देश के सबसे प्रदूषित शहरों की लिस्ट जारी, नंबर वन पर है बिहार का ये शहर, जानें कितने नंबर पर है दिल्ली?

केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की ओर से जारी किए गए आंकड़ों में 163 अलग अलग शहरों के प्रदूषण के स्तर को मापा है।

फोटो: सोशल मीडिया
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नवजीवन डेस्क

देश में वायु प्रदूषण के स्तर में बहुत ज्यादा सुधार होता दिखाई नहीं दे रहा है। लोगों को भी इससे भारी दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है। वहीं केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड द्वारा जारी आंकड़ों के अनुसार सबसे ज्यादा प्रदूषित शहरों में बिहार का कटिहार पहले नंबर पर है। वहीं देश की राजधानी दिल्ली वायु गुणवत्ता सूचकांक में बहुत खराब एक्यूआई के साथ दूसरे नंबर पर काबिज है।

  • केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की ओर से जारी किए गए आंकड़ों में 163 अलग अलग शहरों के प्रदूषण के स्तर को मापा है।

  • इसके अनुसार बिहार के कटिहार में 7 नवंबर को 163 भारतीय शहरों में सबसे अधिक एक्यूआई (वायु गुणवत्ता सूचकांक) 360 था।

  • आंकड़ों से पता चलता है कि दूसरे नंबर पर दिल्ली का एक्यूआई 354 रहा। वहीं एनसीआर के नोएडा का 328 और गाजियाबाद का एक्यूआई 304 रहा।

  • इसके अलावा कई और शहरों में प्रदूषण का स्तर बहुत खराब मापा गया। बिहार के बेगूसराय में एक्यूआई 339, हरियाणा के फरीदाबाद में 338, बल्लभगढ़ का 334 रहा।

  • वहीं बिहार के ही सिवान का 331, सोनीपत में 324, ग्वालियर में 312 और गुरुग्राम में एक्यूआई 305 रिकॉर्ड किया गया।

पराली जलाने की घटनाओं में भी ज्यादा कमी नहीं देखी जा रही

वायु प्रदूषण में ज्यादा सुधार ना होता देख दिल्ली के पर्यावरण मंत्री गोपाल राय ने वाहनों से होने वाले उत्सर्जन को कम करने के लिए उत्तर प्रदेश और हरियाणा के मुख्यमंत्रियों से अपील की है कि वे राजधानी की सीमाओं पर ट्रैफिक जाम से बचने के लिए पेरिफेरल एक्सप्रेसवे पर गैर-जरूरी सामान ले जाने वाले ट्रकों को डायवर्ट करने के उपाय करें। वहीं पराली जलाने की घटनाओं में भी बहुत ज्यादा कमी नहीं देखी जा रही है।

गौरतलब है कि वायु गुणवत्ता सूचकांक के अनुसार शून्य से 50 के बीच एक्यूआई अच्छा, 51 से 100 के बीच संतोषजनक, 101 से 200 के बीच मध्यम, 201 से 300 के बीच खराब, 301 से 400 के बीच बहुत खराब और 401 से 500 के बीच एक्यूआई गंभीर माना जाता है।

प्रदूषण को कम करने के लिए आप ये कदम उठा सकते हैं:

  • निजी वाहनों की जगह सार्वजनिक वाहनों का इस्तेमाल करें, सड़क पर जितने कम वाहन रहेंगे उतना कम प्रदूषण भी होगा।

  • जिनता हो सके खुद दफ्तर जाने के लिए सार्वजनिक वाहनों का इस्तेमाल करें, साइकिल का भी इस्तेमाल कर सकते हैं।

  • कार पूलिंग करें। कार पूलिंग में आप एक ही कार में अन्य लोगों को भी बैठाकर दफ्तर समेत अन्य जगहों पर ले जा सकते हैं ताकि सबको अपने निजी वाहनों का इस्तेमाल न करना पड़े।

  • सौर ऊर्जा का इस्तेमाल  करें, दैनिक जरूरतों को पूरा करने के लिए इस्तेमाल होने वाली बिजली उत्पन्न करने के लिए जीवाश्म ईंधन का उपयोग किया जाता है। इससे निकलने वाले धुएं से प्रदूषण बढ़ता है।

  • घरों में सोलर पैनल लगवाने के साथ सौर ऊर्जा पर चलने वाले वाहनों का भी इस्तेमाल करें, ऊर्जा पर चलने वाले वाहनों से दूषित गैस उत्सर्जन की भी समस्या नहीं होती।

  • अपने बगीचे की सूखी पत्तियों को जलाने की जगह उनका खाद बनाकर बगीचे में ही इस्तेमाल करें, ऐसे में पत्तियां जलाने से धुआं भी नहीं होगा।

आइए अब यह जानने की कोशिश करते हैं कि वायु प्रदूषण किस वजह से फैलता है।

प्रदूषण के क्या कारण हैं?

  • भारत में बहुत सारे उद्योग और पावर प्लांट हैं, जहां से दूषित धुआं निकलता है, धुआं हवा में मिलकर हवा को प्रदूषित करता है।

  • आबादी के साथ निजी वाहन भी बढ़ रहे हैं, सार्वजनिक वाहनों की जगह निजी वाहनों का इस्तेमाल करने से गाड़ियों से निकलने वाला दूषित धुंआ हवा में प्रदूषण फैलाता है।

  • कारखानों और फैक्टरियों की चिमनियों से लगातार भारी मात्रा में कार्बन मोनोऑक्सइड और रासायनिक धुंआ निकलने से वायु प्रदूषण बढ़ाता है।

  • घरों और दफ्तरों में लगे एयर कंडीशनर से क्लोरोफ्लोरो कार्बन निकलते हैं, जो वातावरण को गंभीर रूप से दूषित करते हैं और साथ ही ओजोन परत को भी नुक्सान पहुंचाते हैं।

  • हर साल फसल कटने के बाद किसानों द्वारा पराली जलाई जाती है, जिसके कारण अत्यधिक मात्रा में धुएं का उत्सर्जन होता है। यह धुंआ गंभीर रूप से प्रदूषित फैलाता है।


पीएम 2.5 और पीएम 10 क्या है?

अब यह जानते हैं कि आखिर पीएम 2.5 और पीएम 10 क्या है? पीएम 2.5 और पीएम 10 वायु गुणवत्ता को मापने का पैमाना है। पीएम का मतलब होता है पार्टिकुलेट मैटर जो कि हवा के अंदर सूक्ष्म कणों को मापते हैं। पीएम 2.5 और 10 हवा में मौजूद कणों के आकार को मापते हैं। पीएम का आंकड़ा जितना कम होगा हवा में मौजूद कण उतने ही अधिक छोटे होंगे।

हवा में पीएम 2.5 की मात्रा 60 और पीएम10 की मात्रा 100 होने पर ही हवा को सांस लेने के लिए सुरक्षित माना जाता है। गैसोलीन, तेल, डीजल ईंधन या लकड़ी के दहन से पीएम 2.5 का अधिक उत्पादन होता है। अपने छोटे आकार के कारण, पार्टिकुलेट मैटर फेफड़ों में गहराई से खींचा जा सकता है और पीएम 10 की तुलना में अधिक हानिकारक हो सकता है।

(आईएएनएस के इनपुट के साथ)

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