फेक न्यूज के चलते बढ़ते सांप्रदायिक दंगों पर ममता बनर्जी सख्त, अंकुश लगाने के लिए नया कानून लाने का फैसला
प्रचार के लिए झूठ का सहारा सदियों से लिया जाता रहा है। लेकिन सोशल मीडिया के जमाने में फेक न्यूज की समस्या जिस तरह से बढ़ी है, उससे भारत में शांति व्यवस्था बनाए रखने के लिए यह बड़ी चुनौती के रूप में उभरी है।
![फोटो: सोशल मीडिया ](https://media.assettype.com/navjivanindia%2F2018-06%2F49825a09-85aa-4657-9ec9-83dc7b237b13%2F16a2859b_603a_4774_8f4c_0b59d511c064.jpg?rect=0%2C7%2C650%2C366&auto=format%2Ccompress&fmt=webp)
फेक न्यूज की वजह से हाल के महीनों में देश के कई राज्यों में होने वाली सांप्रदायिक झड़पों और हिंसा में दर्जनों लोगों की जान जाने के बाद अब कई राज्य अलग-अलग तरीके से इस समस्या पर अंकुश लगाने का प्रयास कर रहे हैं। बीते साल इसी वजह से सांप्रदायिक दंगों का सामना करने वाली पश्चिम बंगाल की ममता बनर्जी सरकार ने सोशल मीडिया पर फेक न्यूज या पोस्ट की गंभीर होती समस्या पर अंकुश लगाने के लिए एक नया कानून बनाने का फैसला किया है। देश में यह अपनी तरह का पहला कानून होगा। सरकार कानून तैयार करने के मकसद से बीते कुछ सालों के दौरान बंगाल और देश के दूसरे राज्यों में सोशल मीडिया पर आने वाली फर्जी पोस्ट और सांप्रदायिक सद्भाव बिगाड़ने वाली खबरों का डाटा बैंक बना रही है। इसके साथ ही ऐसा करने वाले लोगों का आंकड़ा भी जुटाया जा रहा है।
पश्चिम बंगाल के गृह मंत्रालय के अधिकारियों का कहना है कि प्रस्तावित कानून का मकसद अपराध की प्रकृति तय करने और शांति, सांप्रदायिक सद्भाव बिगाड़ने की कोशिश करने वाले दोषी लोगों की सजा में और ज्यादा पारदर्शिता लाना है। बीते कुछ सालों के दौरान राज्य में फेक न्यूज के मामले ज्यादा आये है। बीते कम से कम दो सालों के दौरान राज्य में फैले सांप्रदायिक दंगों में भी इनकी अहम भूमिका रही है। बंगाल में अब तक ऐसे मामलों में दोषियों के खिलाफ भारतीय दंड संहिता की धारा 504 और 505 (1)(बी) के तहत कार्रवाई होती रही है। लेकिन गृह मंत्रालय का कहना है कि बेहद गंभीर हो चुकी इस समस्या से निपटने के लिए अब एक अलग कड़ा कानून जरूरी है। इस मामले में सरकार राज्य पुलिस की भी सहायता ले रही है।
खबरों के मुताबिक, इस कवायद के तहत सबसे पहले उन फर्जी ट्विटर और फेसबुक खातों की पहचान की जा रही है जिनके जरिए लगातार फेक न्यूज और ऐसी पोस्ट भेजी जाती है। इसके साथ ही ऐसे लोगों को इस काम के लिए मिलने वाले पैसों के स्रोतों की भी जांच की जा रही है। एक अधिकारी ने बताया कि किसी के खिलाफ कार्रवाई से पहले फेक न्यूज पोस्ट करने के उसके मकसद का पता लगाया जाएगा। अभी हाल में सोशल मीडिया पर वायरल होने वाले एक पोस्ट में कहा गया था कि बंगाल सरकार ने ईद के मौके पर पांच दिनों की सरकारी छुट्टी का एलान किया है। वित्त मंत्रालय के लेटरहेड पर जारी इस सर्कुलर से भ्रामक स्थिति पैदा हो गई थी। आखिर में सरकार को इसका खंडन करना पड़ा और पुलिस ने इस मामले की जांच शुरू कर दी है।
