एनजीओ लायर्स कलेक्टिव पर एफआईआर को इंदिरा जयसिंह ने बताया, असहमति की आवाज़ खामोश करने की साजिश

लायर्स कलेक्टिव ट्रस्ट का कहना है कि चूंकि उसके वरिष्ठ वकील मानवाधिकारों, सेकुलरिज्म और न्यायपालिका की स्वतंत्रता के मसले पर खुलकर बोलते रहे हैं इसलिए उनको निशाना बनाया जा रहा है।

फोटो : सोशल मीडिया
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नवजीवन डेस्क

सुप्रीम कोर्ट की वरिष्ठ वकील और पूर्व सालिसिटर जनरल इंदिरा जयसिंह के एनजीओ कम ट्रस्ट लायर्स कलेक्टिव (एलसी) के खिलाफ एफसीआरए यानी फारेन कांट्रीब्यूशन रेगुलेशन एक्ट के उल्लंघन का आरोप लगाकर सीबीआई ने केस दर्ज किया है। जज बीएच लोया मामले में उच्चस्तरीय जांच के लिए सुप्रीम कोर्ट में दायर याचिका में इंदिरा जयसिंह ने भी जांच के पक्ष में वकालत की थी। साथ ही इंदिरा जयसिंह लोकतांत्रिक और संवैधानिक सवालों पर लगातार मुखर रही हैं और सरकार के खिलाफ खुलकर बोलती रही हैं।

सरकार के इस कदम पर लायर्स कलेक्टिव और उसके ट्रस्टियों ने न केवल अचरज जाहिर किया है बल्कि इसका तीखा विरोध किया है। उन्होंने सरकार की इस कार्रवाई को उनको चुप कराने की साजिश करार दिया है। उनका कहना है कि यह सिलसिला 2016 में ही शुरू हो गया था। लेकिन वो अपने मंसूबों में सफल नहीं होंगे।


फाउंडिंग मेंबर आनंद ग्रोवर और इंदिरा जयसिंह वाले ट्रस्ट लायर्स कलेक्टिव ने विज्ञप्ति में कहा है कि “एफआईआर पूरी तरह से फारेन कांट्रीब्यूशन रेगुलेशन एक्ट, 2010 (एफसीआरए) के तहत उसकी प्रक्रियाओं पर आधारित है जिसमें 2016 में गृह मंत्रालय ने आदेश पारित कर लायर्स कलेक्टिव के विदेशी फंड हासिल करने की प्रक्रिया को निलंबित और रद्द कर दिया है। जिसको एलसी ने बांबे हाईकोर्ट में चुनौती दी है। और याचिका अभी पेंडिंग है।”

ट्रस्ट ने बताया कि यह एफआईआर बीजेपी से जुड़े एक संगठन लायर्स वायस द्वारा सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दायर करने के बाद दर्ज करायी गयी है। इसमें नीरज नाम का एक शख्स शामिल है जो दिल्ली बीजेपी के लीगल सेल का हेड है। ट्रस्ट का कहना है कि चूंकि उसके वरिष्ठ वकील मानवाधिकारों, सेकुलरिज्म और न्यायपालिका की स्वतंत्रता के मसले पर खुलकर बोलते रहे हैं इसलिए उनको निशाना बनाया जा रहा है।


एलसी ने इसे लीगल प्रोफेशन पर खुला हमला करार दिया है। उसने कहा है कि मूल रूप से यह हाशिए के लोगों का प्रतिनिधित्व करने और मौजूदा सत्ता के खिलाफ विरोध दर्ज करने का नतीजा है। यह पूरी तरह से अभिव्यक्ति की आजादी के खिलाफ भी जाता है।

बयान में कहा गया है कि कानूनी प्रतिनिधित्व का अधिकार संविधान के मूल अधिकारों में आता है और यह दुनिया के किसी भी सभ्य देश की न्यायप्रणाली का अभिन्न हिस्सा है। इसके साथ ही एलसी ने इस बात पर अचरज जाहिर किया है कि एक ऐसा संगठन जिसके पास न तो कोई इनकम है न ही अपना कोई पैन कार्ड है जो किसी भी पीआईएल के लिए जरूरी होती है। ऐसे संगठन की याचिका पर सरकार ने नोटिस जारी किया है।

ट्रस्ट ने बताया कि हाल के दिनों में उसने भीमा कोरेगांव और पश्चिम बंगाल के पुलिस कमिश्नर राजीव कुमार का मामला उठाया था जो राजनीतिक तौर पर बेहद ही संवेदनशील मामले थे। और अब इन मामलों को लेकर ही उसे निशाना बनाया जा रहा है।

इंदिरा जयसिंह का कहना था कि इसके पहले उन्होंने सोहराबुद्दीन के मामले में भी पीड़ित पक्ष की वकालत की थी जिसमें बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह खुद एक आरोपी थे और अब जबकि वह गृहमंत्री बन गए हैं तो इस एफआईआर के पीछे की मंशा को समझना किसी के लिए कठिन नहीं है।

ट्रस्ट का कहना है कि एफसीआरए की प्रक्रियाओं के उल्लंघन का कोई मामला ही नहीं बनता है। महिलाओं के अधिकारों के लिए काम करने के एवज में एलसी से इंदिरा जयसिंह को मेहनताना हासिल करने पर एफसीआरए में कोई रोक नहीं है। इस बात को सब लोग जानते हैं। ट्रस्ट का कहना है कि जयसिंह को यह मेहनताना एएसजी बनने से पहले उसके दौरान और बाद में भी मिलता रहा है। और यह सब कुछ कानून और विधि मंत्रालय की जानकारी और उसके नियमों और शर्तों के मुताबित हो रहा था। और जिसके बारे में गृह मंत्रालय को भी पता था। लिहाजा भ्रष्टाचार निरोधक कानून के तहत यह कोई मामला ही नहीं बनता है। इसी तरह से एफसीआरए के तहत आनंद ग्रोवर के आधिकारिक खर्चों के भुगतान का भी प्रावधान था। लेकिन इन सभी जवाबों को गृहमंत्रालय ने दरकिनार कर दिया।

सबसे दिलचस्प बात यह है कि यह सब कुछ 2016 से चला आ रहा है और हर चीज रिकार्ड पर है। ऐसे में सवाल यह बनता है कि आखिर 2016 से 2019 के बीच ऐसी क्या तब्दीली आ गयी जिसमें गृहमंत्रालय को यह कदम उठाना पड़ा। हालांकि संगठन का कहना है कि वो हर फोरम पर कानून के मुताबिक अपनी रक्षा करेगा।

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