महाराष्ट्र: शाकाहारी और मांसाहारी की पहचान के लिए स्कूली बच्चों के आईकार्ड पर बनाए जाएंगे हरे और लाल निशान

महाराष्ट्र सरकार स्कूली छात्रो के आईडी कार्ड पर हरे और लाल रंग के निशान वाली डॉट लगाएंगी ताकि पता चल सके कि कौन सा छात्र शाकाहारी है और कौन सा मांसाहारी। इस फैसले की चौतरफा आलोचना हो रही है।

सांकेतिक फोटो
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नवजीवन डेस्क

महाराष्ट्र में सरकारी स्कूलों में पढ़ने वाले छात्रों की पहचान उनकी भोजन पसंद के आधार पर की जाएगी और इसके लिए उन्हें हरे और लाल डॉट वाले आइडेंटिटी कार्ड दिए जाएंगे। जिन छात्रों को हरे डॉट वाले कार्ड मिलेंगे वे शाकाहारी होंगे और जिन के कार्ड पर लाल रंग का डॉट होगा उन्हें मांसाहारी माना जाएगा।

महाराष्ट्र में बीजेपी-शिंदे सरकार ने इस फैसले तुरंत लागू करने के लिए स्कूल प्रबंध समितियों को व्यवस्था करने के आदेश दिए हैं। सरकार का कहना है कि ऐसा प्रधानमंत्री पोषण शक्ति योजना के तहत छात्रों को दिए जाने वाले फल और अंडेके वितरण के बेहतर बनाने के लिए किया जा  रहा है।

इससे पहले महाराष्ट्र के स्कूली शिक्षा विभाग ने ऐलान किया था कि बच्चों के मिडडे मील में पोषण तत्व शामिल करने के लिए कुछ अन्य भोज्य भी शामिल किए गए हैं, इनमें फलों के तौर पर केले और अंडे शामिल किए गए थे। जो छात्र शाकाहारी हैं उन्हें केले दिए जाने हैं और जो मांसाहारी हैं उन्हें अंडा दिया जाएगा। लेकिन बुधवार को विभाग ने स्कूल प्रबंधन समितियों को कहा है कि बेहतर वितरण के लिए छात्रों के आईकार्ड पर हरे और लाल रंग की निशान लगाए जाएं। 

इंडियन एक्सप्रेस की खबर के मुताबिक इस फैसले की तीखी आलोचना हो रही है। शिक्षाविदों ने इसे अनावश्यक वर्गीकरण करार दिया है। इंडियन एक्सप्रेस ने इस बाबत शिक्षाविद् वसंत कलपांदे का बयान प्रकाशित किया है। इसमें कहा गया है कि इस योजना को बिना छात्रों की मार्किंग किए भी लागू किया जा सकता है। उन्होंने ऐसे कदम पर चिंता जताते हुए कहा कि यह छात्रों को भोजन पसंद के आधार पर बांटने की कोशिश है। उन्होंने कहा कि हमारा सामाजिक तानाबाना ऐसा है कि विविध सांस्कृतिक पृष्ठभूमि से आने वाले वर्गों में कई बार कुछ छात्र यदा-कदा अंडा खाते हैं, भले ही उन्हे शाकाहारी करार दिया जाता हो।

अखबार ने कुछ अध्यापकों के हवाले से कहा है कि उनका मानना है कि ऐसा स्कूल के हाजिरी रजिस्टर से भी हो सकता था और इसके लिए आईकार्ड को मार्क करने की जरूरत नहीं है। कई अध्यापकों ने यह भी कहा कि उन्हें पहले से ही छात्रों की पसंद पता है और छात्र इस बारे में खुद भी बता सकते हैं।


शिक्षा विभाग के सर्कुलर में कहा गया है कि जिन छात्रों के अभिभावन मांसाहार की सहमति देंगे उनके आईकार्ड पर लाल निशान लगाया जाए और जिन छात्रों के पास अभिभावकों की सहमति नहीं होगी उनपर हरा निशान लगाया जाए। लेकिन सवाल है कि आखिर उन छात्रों का क्या होगा जो कभी-कभी अंडा या मांसाहार खाते हैं।

सरकारी प्रस्ताव में कहा गया है कि ऐसे स्कूल जहां 40 फीसदी अभिभावकों ने बच्चों को अंडा न दिए जाने की सहमति नहीं दी है, उन्हें मिड डे मील योजना से बाहर रखा जाएगा। इसके अलावा स्कूलों को इसकॉन जैसी संस्थाओं से भी छात्रों के लिए भोजन मिलता है, जिसमें अधिकांशत: फल आदि होते हैं।

सरकार के इस नए आदेश पर कुछ समूहों ने कहा है कि धार्मिक या भोजन की पसंद के आधार पर छात्रों को बांटना सही नहीं है। वहीं कुछ समूहों का दावा है कि अंडे जैसी चीजों को भोजन में शामिल करने से कई लोगों की धार्मिक भावनाएं आहत हो सकती हैं। इस बीच फ्री प्रेस जर्नल ने एक रिपोर्ट में कहा है कि मिडडे मील में अंडे शामिल किए जाने का मुद्दा काफी समय से विवादित रहा है। देशभर में महाराष्ट्र समेत सिर्फ 14 राज्य ही मिडडे मील में अंडे शामिल करते हैं।

वहीं शिक्षाविद आईकार्ड की कलरकोडिंग किए जाने के गलत मानते हैं। एक शिक्षाविद किशोर दराक ने फ्री प्रेस जर्नल से बातचीत में कहा कि उन्होंने सरकार से इस सर्कुलर को संशोधित करने की अपील की है। उन्होंने कहा कि स्कूलों के मिडडे मील में धार्मिक या जातीय व्यवस्था को लाना अच्छा नहीं है और बिना इसके भी बच्चों को पोषण वाले भोजन दिए जा सकते हैं।

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