सोशल मीडिया पर फेक न्यूज का चलन बढ़ने की वजह से हाल में देश के कई हिस्सों में हिंसा और हत्या जैसी घटनाएं हो चुकी हैं। बंगाल के पड़ोसी झारखंड में जहां पशु चोर होने के संदेह में हाल ही में सात लोगों को पीट-पीट कर मार दिया। वहीं असम में बीते सप्ताह इसी आरोप में दो लोगों की भीड़ की पिटाई से मौत हो गई। इससे पहले मेघालय में फेक न्यूज के चलते ही सिखों और स्थानीय खासी समुदाय में भड़की हिंसा की वजह से दो सप्ताह तक भारी तनाव बना रहा और राजधानी शिलांग में कर्फ्यू लगाना पड़ा।
असम में अब पुलिस ने ऐसे मामलों में सख्ती दिखाते हुए अतिरिक्त पुलिस महानिदेशक स्तर के एक अधिकारी को फेक न्यूज और अफवाहों पर निगरानी का जिम्मा सौंपा है। फेक न्यूज और अफवाहें फैलाने के आरोप में राज्य में अब तक लगभग चार दर्जन लोगों की गिरफ्तारी हो चुकी है। असम पुलिस ने निगरानी तेज करने के लिए एक साइबरडोम बनाया है तो हैदराबाद पुलिस ने इसके लिए हॉकआई नामक एक ऐप विकसित किया है।
सोशल मीडिया पर फेक न्यूज की पहचान कर उसका खंडन करने वाले वेब प्लेटफार्म आल्टन्यूज के संस्थापक प्रतीक सिन्हा का कहना हैं, “फर्जी सूचनाओं से लोगों के मन में डर का माहौल बन रहा है। इससे समाज के दो तबकों में तनाव तो बढ़ा ही है, कई लोगों को जान से भी हाथ धोना पड़ा है।” ऐसी ही एक अन्य वेबसाइट एसएमहोक्सस्लेयर के संस्थापक पंकज जैन कहते हैं, “फेक न्यूज तंत्र का गठन किसी एक राजनीतिक पार्टी के आदर्शों या हितों को पूरा करने के लिए नहीं हुआ है। तमाम राजनीतिक दल अपने सियासी फायदे के लिए एक रणनीति के तौर पर इसका इस्तेमाल कर रहे हैं।” विशेषज्ञों के मुताबिक, व्हाट्सएप जैसे ऐप के जरिए किसी फेक न्यूज या आपत्तिजनक पोस्ट को दूसरे को फारवर्ड करने के बाद उसे अपने सिस्टम से डिलीट करना आसान है। इससे भेजने वाला अपनी जिम्मेदारी से बच निकलता है।
विशेषज्ञों का कहना है कि फेक न्यूज एक ऐसी नई सामाजिक बुराई के तौर पर उभरा है जिसने पुलिस और समाज के समक्ष गंभीर और अनूठी चुनौती पेश कर दी है। समाजशास्त्री प्रोफेसर अनिर्वाण गांगुली कहते हैं, “फेक न्यूज निजी, पेशेवर और राजनीतिक बदले का नया हथियार बन गया है।” विशेषज्ञों ने पश्चिम बंगाल सरकार की ओर से प्रस्तावित नए कानून का स्वागत तो किया है लेकिन साथ ही इसके सही इस्तेमाल पर जोर दिया है। साइबर एक्सपर्ट धीरेन दत्त कहते हैं, “डर इस बात का है कि कहीं यह कानून राजनीतिक आकाओं को खुश करने का हथियार न बन जाए।”
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