चुनाव आयोग के वकील
सुनवाई के दौरान चुनाव आयोग के वकील ने कहा कि वोटर लिस्ट संशोधन प्रक्रिया पूरी होने दीजिए। उसके बाद माननीय सदस्य पूरी तस्वीर देख सकेंगे। सुप्रीम कोर्ट ने बिहार में SIR प्रक्रिया निभाने के लिए चुनाव आयोग की ओर से चुने गए समय पर सवाल उठाया. जस्टिस धूलिया ने चुनाव आयोग से कहा कि SIR प्रक्रिया पूरी होगी. उसके बाद चुनाव की घोषणा हो जाएगी और फिर कोई कोर्ट इस मामले में आगे नहीं आएगा।
वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल ने कोर्ट में कहा कि कृपया उनके काम की सराहना करें। वे कह रहे हैं कि अगर आप फॉर्म नहीं भरेंगे तो आपको वोट देने की अनुमति नहीं दी जाएगी।
जे. धूलिया: क्या यह उनका आदेश नहीं है कि जो व्यक्ति योग्य नहीं है उसे वोट नहीं देना चाहिए और जो योग्य है उसे सूची में होना चाहिए? इसके लिए उन्हें नागरिकता देखनी होगी क्योंकि सिर्फ़ नागरिक ही वोट दे सकता है।
सिब्बल: नागरिकता साबित करने की ज़िम्मेदारी मुझ पर नहीं है। मुझे मतदाता सूची से हटाने से पहले उन्हें यह दिखाना होगा कि उनके पास कोई ऐसा दस्तावेज़ है जो साबित करता हो कि मैं नागरिक नहीं हूँ।
आधार कार्ड को नागरिकता के प्रमाण के रूप में इस्तेमाल नहीं किया जा सकता- चुनाव आयोग के वकील
सुनवाई के दौरान चुनाव आयोग के वकील ने कहा कि आधार कार्ड को नागरिकता के प्रमाण के रूप में इस्तेमाल नहीं किया जा सकता। वहीं पीठ ने कहा कि यह एक अलग मामला है और गृह मंत्रालय का विशेषाधिकार है। चुनाव आयोग के वकील ने कहा कि यहाँ तक कि जनप्रतिनिधित्व अधिनियम भी कहता है कि मतदान करने के लिए नागरिक होना ज़रूरी है। वहीं पीठ ने पूछा कि क्या अब इसके लिए बहुत देर नहीं हो गई है?
बेंच ने कहा कि मान लीजिए, 2025 की मतदाता सूची में पहले से मौजूद व्यक्ति को मताधिकार से वंचित करने का आपका फ़ैसला, उस व्यक्ति को फ़ैसले के ख़िलाफ़ अपील करने और इस पूरी प्रक्रिया से गुज़रने के लिए मजबूर करेगा और इस तरह उसे आगामी चुनाव में मतदान के अधिकार से वंचित कर दिया जाएगा। मतदाता सूची में गैर-नागरिकों के नाम न रह जाएँ, यह सुनिश्चित करने के लिए एक गहन प्रक्रिया के ज़रिए मतदाता सूची को शुद्ध करने में कुछ भी ग़लत नहीं है। लेकिन अगर आप प्रस्तावित चुनाव से कुछ महीने पहले ही यह फ़ैसला लेते हैं।
सुनवाई के दौरान जस्टिस धुलिया ने कही ये बात
सुनवाई के दौरान जस्टिस धुलिया ने कहा कि यदि 2003 में SIR हो चुका है और अब आयोग के पास डेटा मौजूद है, तो हो सकता है कि घर-घर जाकर जानकारी जुटाना जरूरी न हो।यह दलील आयोग की तरफ से दी जा सकती है।इस पर याचिकाकर्ता के वकील ने आपत्ति जताते हुए कहा, “अगर कोई व्यक्ति पिछले 10 साल से वोटर है, तो अब उससे दोबारा अपनी नागरिकता या पहचान साबित करने की ज़रूरत क्यों पड़ रही है? कई लोग प्रवासी हैं, वे इस वक्त बिहार में मौजूद नहीं हैं तो उनके अधिकार का क्या होगा?
