बिहार में 20 साल (2005-2025) के 'कुशासन' के आंकड़ों को अनदेखा कर मोदी दे रहे हैं रील बनाने का मंत्र

यूं तो बिहार में करीब 20 साल से 'एनडीए' सत्ता में है, फिर भी पीएम मोदी ने बेगूसराय में दावा किया कि 'आरजेडी और कांग्रेस' के नाम से निवेशक डरते हैं। लेकिन वे शायद भूल गए कि बिहार में कुशासन पर नीति आयोग की रिपोर्ट कुछ और ही कहानी कहती है।

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ए जे प्रबल

यूं तो बिहार में लगभग पिछले 20 सालों से 'एनडीए सरकार' सत्ता में है, फिर भी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने शुक्रवार, 24 अक्टूबर को बेगूसराय में दावा किया कि 'आरजेडी और कांग्रेस' के नाम से निवेशक डरते हैं। लेकिन वे शायद भूल गए कि बिहार में कुशासन पर नीति आयोग की रिपोर्ट कुछ और ही कहानी कहती है।

“बिहार के लोग जानते हैं कि निवेशक आरजेडी और कांग्रेस के नाम से डरते हैं...।” यह बात प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बिहार के बेगुसराय में शुक्रवार को एक चुनावी सभा में कही। शायद वह यह बताना चाह रहे थे कि निवेशक बिहार के बजाए गुजरात क्यों जाते हैं। बिहार समेत कई राज्यों के साथ भेदभाव और गुजरात को लेकर प्रेम का मुद्दा अब बिहार में गूंज रहा है और बीजेपी-बीजेपी की साझेदारी वाले एनडीए को इसके लिए आलोचनाओं का सामना करना पड़ रहा है। शायद इसी कारण प्रधानमंत्री ने अपनी चुनावी सभा में ऐलान किया कि बेगूसराय में एक 'नया पेट्रोकेमिकल प्लांट और एक टेक्सटाइल हब' बनेगा।

मोदी की बेगुसराय चुनावी सभा मोदी ने युवाओं को रील और शार्ट्स से पैसे कमाने का मंत्र तो दिया, लेकिन सोशल मीडिया पर तीखी टिप्पणियों में प्रधानमंत्री के इस कथन पर प्रतिक्रियाएं आ रही हैं।

प्रधानमंत्री ने बेगुसराय और समस्तीपुर की चुनावी रैली में लोगों से धूप भरे दिन में मोबाइल फोन की टॉर्च जलाने का आग्रह करते हुए कहा कि ‘जब मोबाइल की रोशनी है तो लालटेन क्यों चाहिए...।’ जाहिर वे इस बहाने आरजेडी पर निशाना साध रहे थे क्योंकि लालटेन आरजेडी का चुनाव निशान है। उन्होंने युवाओं से सरदार पटेल की जन्म जयंती 31 अक्टूबर पर होने वाली दौड़ में हिस्सा लेने का भी आह्वान किया। उनके इसी कथन पर सोशल मीडिया पर एक तीखी टिप्पणी दिखी कि, ‘बिहार में रील बनाओ, टॉर्च जलाओ, दौड़ लगाओ’ जबकि गुजरात में कॉमनवेल्थ गेम्स, ओलम्पिक गेम्स, वर्ल्ड कप क्रिकेट, गिफ्ट सिटी, बुलेट ट्रेन, सेमीकंडक्टर यूनिट और एक्सप्रेसवे बनाओ।

मोदी के ऐसे भाषण और आह्वान को लेकर बिहार के युवाओं में गहरी निराशा दिखी है। कम से कम राज्य के शिक्षित युवाओं में तो कड़वाहट बढ़ ही गई है, जो इस बात की आलोचना करते दिखते हैं कि पिछले 11 सालों में 'डबल इंजन सरकार' के दौरान बिहार की कितनी उपेक्षा की गई है। केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने तो इस हफ़्ते यह कहकर माहौल बिगाड़ दिया कि ज़मीन की कमी के कारण बिहार में बड़े उद्योग लगाना संभव नहीं है। यह बहाना युवाओं को ज़्यादा रास नहीं आया।


प्रधानमंत्री मोदी का भाषण विडंबना ही कहा जा सकता है क्योंकि बेगूसराय में इंडियन ऑयल कॉर्पोरेशन की बरौनी तेल रिफाइनरी 1964 में स्थापित की गई थी। उस समय बिहार और केंद्र दोनों जगह कांग्रेस की सरकार थी। लेकिन मोदी ने कांग्रेस सरकारों पर आरोप लगाया कि जब यूपीए सरकार सत्ता में थी, तब उन्होंने ‘आरजेडी के दबाव में' बिहार को कोई परियोजना नहीं दी।

अपने लंबे भाषण में, प्रधानमंत्री ने यह भी आरोप लगाया कि आरजेडी और कांग्रेस दोनों ही ‘महिलाओं के खिलाफ’ हैं और ‘उन्होंने महिला सशक्तिकरण से जुड़े विधेयकों के दस्तावेज़ फाड़ दिए।’ हालांकि यह स्पष्ट नहीं था कि प्रधानमंत्री किस बात का ज़िक्र कर रहे थे, लेकिन वे दावा जरूर कर रहे थे कि एनडीए के दौर में महिलाओं की स्थिति बेहतर है।

