महाराष्ट्रः मोदी सरकार की राह पर सीएम फडणवीस, लाल किले की तरह राज्य के 25 किले निजी हाथों में देने का फैसला

राज्य के किलों को निजी हाथों में सौंपने का जिम्मा महाराष्ट्र सरकार ने पर्यटन एवं विकास निगम को दिया है जो खुद अपने रिजॉर्ट्स को संभाल नहीं पा रहा है। पुरातत्ववेत्ताओं और धरोहर प्रेमियों को सरकार की किलों को रिजॉर्ट्स में बदलने की ये योजना नहीं भा रही है।

प्रतीकात्मक फोटो
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नवीन कुमार

जिस तरह देखरेख के नाम पर दिल्ली में मोदी सरकार ने लाल किले को निजी कंपनी को सौंप दिया है, उसी राह पर चलते हुए महाराष्ट्र में बीजेपी की देवेंद्र फडणवीस सरकार ने 25 किलों को लीज पर निजी हाथों में सौंपने का ऐलान किया है। महाराष्ट्र सरकार में पर्यटन सचिव विनीता सिंघल के मुताबिक, राज्य में दो प्रकार के किले हैं। ‘ए’ वर्ग वाले में छत्रपति शिवाजी महाराज के जीवन से संबंधित और अन्य ऐतिहासिक किले हैं जबकि ‘बी’ वर्ग में 300 असंरक्षित किले हैं।

इसी ‘बी’ वर्ग में से पहले 25 किलों का चयन पर्यटन के विकास के लिए ऐतिहासिक स्थल के रूप में किया जाएगा और उसे लीज पर दिया जाएगा। लेकिन किले को शादी या समारोह के लिए भाड़े पर देने का प्रावधान नहीं है। फिलहाल इसका भाड़ा अभी तय नहीं है। वहीं सूत्रों का कहना है कि ऐतिहासिक महत्व वाले भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण की संरक्षित सूची में शामिल कई किलों के संरक्षण के लिए राज्य सरकार ने 500 करोड़ रुपये का फंड रखा है। लेकिन हेरिटेज पर्यटन को बढ़ावा देने के नाम पर राज्य सरकार अब अपनी नई नीति के तहत निजी कंपनियों से हाथ मिलाने जा रही है।

पहले तो राज्य मंत्रिमंडल ने 3 सितंबर को कुछ किलों को उद्योगपतियों और रिसॉर्ट व्यवसायियों को 30 साल के लिए लीज पर देने का फैसला किया। यह भी निर्णय किया गया कि ये व्यवसायी वहां होटल निर्माण कर सकते हैं और पर्यटकों को आकर्षित करने के लिए शराब पीने और शादी की पार्टी की छूट मिल सकती है। कहा गया कि इससे दस लाख रोजगार का भी निर्माण होने की संभावना है।

लेकिन विपक्ष ने जब शोर मचाया, तो सरकार ने एक कदम पीछे हटते हुए घोषणा की कि ऐसे किलों में शराब और शादी की पार्टी की इजाजत नहीं होगी। इतना ही नहीं, छत्रपति शिवाजी महाराज से जुड़ा कोई भी हेरिटेज किला रिसॉर्ट में तब्दील नहीं होगा। सरकार की इस घोषणा के बावजूद पुरातत्ववेत्ताओं और किला प्रेमियों को किले को रिसॉर्ट में बदलकर व्यावसायिक केंद्र करने की योजना भा नहीं रही है। पुरातत्ववेत्ता और किला प्रेमी दोनों मान रहे हैं कि इससे किले को सुरक्षित रखना मुश्किल होगा।


पुरातत्ववेत्ता सूरज पंडित कहते हैं, “महाराष्ट्र में ऐतिहासिक किले हैं जिनका अपना महत्व है। इसलिए किले के अंदर रिजॉर्ट चलाने की इजाजत सरकार देती है तो इस पर गंभीरता से निगरानी रखनी पड़ेगी कि पुरातत्व के नियम तोड़े तो नहीं जा रहे हैं। किलों में कई यादगार चीजें हैं जिन्हें पुरातत्व के हिसाब से सुरक्षित रखना है। हमें यह देखना पड़ेगा कि कहीं उसे नुकसान तो नहीं पहुंचाया जा रहा है। धरोहर को सुरक्षित रखना हमारी जिम्मेदारी है। यह विकास समझदारी एवं जिम्मेदारी से होना चाहिए।”

वहीं, पर्वतारोही और किला प्रेमी हृषिकेश यादव ने अपनी चिंता इस तरह जताई, “देखना होगा कि इतिहास से जुड़े इन किलों का स्वरूप न बदला जाए। यह हमारे लिए अभिमान का विषय है। जिस संरचना से हमें इतिहास की जानकारी मिलती है और जिससे हम प्रेरित होते हैं, वहां शादी के समारोह नहीं होने चाहिए और पार्टी में शराब नहीं परोसा जाना चाहिए। यहां स्वच्छता रहेगी और स्थानीय लोगों को कितना रोजगार मिलेगा, इसे लेकर संदेह ही है।”

वैसे, महाराष्ट्र पर्यटन और विकास निगम को किलों को रिजॉर्ट में तब्दील करने की जिम्मेदारी दी गई है। लेकिन यह विडंबना ही है कि निगम पहले से राज्य के तमाम पर्यटन स्थलों पर स्थित अपने रिजॉर्ट को सही ढंग से चला नहीं पा रहा है। घाटे वाले रिसॉर्ट पार्टनरशिप में चलाए जा रहे हैं। स्वाभाविक है कि इस बात पर आशंका जताई जा रही है कि निगम हेरिटेज पर्यटन को कितना बढ़ावा दे पाएगा और किले को भी सुरक्षित रखने में उसे कितनी कामयाबी मिल पाएगी।

पुरातत्ववेत्ता कुरूष दलाल कहते हैं, “राज्य सरकार ने इससे पहले भी योजना बनाई थी जिसमें किले के बाहर रिजॉर्ट बनाने की इजाजत थी। अब नई नीति है जिसमें किले के अंदर रिजॉर्ट चलाना है। असलियत यह है कि राज्य में इतने किले हैं जिन्हें सरकार संभाल नहीं पा रही है, इसलिए वह इन्हें व्यवसायियों को सौंपने जा रही है। लेकिन सबसे बड़ी बात यह है कि हमें धरोहर बचाना है। इसके लिए कायदे-कानून सख्त करने पड़ेंगे। जिस किले को लीज पर दिया जाए, वहां पर निगरानी रखने के लिए सरकारी या पुरातत्व विभाग के दबंग लोग होने चाहिए।”

लेकिन जमीनी हकीकत ये है कि पुरातत्व विभाग खुद स्टाफ की कमी से जूझ रहा है। उदाहरण के लिए, उस्मानाबाद में सात-आठ धरोहरों की निगरानी के लिए एक कर्मचारी है। कुरूष दलाल ने कहा कि दूसरी बात यह भी देखनी होगी कि मंत्री या नेताओं या उनके करीबियों को किले लीज पर न दिए जाएं। ऐसा होने पर ही ये ऐतिहासिक धरोहर बच पाएंगे।

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Published: 14 Sep 2019, 7:59 AM
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