जस्टिस धुलिया ने आगे कहा, चुनाव आयोग जो कर रहा है, वह उसका संवैधानिक दायित्व है।सवाल यह है कि क्या वोटर लिस्ट के रिवीजन की कोई समयसीमा कानून में तय की गई है? फिर वकील ने स्पष्ट किया कि हम चुनाव आयोग की शक्तियों को चुनौती नहीं दे रहे हैं, बल्कि हम उसके तरीके और प्रक्रिया का विरोध कर रहे हैं।हम चाहते हैं कि यह काम पारदर्शी और नियमों के मुताबिक हो।
वहीं जस्टिस जोयमाल्या बागची ने सुनवाई के दौरान स्पष्ट किया कि स्पेशल रिवीजन (Special Revision) का प्रावधान रिप्रेजेंटेशन ऑफ पीपल्स एक्ट, 1950 की धारा 21(3) में है. उन्होंने कहा, "धारा 21(3) के तहत विशेष पुनरीक्षण की अनुमति है और कानून में साफ तौर पर लिखा है कि इस प्रक्रिया को कैसे अंजाम देना है, यह तय करने का अधिकार चुनाव आयोग के पास है।
बिहार मतदाता सूची पुनरीक्षण पर याचिकाकर्ता के वकील ने SC में उठाए ये सवाल
याचिकाकर्ता की ओर से पेश हुए वरिष्ठ वकील गोपाल शंकरनारायणन ने कहा कि वोटर लिस्ट रिवीजन का प्रावधान कानून में मौजूद है, और यह प्रक्रिया संक्षिप्त रूप में या फिर पूरी लिस्ट को नए सिरे से तैयार कर के भी हो सकती है। उन्होंने चुनाव आयोग पर सवाल उठाते हुए कहा, "अब इन्होंने एक नया शब्द गढ़ लिया है- 'स्पेशल इंटेंसिव रिवीजन' आयोग यह कह रहा है कि 2003 में भी ऐसा किया गया था, लेकिन तब मतदाताओं की संख्या काफी कम थी। अब बिहार में 7 करोड़ से ज़्यादा वोटर हैं, और पूरी प्रक्रिया को बेहद तेजी से अंजाम दिया जा रहा है।
याचिकाकर्ता के वकील ने सुप्रीम कोर्ट में सवाल उठाया कि चुनाव आयोग की ओर से वोटर लिस्ट में नाम शामिल करने के लिए 11 दस्तावेज स्वीकार किए जा रहे हैं, लेकिन आधार कार्ड और वोटर आईडी जैसे अहम पहचान पत्रों को मान्यता नहीं दी जा रही है।
उन्होंने कहा, "जब देशभर में पहचान के सबसे विश्वसनीय दस्तावेज के तौर पर आधार और वोटर आईडी को माना जाता है, तो उन्हें इस प्रक्रिया से बाहर रखना तर्कसंगत नहीं है। इससे पूरा सिस्टम मनमाना और भेदभावपूर्ण नजर आता है।”
याचिकाकर्ता के वकील ने सुप्रीम कोर्ट में दलील दी कि चुनाव आयोग की प्रक्रिया स्पष्ट और समान नहीं है। उन्होंने बताया कि आयोग का कहना है, “अगर कोई व्यक्ति 2003 की वोटर लिस्ट में शामिल है तो उसे अभिभावकों के दस्तावेज या नागरिकता से जुड़े प्रमाण देने की आवश्यकता नहीं है, लेकिन यदि कोई व्यक्ति उस लिस्ट में नहीं है तो उसे नागरिकता साबित करने के लिए दस्तावेज जमा करने होंगे।”
उन्होंने कहा कि अगर चुनाव आयोग जिस प्रक्रिया को चला रहा है वो सघन पुनरीक्षण (Intensive Revision) है तो नियम के अनुसार अधिकारियों को हर घर जाकर वोटर की जानकारी जुटानी चाहिए। उन्होंने आगे कहा, "अगर यह सिर्फ कागजों पर नहीं, बल्कि असली सघन पुनरीक्षण है तो घर-घर जाकर जांच जरूरी है, लेकिन ऐसा हो नहीं रहा।
सुप्रीम कोर्ट में बिहार वोटर लिस्ट की सुनवाई जारी
बिहार में SIR प्रक्रिया के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई चल रही है। सुनवाई शुरू होने के दौरान जस्टिस सुधांशु धूलिया की अगुवाई वाली 2 सदस्यीय बेंच ने सभी याचिकाकर्ताओं के वकीलों से पूछा कौन दलील देगा। इस दौरान चुनाव आयोग के वकील ने कहा कि हमें अभी सभी याचिकाएं नहीं मिली हैं। हमारी शुरुआती आपत्ति पहले सुनी जाए।
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