बीजेपी को तुर्की-ब-तुर्की जवाब, ध्रुवीकरण के बदले ध्रुवीकरण की नीति से ममता ने जीता बंगाल, और क्या रहे जीत के कारण
ममता बनर्जी ने बंगाल जीतने के लिए जो नीति अपनाई वह बहुत दिलचस्प है। ममता ने बीजेपी को तुर्की-ब-तुर्की जवाब दिया, ध्रुवीकरण के बदले ध्रुवीकरण की नीति अपनाई और ग्लैमर का तड़का लगाकर बीजेपी को सपनों को चकनाचूर कर दिया।

बड़े-बड़े चुनाव पंडित पश्चिम बंगाल के नतीजों से गलत साबित हुए हैं। यहां तक कि तृणमूल समर्थकों ने भी नहीं सोचा था कि ममता की पार्टी की सीटें 2016 के चुनाव 211 सीटे का आंकड़े को छू पाएंगी। सार्वजनिक तौर पर वे कह रहे थे कि दीदी की पार्टी को 170 के आसपास सीटें मिल सकती हैं। लेकिन अंदर ही अंदर वे दुआ मांग रहे थे कि किसी तरह बहुमत मिल जाए। लेकिन कल्पना तक नहीं की थी कि तृणमूल 200 से ज्यादा सीटें जीतकर फिर से सत्ता में वापसी करेगी।
मुख्यधारा के मीडिया ने एक बार फिर बीजेपी के ढोल बजाकर अपनी विश्वसनीयता पर बट्टा लगाया। मीडिया ने अनुमान जताया कि बीजेपी 148 के जादुई आंकड़े से कुछ ही देर रह पाएगी। बीते 5-6 सालों में कुछ मीडिया संस्थान जो दिल्ली और बंगाल में शुरु हुए हैं उन्होंने तो पहले ही बीजेपी की जीत का ऐलान कर दिया था। बीजेपी नेताओँ ने भी जीत का ऐलान करते हुए कहा था कि आठवां चरण आते आते बीजेपी की जीत निश्चिच हो गई है। यहां तक कि पहले चार चरण में ही बीजेपी ने 100 से ज्यादा सीटें जीतने का दावा कर दिया था। लेकिन नतीजे सामने हैं।
बंगाल चुनावों से आखिर क्या निकलता है, इन बिंदुओं में समझिए:
अच्छे शासन को वोट मिला
मीडिया के हो-हल्ले और सत्ता विरोधी लहर और भ्रष्टाचार के आरोपों के बावजूद ममता बनर्जी ने कोरोना की पहली लहर के दौरान पिछले साल शानदार काम किया था। लड़कियों के लिए उनकी कन्याश्री योजना और स्वास्थ्य साथी योजना काफी लोकप्रिय और कामयाब रहीं। बहुत से राज्यों में ऐसी व्यवस्था नहीं है जहां आम लोगों को दिल का ऑपरेशन भी सरकारी खर्च पर कराने का मौका मिलता हो। उनकी कल्याणकारी योजनाओं को लोगों ने स्वीकार करते हुए उन्हें जिताया है।
अल्पसंख्यक वोट
बीजेपी जहां ममता बनर्जी पर तुष्टिकरण के आरोप लगा रही थीं और चूंकि बंगाल में अल्पंख्यकों की आबादी करीब 30 फीसदी है, ऐसे में सभी योजनाओं का लाभ अल्पसंख्यों को भी मिलना ही था। इसी दौरान ममता बनर्जी ने अपनी हिंदू ब्राह्मण पहचान को भी खूब अच्छे से भुनाया। उन्होंने सरेआम सभा में श्लोकों का पाठ किया। इस सबके चलते बीजेपी को हराने की संभावना देखते हुए वाम और कांग्रेस के परंपरागत वोटर भी ममता के समर्थन में खड़े हो गए।
बंगाल की महिला शक्ति