लेकिन प्रधानमंत्री शायद भूल गए थे कि बिहार में गरीबी की भयावह स्थिति और एनडीए सरकारों के खराब रिपोर्ट कार्ड को लेकर लगातार सवाल उठ रहे हैं। 2025-26 में राज्य सरकार के राजस्व का 74 प्रतिशत केंद्र से आने की उम्मीद है। 2.95 लाख करोड़ रुपये के अनुमानित व्यय का केवल 26 प्रतिशत ही राज्य के अपने संसाधनों से जुटाए जाने की उम्मीद है।

हालाँकि 2005 के बाद से एनडीए सरकारों के खराब शासन रिकॉर्ड के बारे में न तो प्रधानमंत्री, न ही गृह मंत्री और न ही बीजेपी नेताओं से कड़े सवाल पूछे जा रहे हैं। लेकिन, जमशेदपुर से कांग्रेस के पूर्व सांसद डॉ. अजय कुमार, जो पटना में सिटी एसपी रह चुके हैं और पार्टी की रिसर्च विंग में कांग्रेस के संयुक्त सचिव आकाश सत्यवली द्वारा संयुक्त रूप से लिखे गए एक लेख में बिहार की वर्तमान दुर्दशा को उजागर किया गया है। उन्होंने कुशासन की मिसालों को रेखांकित किया है:

  • 2014 में, बिहार में 1,700 करोड़ रुपये की लागत से अगुवानी-सुल्तानगंज पुल का निर्माण शुरू हुआ था। दस साल बाद, कई ढांचों के ढहने के बाद यह अभी भी निर्माणाधीन ही है।

  • नीति आयोग के सतत विकास लक्ष्य भारत सूचकांक, 2023-24 के अनुसार, बिहार देश का सबसे खराब प्रदर्शन करने वाला राज्य बना हुआ है। यह कई सूचकांकों में सबसे खराब स्थिति में है। ये सूचकांक हैं: गरीबी, भुखमरी, शिक्षा की गुणवत्ता, और काम तथा आर्थिक विकास।

  • नीति आयोग के सर्वेक्षण का अनुमान है कि बिहार में 94 लाख परिवार प्रतिदिन 200 रुपये से कम कमाते हैं। सामान्य वर्ग (25 प्रतिशत) की तुलना में अनुसूचित जाति (43 प्रतिशत), अनुसूचित जनजाति (43 प्रतिशत) और अत्यंत पिछड़े वर्गों (34 प्रतिशत) में गरीबी कहीं अधिक है।

  • बिहार में 10 प्रतिशत से भी कम लोगों ने 12वीं कक्षा पूरी की है


  • बिहार में 95 प्रतिशत परिवारों के पास कोई वाहन नहीं है, यहां तक कि दोपहिया वाहन भी नहीं

  • बिहार में लगभग 2.2 करोड़ लोग मज़दूरी करते हैं

  • बिहार की प्रति व्यक्ति आय (पीसीआई) भारत में सबसे कम है—ओडिशा की एक-तिहाई और झारखंड की आधी

  • 2025 में आई सीएजी रिपोर्ट में कई सरकारी विभागों में 70,000 करोड़ रुपये से अधिक की गंभीर वित्तीय अनियमितताओं का खुलासा हुआ है

  • बिहार में बकाया देनदारियां 2005 में 43,000 करोड़ रुपये से बढ़कर, जब आरजेडी सत्ता से बाहर हुई, 2024 में 3,19,000 करोड़ रुपये हो गईं।

  • 20,000 से ज़्यादा स्कूलों में बिजली की नहीं है, 76,000 स्कूलों में कंप्यूटर नहीं हैं, और 2 प्रतिशत से भी कम स्कूलों में डिजिटल लाइब्रेरी हैं।

  • छात्रों में स्कूल छोड़ने की दर भारत में सबसे ज़्यादा है।

  • ज़्यादातर स्वास्थ्य केंद्र पर्याप्त डॉक्टरों या विशेषज्ञों के बिना काम करते हैं।

  • ग्रामीण सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्रों में, चिकित्सा कर्मियों की कमी 90 प्रतिशत के उच्च स्तर पर पहुँच गई है।

  • 80 प्रतिशत परिवार खराब स्वास्थ्य सेवा का हवाला देते हुए सरकारी स्वास्थ्य सुविधाओं से परहेज करते हैं।

  • तीन में से दो महिलाएं एनीमिया से पीड़ित हैं

  • 11 प्रतिशत से भी कम शिशुओं को पर्याप्त आहार मिल पाता है और पांच वर्ष से कम उम्र के 40 प्रतिशत से अधिक बच्चे अविकसित हैं

  • प्रमुख राज्यों में बिहार में औद्योगिक रोज़गार सबसे कम है, इस क्षेत्र में केवल 1.3 लाख श्रमिक कार्यरत हैं, जिनमें से केवल 36,135 स्थायी कर्मचारी हैं

  • 2018-19 से, कारखानों में रोज़गार में केवल 5,460 श्रमिकों की वृद्धि हुई है

  • पिछले एक दशक में, बिहार ने केवल 13 कोल्ड स्टोरेज बनाए हैं, जबकि गुजरात ने 459 और उत्तर प्रदेश ने 299 बनाए हैं

  • बिहार में केवल 899 खाद्य प्रसंस्करण इकाइयां हैं जिनमें लगभग 34,700 लोग कार्यरत हैं, जो पंजाब की 3,300 इकाइयों और इसी क्षेत्र में 1.5 लाख नौकरियों की तुलना में बहुत कम है।

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