मुसलमानों के लिए बनी योजना से अब सबका विकास करेगी मोदी सरकार, बदले नियम

मोदी सरकार ने उस योजना के दायरे और नियमों में बदलाव किया है जो मुसलमानों के विकास और कल्याण के लिए बनी थी। अब इस योजना से सबका विकास करने का लक्ष्य रखा गया है, साथ ही योजना का नाम भी बदल दिया गया है।

फोटो : सोशल मीडिया
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पुरानी योजनाओं को नया नाम देकर, उनको नया कहकर लोगों को गुमराह करना मोदी सरकार की आदत का हिस्सा है। अब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार ने यूपीए सरकार के दौर में बनी मल्टी सिक्यूरिटी डेवलपमेंट प्रोग्राम (एमएसडीपी) का नाम बदलकर प्रधानमंत्री जन विकास कार्यक्रम कर दिया है। इतना ही नहीं इस योजना के प्रावधानों और नियमों में कुछ बदलाव भी कर दिए गए हैं। इसके साथ ही इस योजना का बजट भी बढ़ाकर 2018-19 के लिए 1320 करोड़ और 2019-20 के लिए 1452 करोड़ रुपए कर दिया गया है। दरअसल ये सारे बदलाव इस योजना का गला घोंटने के लिए किए गए हैं।

सरकार ने यह फैसला भी लिया है कि जिन जिलों में विकास के काम होने हैं, उनकी संख्या बढ़ाकर 308 की जाएगी और जिलों की पहचान के लिए अभी तक जो नियम था कि वहां कम से कम 50 फीसदी अल्पसंख्यक आबादी होना चाहिए, उसे बदलकर अब 25 फीसदी कर दिया गया है। इसका अर्थ यही है कि अब उन जिलों में भी इस योजना का पैसा जाएगा, जहां अल्पसंख्यक मात्र 25 फीसदी हैं, यानी अल्पसंख्यकों की आबादी भी अल्पसंख्यक ही है।

सरकार के इस फैसले पर पूर्व आईएएस अफसर और सच्चर कमेटी के पूर्व सदस्य जफर महमूद का कहना है कि “इस योजना में जिलों की संख्या बढ़ाने का मकसद योजना के प्रभाव को कम करना है। योजना में जिलों की संख्या बढ़ने से प्रति जिला मिलने वाली रकम कम हो जाएगी, जो विकास के लिए पर्याप्त नहीं होगी, नतीजतन ये जिले विकास में पिछड़ेंगे। इतना ही नहीं जब अल्पसंख्यक आबादी वाले जिलों की बात होगी, तो उसमें मुसलमानों के अलावा दूसरी अल्पसंख्यक समुदाय भी होंगे। ऐसे में आबादी का नियम 50 फीसदी से घटाकर 25 फीसदी किए जाने से मुस्लिम आबादी वाले जिले इस योजना के पात्र नहीं रह जाएंगे। इस तरह मुसलमानों के विकास के लिए बनी यह योजना अपना मकसद ही खो देगी।” उन्होंने कहा कि अभी देश में अल्पसंख्यकों की कुल आबादी करीब 19 फीसदी है, जिसमें 73 फीसदी के आसपास मुसलमान हैं, ऐसे में अल्पसंख्यकों के लिए बनी योजनाओं में मुसलमानों की हिस्सेदारी 73 फीसदी होनी चाहिए, लेकिन अब इसका उलटा होगा।

दरअसल पिछली सरकार ने जस्टिस राजेंद्र सच्चर की अगुवाई में एक कमेटी बनाई थी जिसको मुसलमानों के हालात की पड़ताल कर उनके हल के लिए सिफारिशें करनी थीं। इस कमेटी की सिफारिशों पर ही यह एमएसडीपी शुरु की गयी थी, जिसमें मुस्लिम बहुलता वाले जिलों की पहचान कर वहां विकास के काम शुरु किए गए थे। इन कामों में ज्यादा जोर शिक्षा पर था।

जफर महमूद कहते हैं कि, “इस योजना को लेकर सरकार का मकसद बहुत अच्छा था, हालांकि इसके क्रियान्वयन में कुछ खामियां थीं, क्योंकि जिन जिलों की पहचान की गई थी, उनकी निगरानी के लिए योजना आयोग के मॉनिटरों ने रिपोर्ट दी थी कि देश में जिलों का विस्तार इतना बड़ा होता है कि विकास के काम होने के बाद भी वह नजर नहीं आता। उनकी रिपोर्ट थी कि इन जिलों में विकास के काम तो हुए, लेकिन जिलों के जिन हिस्सों में मुस्लिम आबादी ज्यादा थी, वहां काम नहीं हुए।” जफर महमूद ने बताया कि ऐसी रिपोर्टें आने के बाद जिलों की जगह ऐसे ब्लॉक्स को योजना में शामिल किया गया जहां मुस्लिम बहुलता थी। लेकिन केंद्र सरकार द्वारा योजना में जो बदलाव किए गए हैं, उससे साफ है कि इस योजना की मूल आत्मा ही नष्ट कर दी गई, और मुसलमानों के विकास के लिए जो काम शुरु हुआ था, उसे पूरी तरह खत्म कर दिया गया, क्योंकि अब इस योजना के दायरे में मुसलमानों के अलावा दूसरे लोग भी आ गए हैं।

इस योजना में बदलाव पर कुछ लोगों का ऐसा भी मानना है कि चूंकि मोदी सरकार कई मोर्चों पर घिरी हुई है, इसलिए वह अल्पसंख्यकों के लिए कुछ करते हुए दिखना चाहती है, लेकिन उसके किसी कदम से ऐसा नहीं लगता कि वह मुसलमानों के कल्याण या विकास को लेकर चिंतित है।

लोगों का मानना है कि उपचुनावों में लगातार हार, बलात्कार की बढ़ती घटनाओं और दलितों पर हमलों की खबरों के बीच मोदी सरकार की छवि को खासा धब्बा लगा है। इस सबसे अंतरराष्ट्रीय स्तर पर देश की छवि धूमिल होने से बचाने के लिए मोदी सरकार अपने कार्यकाल के आखिरी साल में ऐसा दिखाना चाहती है कि उसने अपने शासन में सिर्फ गायों की रक्षा नहीं की, बल्कि उसे अल्पसंख्यकों की भी चिंता है। कुछ लोगों का यह मानना है कि सत्तारूढ़ दल का अपना एक एजेंडा है, और वह किसी भी कीमत पर अपने एजेंडे से इधर-उधर नहीं हो सकती।

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