ममता ने लिखा पीएम को पत्र, दार्जिलिंग में वार्ताकार के कामकाज का किया विरोध, नियुक्ति को रद्द करने की मांग की

ममता ने गोरखा प्रादेशिक प्रशासन अधिनियम, 2011 का हवाला देते हुए कहा कि यह कानून दार्जिलिंग, कलिम्पोंग और कुर्सियांग उप-मंडलों में स्वशासन के लिए बनाया गया था। केंद्र के पास इन क्षेत्रों के मामलों में मध्यस्थ की नियुक्ति का कोई अधिकार क्षेत्र नहीं है।

ममता ने लिखा पीएम को पत्र, दार्जिलिंग में वार्ताकार के कामकाज का किया विरोध, नियुक्ति को रद्द करने की मांग की
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नवजीवन डेस्क

पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने दार्जिलिंग हिल्स में गोरखाओं से जुड़े मुद्दे पर केंद्र द्वारा नियुक्त 'वार्ताकार' का विरोध करते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को एक पत्र लिखा है। उन्होंने सरकार के आदेश को असंवैधानिक बताते हुए नियुक्ति को रद्द करने की मांग की है। मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने बताया कि कोई और सूचना दिए बिना गृह मंत्रालय के अंतर्गत आने वाले वार्ताकार कार्यालय ने काम करना शुरू कर दिया है। उन्होंने कहा कि यह वास्तव में चौंकाने वाला है।

प्रधानमंत्री मोदी को लिखे पत्र में ममता बनर्जी ने कहा, "कृपया मेरे 18 अक्टूबर के पत्र का संदर्भ लें, जिसमें मैंने आपसे दार्जिलिंग हिल्स में गोरखाओं से संबंधित मुद्दों के लिए एक सेवानिवृत्त आईपीएस अधिकारी की वार्ताकार के रूप में नियुक्ति पर पुनर्विचार करने और उसे रद्द करने का अनुरोध किया था। आपके कार्यालय ने इस पर तुरंत संज्ञान लिया था और गृह मंत्री को इस पर विचार करने का सुझाव दिया था।"


ममता बनर्जी ने कहा कि यह गंभीर चिंता का विषय है कि मेरे पत्र के उत्तर में कोई और सूचना दिए बिना और आपके हस्तक्षेप के बावजूद गृह मंत्रालय के अंतर्गत वार्ताकार कार्यालय ने 10 नवंबर के ज्ञापन के माध्यम से सूचित किया है कि कार्यालय ने अपना कार्य करना शुरू कर दिया है। यह वास्तव में चौंकाने वाला है।"

ममता बनर्जी ने गोरखा प्रादेशिक प्रशासन अधिनियम, 2011 का हवाला देते हुए कहा कि यह कानून दार्जिलिंग, कलिम्पोंग और कुर्सियांग उप-मंडलों में स्वशासन सुनिश्चित करने के लिए बनाया गया था। इसे स्पष्ट रूप से पश्चिम बंगाल राज्य सरकार के रूप में परिभाषित किया गया। इसलिए केंद्र सरकार के पास इन क्षेत्रों से संबंधित मामलों में किसी प्रतिनिधि या मध्यस्थ की नियुक्ति करने का कोई अधिकार क्षेत्र नहीं है।


मुख्यमंत्री ने कहा कि पश्चिम बंगाल सरकार राज्य के आंतरिक मामलों में इस असंवैधानिक, मनमाने और राजनीतिक रूप से रंगे हस्तक्षेप को स्पष्ट रूप से अस्वीकार करती है और इसका कड़ा विरोध करती है। उन्होंने यह भी कहा कि इस तरह के कृत्य न केवल संवैधानिक संघीय ढांचे को कमजोर करते हैं, बल्कि हमारी लोकतांत्रिक राजनीति को परिभाषित करने वाली एकता और आपसी सम्मान की भावना को भी नष्ट करते हैं। उन्होंने आखिर में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मामले में हस्तक्षेप करने और आदेश को रद्द करने का अनुरोध किया।