BJP की सेट की गई फील्डिंग पर बैटिंग कर रहीं मायावती? विधानसभा चुनाव में ‘माया मिली न राम‘ कहावत हो सकती है चरितार्थ

वैसे तो ’राम’ की शरण में बीएसपी ही नहीं चली आई है, समाजवादी पार्टी भी यही सब कर रही है, लेकिन लगभग सभी मान रहे हैं कि मायावती भाजपा द्वारा सेट की गई फील्डिंग पर बैटिंग कर रही हैं।

फोटो: IANS
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के संतोष

लखनऊ। देवरिया के ददन दुबे छोटी जोत के मालिक हैं। मतलब, इतना ही बो-काट पाते हैं जितने से तीन-चार पांच महीने किसी तरह कट जाए। उनका मुख्य पेशा जजमानी का ही है। पोथी-पतरा देखने-बांचने के सिवा कुंडली-टिप्पण देख बता देते हैं, इसलिए संपर्क ठीक ठाक रखते हैं। दोनों बेटे कमाऊ सरकारी विभागों में हैं और अब भी मां-बाप की इज्जत करते हैं इसलिए बिरादरी में पूछ-परख भी है। इन दिनों उनके कुरते का कॉलर थोड़ा ऊपर ही रहता है। वह कहते हैं कि सब दिन तो हमलोग उपेक्षित ही रहे, पर इस बार सभी दल हम लोगों को इज्जत दे रहे क्योंकि हमारा महत्व जान गए हैं। बहुत दिनों बाद ये दिन देखने को मिल रहे हैं।

करीब तीसेक साल से चुनावों से पहले दलित, पिछड़ा वोट बैंक मुद्दा बनते रहे हैं लेकिन यूपी में इस बार सियासत के केन्द्र में ब्राह्मण हैं। ललन दुबे कहते हैं, मायावती ऐसे ही ‘जय श्रीराम’ का नारा नहीं लगा रही हैं। वह याद दिलाते हैं कि बहुजन समाज पार्टी से जुड़े लोग कभी ‘तिलक, तराजू और तलवार, मारो इनको जूते चार’ का नारा लगाते थे। पर बाद में मायावती को हमारी अहमियत समझ में आई और उन्होंने 2007 में नारा दियाः ‘हाथी नहीं गणेश है, ब्रह्मा विष्णु महेश है’। इसके बूते ही वह सत्ता पर काबिज हो पाईं थीं। मायावती अब वैसी हालत में तो नहीं हैं, हाशिये पर चली गई हैं। लेकिन बीजेपी के साथ का महत्व समझ गई हैं इसलिए वही सब कर रही हैं जो बीजेपी चाहती है। इसीलिए वह कह रही हैं कि वह विधानसभा चुनाव में सर्वाधिक ब्राह्मणों को ही टिकट देंगी।


वैसे तो ’राम’ की शरण में बीएसपी ही नहीं चली आई है, समाजवादी पार्टी भी यही सब कर रही है, लेकिन लगभग सभी मान रहे हैं कि मायावती भाजपा द्वारा सेट की गई फील्डिंग पर बैटिंग कर रही हैं। जिस तरह हैदराबाद के सांसद असदुद्दीन ओवैसी समाजवादी पार्टी से कुछ मुस्लिम वोट छीनने की मुहिम में लगाए गए हैं, उसी तरह मायावती योगी के ठाकुर प्रेम से नाराज चुनिंदा ब्राह्मणों का वोट खींचने के लिए दांव चल रही हैं ताकि उन्हें सपा या कांग्रेस के खेमे में जाने से रोका जा सके। बीजेपी ने प्रत्यक्ष-परोक्ष तौर पर इस तरह के कई इंतजाम किए हैं। पूर्वांचल में निषाद वोटरों के बीच गहरी पैठ रखने वाले डॉ.संजय निषाद को लंगड़ी मारने के लिए बिहार के मंत्री मुकेश साहनी पूर्वांचल का चक्कर लगा रहे हैं। वहीं बीजेपी से नाराज पूर्व मंत्री ओमप्रकाश राजभर ओवैसी के साथ खिचड़ी पकाते नजर आ जाते हैं।

यूपी में ब्राह्मण वोटरों की संख्या 10 से 13 फीसदी है। इनमें से अधिकतर लोग पहले कांग्रेस और बाद में बीजेपी को वोट देते रहे हैं। वैसे, यह भी सच है कि वे सत्ता अपनी पूछ बनाए रखने की हरसंभव जतन भी करते रहे हैं। भाजपा की सियासत के केन्द्र अयोध्या में पिछले दिनों मायावती के सिपहसलार सतीश मिश्रा ने जिस प्रकार कहा कि 23 फीसदी दलित और 13 फीसद ब्राह्मण एक साथ आ जाएं तो सत्ता के लिए हमें किसी की जरूरत नहीं हैं, तो समझा जा सकता है कि उनका मकसद क्या रहा है। वैसे, बीएसपी के साथ-साथ समाजवादी पार्टी भी ब्राह्मण वोटों की फसल काटने की जुगत में है। उसने पूर्व विधानसभा अध्यक्ष माता प्रसाद त्रिपाठी की अध्यक्षता में पांच नेताओं की हाईपावर कमेटी बनाकर 23 अगस्त से ब्राह्मण सम्मेलन कराने का ऐलान किया है।


