न काबू में अर्थव्यवस्था, न युवाओं को रोजगार, चुनाव में खामियाजा भुगतेगी मोदी सरकार : चिदंबरम

पूर्व वित्त मंत्री पी चिदंबरम ने कहा है कि जब मोदी सरकार के पास मौका था तो वह हाथ पर हाथ धरे बैठी रही, और अब उसे समझ नहीं आ रहा कि मुसीबत से कैसे निपटें। इस सबका खामियाजा मोदी सरकारऔर बीजेपी को चुनावों में भुगतना पड़ेगा।

फाइल फोटो
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नवजीवन डेस्क

देश के चालू खाते का घाटा बेकाबू, रुपया रसातल में, बैंकों के पास पैसे लेकिन कोई कर्ज लेने को तैयार नहीं, युवाओं के पास नौकरी नहीं और महिलाएं वर्कफोर्स में शामिल होने को तैयार नहीं। यह तस्वीर है देश की मौजूदा अर्थव्यवस्था की जो पूर्व वित्त मंत्री पी चिदंबरम ने पेश की है। चिदंबरम ने हिंदी क्विंट से बातचीत में कहा कि फिलहाल अर्थव्यवस्था की हालत बेहद खस्ता है, और सरकार जानती ही नहीं कि इन हालात से कैसे उबरा जाए।

उन्होंने कहा कि इस सरकार के पास एक मौका था जब अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल की कीमतें 50 डॉलर के आसपास थीं। चिदंबरम ने बताया कि मोदी शासन के पहले ढाई-तीन साल तक कच्चे तेल के कीमतें जब बहुत नीचे थीं, तो सरकार को देश की अर्थव्यवस्था के लिए काम करना चाहिए था। लेकिन अब जैसे-जैसे कच्चा तेल महंगा हो रहा है, सरकार के हाथ-पांव फूले हुए हैं और उसको समझ नहीं आ रहा कि मुसीबत से कैसे निपटा जाए।

कहीं ऐसा तो नहीं कि सरकार समझ सब रही है, लेकिन उसे लगता है कि इसे ठीक करने से चुनाव पर कोई असर नहीं पड़ेगा? इस सवाल के जवाब में चिदंबरम ने कहा कि आने वाले चुनावों में ये सारी बातें मुद्दे बनकर सामने आएंगी। उन्होंने गिनाया कि युवाओं के पास रोजगार-नौकरी नहीं है, वे बेहद नाराज़ हैं, महिलाएं वर्क फोर्स में आ नहीं रही हैं, छोटे और मझोले उद्योग-धंधों की हालत बेहद खराब है, तो कैसे चुनाव में मुद्दा नहीं बनेगा।

न काबू में  अर्थव्यवस्था, न युवाओं को रोजगार, चुनाव में खामियाजा भुगतेगी मोदी सरकार : चिदंबरम

बातचीत के दौरान पी चिदंबरम ने राफेल विवाद पर मोदी सरकार के सामने तीन सवाल रखे। उन्होंने कहा कि, “हमें इस बात से कोई दिक्कत नहीं है कि निजी कंपनियां कारोबार कर रही हैं, लेकिन राफेल पर तीन मुख्य सवालों के जवाब नहीं मिल रहे।” ये तीन सवाल हैं:

  • पुराना एमओयू क्यों रद्द किया गया, इसका कोई तो कारण बताया जाता?
  • मोदी सरकार क्यों सिर्फ 36 विमान खरीद रही है, जबकि दसॉल्ट तो 126 राफेल देने को तैयार था?
  • एचएएल जैसी 70 साल की अनुभवी कंपनी से आपने दसॉल्ट को डील करने के लिए क्यों नहीं कहा? एचएएल के पास वर्कशेयर एग्रीमेंट है, पुरानी सरकारी कंपनी है, तेजस, मिराज जैसे एयरक्राफ्ट बना चुकी है. लेकिन सरकार ने उसका नाम क्यों नहीं लिया?

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