मोदी सरकार में गिरा शिक्षा का स्तर, 8वीं के 56 फीसदी छात्र गुणा-भाग में जीरो, 27 फीसदी तो पढ़ ही नहीं पाते

एनजीओ प्रथम की एनुअल स्टेटस ऑफ एजुकेशन रिपोर्ट 2018 के मुताबिक, 8वीं पास करने वाले वाले ज्यादातर छात्रों को सामान्य गणित भी नहीं आता है। इसके अलावा करीब 27 फीसदी छात्रों की संख्या ऐसी है, जो पढ़ भी नहीं सकते।

फोटो: सोशल मीडिया
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नवजीवन डेस्क

देश भर में शिक्षा का स्तर सुधारने को लेकर मोदी सरकार लाख दावे कर रही हो लेकिन जमीनी हकीकत काफी चौंकाने वाली हैं। हाल ही में आई एक रिपोर्ट के मुताबिक आठवीं क्लास के 56 फीसदी बच्चे गणित के बेसिक सवाल भी हल नहीं कर पा रहे थे वहीं 27 फीसदी बच्चे सवाल का जवाब देना दूर उसे पढ़ भी नहीं पा रहे थे। इसका खुलासा गैर सरकारी संस्था ‘प्रथम’ की एनुअल स्टेटस ऑफ एजुकेशन रिपोर्ट-2018 से खुलासा हुआ है। एएसईआर ने बताया कि 10 साल पहले के मुकाबले 2018 में स्कूली छात्रों के प्रदर्शन के स्तर में काफी गिरावट आई है।

रिपोर्ट के मुताबिक, बीते सालों में बच्चों के विकास और सीखने की क्षमता में काफी गिरावट आई है। आठवीं क्लास के 56 फीसदी बच्चे गणित में कमजोर है। उन्हें बेसिक सवालों के जवाब भी नहीं आते। जैसे की घटाना, भाग देना, गुणा करना। 5 वीं कक्षा के 72 फीसदी छात्रों को भाग करना नहीं आता है। तीसरी कक्षा के छात्रों पर भी ये रिपोर्ट आई तो वहां पता चला कि 70 प्रतिशत बच्चों को घटाना ही नहीं आता। रिपोर्ट के मुताबिक, गणित विषय में छात्रों के अपेक्षा छात्राओं की खराब काफी खस्ता है। 50 फीसदी छात्र और 44 फीसदी छात्राओं ने सफलतापूर्वक भाग करके दिखा पाए। रिपोर्ट की माने तो 27 फीसदी 8वीं क्लास के बच्चे दूसरी क्लास के टेक्स्ट बुक को नहीं पढ़ सके। तीसरी कक्षा के 72.80 फीसदी बच्चे दूसरी कक्षा की किताबें पढ़ ही नहीं पढ़ पाते।

रिपोर्ट के मुताबिक, साल 2008 में यह पाया गया कि 5वीं के 37 फीसदी छात्र गणित के बेसिक सवालों को हल कर सकते थे। लेकिन, 2018 में ऐसे छात्रों का आंकड़ा घटकर 28 फीसदी रह गया। जबकि साल 2016 में ये संख्या 26 फीसदी था। साल 2008 में 8वीं कक्षा के 84.8 फीसदी छात्र कक्षा 2 के स्तर की टेक्स्ट बुक पढ़ने में सक्षम थे। साल 2018 में ऐसे छात्रों की संख्या घटकर 72.8 फीसदी पहुंच गई। इस रिपोर्ट में सबसे अच्छी खबर यह रही कि भारत में पहली बार स्कूल में दाखिला नहीं लेने वाले बच्चों का अनुपात 3 फीसदी से कम हो गया है अब यह अनुपात 2.8 फीसदी है।

‘प्रथम’ एनजीओ ने बताया है कि रिपोर्ट तैयार करने के लिए उसने 28 राज्यों के 596 जिलों से डेटा जुटाए हैं। इसके लिए 3 से 16 साल के 5.5 लाख बच्चों से सवाल-जवाब किए।

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Published: 16 Jan 2019, 4:37 PM