बीजेपी ने बंगाल की महिला शक्ति का आंकलन करने में गलती कर दी। किसी भी हिंदी भाषी राज्य के विपरीत बंगाल में ज्यादातर महिलाएं अपने फैसले खुद लेती हैं, वह प्यार का मामला हो, शादी का हो या फिर करियर चुनने का। यहां तक कि शादी के बाद भी महिलाओं को आर्थिक मामलों में उनके पति के बराबर ही अधिकार मिलते हैं। ऐसे में प्रधानमंत्री द्वारा ममता बनर्जी पर हमले करने से महिलाओं के काफी गुस्सा भी आया। इसके अलावा यूपी के सीएम योगी आदित्यनाथ ने तो बंगाल जाकर ऐलान कर दिया था कि बीजेपी के सत्ता में आने पर वे लव जिहाद पर चाबुक चलाएंगे। बीजेपी के बंगाल अध्यक्ष ने ममता पर उनकी चोट के दौरान आधे कपड़े पहनने का आरोप लगाया। इस सबसे बीजेपी को काफी नुकसान हुआ और लोग बीजेरी से नाराज हो गए। लोगों को साफ समझ आ गया कि बीजेपी को बंगाली परंपराओं और अस्मिता की कोई जानकारी नहीं है।
बीजेपी को उसी की भाषा में जवाब
शरीफ लोगों की राजनीति के दिन लद चुके हैं। और आज की राजनीति सड़कों पर होती है। अब सभी दलों को बीजेपी को उसी की भाषा में जवाब देना होता है और उसकी खिल्ली उड़ानी होती है जो वह अपने राजनीतिक विरोधियों के लिए इस्तेमाल करती रही है। ममता बनर्जी ने आग का जवाब आग से दिया, हर हमले के बदले हमला किया और ध्रुवीकरण का जवाब ध्रुवीकरण से दिया। यहां तक कि हिंसा का जवाब हिंसा से दिया और लोग इसे ही किलर इसंटिक्ट कहते हैं जिसका लाभ उन्हें मिला।
वोटों में नहीं बदला ‘जन समुद्र’
प्रधानमंत्री और गृह मंत्री की रैलियों और रोड शो में उमड़ने वाली हजारों लाखों की भीड़ वोटों में नहीं बदल पाई, हालांकि इस भीड़ को देखकर यह भ्रम जरूर होने लगा था कि हवा बीजेपी के पक्ष में बह रही है। प्रधानमंत्री ने तो साफ तौर पर कहा भी था कि उन्होंने इतना बड़ा जन समुद्र पहले नहीं देखा। उन्होंने ममता बनर्जी का मजाक उड़ाते हुए कहा कि खेला शेष है। लेकिन खेला तो हो चुका था।
पाला बदलने वाले मौकापरस्तों को मिली शिकस्त
चुनावों से पहले और चुनावों के दौरान भी बीजेपी ने बड़े पैमाने पर तृणमूल कांग्रेस में सेंध लगाई। बीजेपी ने कहा कि तृणमूल डूबता हुआ जहाज है। बहुत से सिटिंह एमएलए पार्टी छोड़ कर भगवा दल के साथ हो लिए। लेकिन इनमें से बहुत सो को पहले ही पता था कि उनके रिकॉर्ड को देखते हुए उन्हें टिकट नहीं मिलने वाला, इसीलिए वे मौका देखकर पाला बदल गए। और बीजेपी को पास तो जीतने वाले स्थानीय नेता थे ही नहीं। इसके चलते बहुत से वह नेता हार गए जो पाला बदलकर आए थे।
चुनाव आयोग की पाबंदियां और धनबल
ममता के चुनाव रणनीतिकार ने रविवार को साफ आरोप लगाया कि चुनाव आयोग ने बहुत ही पक्षपातपूर्ण रवैया अपनाया। लेकिन सवाल तो इस बात पर भी है कि जिस तरह से बीजेपी ने पानी की तरह पैसा इन चुनावों में बहाया। किसी को हैरानी नहीं होनी चाहिए अगर तृणमूल चुनाव आयोग और बीजेपी के धनबल पर श्वेत पत्र लेकर आ जाए।
Google न्यूज़, नवजीवन फेसबुक पेज और नवजीवन ट्विटर हैंडल पर जुड़ें
प्रिय पाठकों हमारे टेलीग्राम (Telegram) चैनल से जुड़िए और पल-पल की ताज़ा खबरें पाइए, यहां क्लिक करें @navjivanindia