लेकिन असली बात यही है कि बसपा का कोर दलित वोट बैंक इसे किस रूप में ले रहा है। दलित साहित्यकार अमित कुमार का कहना है कि ‘दलित वोट की सियासत करने वाली मायावती वर्तमान परिवेश में आउटडेटेड दिख रहीं हैं। इसीलिए मायावती की बेचैनी हैं ब्राह्मण प्रेम। अयोध्या से चुनावी अभियान शुरू करने के बाद वह भाजपा की पिछलग्गू ही दिख रही हैं। एक कथित सर्वे में भाजपा के बाद ब्राह्मणों की पसंद की दूसरी पार्टी बसपा को बताया जाना भी संदेह खड़ा करता है। दलितों के बड़े वर्ग का उनसे मोहभंग हुआ है। आने वाले विधानसभा चुनाव में उन्हें माया मिलेगी न राम।’

लखनऊ यूनिवर्सिटी में हिन्दी विभाग के प्रोफेसर और यूपी की राजनीति को करीब से देखने वाले प्रो. रविकांत कहते हैं कि इसमें दो राय नहीं कि ‘ब्राह्मण भाजपा का स्वाभाविक वोटर है। योगीराज में राजपूतों की तरजीह के बीच माफिया विकास दूबे के एनकाउंटर को सरकार की ब्राह्मण विरोधी कार्रवाई साबित करने की कोशिशें हुई हैं। बसपा ने शूटर अमर की पत्नी खुशी दूबे का केस लड़ने का ऐलान किया तो सपा से भी ब्राह्मण राहमुनाई की आवाजें उठीं। खुद भाजपा में अंदरखाने ब्राह्मणों को तरजीह नहीं देने की बातें उठीं और कांग्रेस सरकार में पूर्व मंत्री जितिन प्रसाद को ब्राह्मण चेहर बताकर पार्टी में एंट्री दी गई। पार्टियों में नेताओं की ब्लैकमेलिंग भले ही चालू हो लेकिन भाजपा को पहली पसंद मानने वाला असल ब्राह्मण वोटर खामोशी से सारी पैतरेबाजी देख रहा है।’


लखनऊ में न्यूज पोटर्ल के संपादक उत्कर्ष सिन्हा कहते हैं कि ‘2014 में केन्द्रीय सत्ता में भाजपा के आने के बाद मायावती की बड़े मुद्दों पर चुप्पी रही है। भाजपा संग उनके दिखने की कई वजहें दिखीं हैं। मायावती ब्राह्मणों पर डोरे डालकर भाजपा से ब्लैकमेलिंग ही करती दिखेंगी। मुसलमान और यादव सपा के साथ मजबूती से जुड़ा है। ऐसे में मुसलमानों को छोड़कर ब्राह्मणों संग जय श्रीराम का नारा लगाने का रिस्क मायावती ले रही हैं।’ उत्कर्ष कहते हैं कि ‘ब्राह्मण प्रेम का दूसरा पहलू यह है कि योगी पर ठाकुरवाद का आरोप लगाकर सभी प्रमुख राजनीतिक दलों में ब्राह्मण हिस्सेदारी को लेकर ब्लैकमेलिंग हो रही है। ब्राह्मण संदेश दे रहे हैं कि उनकी संख्या भले ही 10 से 13 फीसदी है लेकिन उनमें वोटरों को प्रभावित करने का माद्दा है।’

प्रो. रविकांत कहते हैं कि ‘बसपा भाजपा की बी-टीम बनकर काम कर रही है। विधान परिषद चुनाव में बसपा के विधायकों ने सपा के पक्ष में वोटिंग की थी लेकिन उसके बाद राज्यसभा चुनाव में मायावती ने भाजपा उम्मीदवारों के सपोर्ट की घोषणा कर दी थी। हाशिये पर दिख रहीं मायावती भाजपा द्वारा पूरी तरह हाईजैक दिख रही हैं।’


गोरखपुर यूनिवर्सिटी में सैन्य विज्ञान में प्रोफेसर हर्ष कुमार सिन्हा कहते हैं कि ‘मायावती हो या किसी अन्य दल के नेता, वे यह समझ चुके हैं कि केन्द्रीय सत्ता में भाजपा के आने के बाद हिन्दुत्व से उदासीन होकर राजनीति में वजूद कायम रखना मुश्किल है। पहले धर्म निरपेक्षता का एक मतलब मुस्लिम तुष्टिकरण बताया जाता था। लेकिन अब इसमें बदलाव दिख रहा है। चंडीपाठ करने के बाद भी मुस्लिम ममता बनर्जी को वोट कर रहा है, तो ब्राह्मणों को रिझाने की कोशिशों के बाद भी मुसलमान सपा के साथ-साथ जहां बसपा मजबूत हो, उसे वोट क्यों नहीं कर सकता है? मुसलमान भाजपा द्वारा गेट के बाहर किये जाने से परेशान है। कोई दल उसे हिन्दुओं के साथ कमरे में बिठाने को तैयार है तो उसे वोटिंग से दिक्कत नहीं होगी। मायावती इसी बात को देख रही हैं।’

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