मोदी सरकार के बजट से नहीं होगा किसानों का भला: मेधा पाटकर

मेधा पाटकर का कहना है कि बजट में ऐसा कोई प्रावधान नहीं किया गया है, जिससे किसान और कॉरपोरेट के बीच जो असमानता की बड़ी खाई पैदा हुई है, उसे कम किया जा सके।

फोटोः सोशल मीडिया
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नवजीवन डेस्क

सामाजिक कार्यकर्ता और नर्मदा बचाओ आंदोलन की अगुवा मेधा पाटकर ने बजट 2018-19 में कृषि क्षेत्र के लिए बजटीय आवंटन को नाकाफी बताया है। उनका कहना है कि बजट में ऐसा कोई प्रावधान नहीं किया गया है, जिससे किसान और कॉरपोरेट के बीच जो असमानता की बड़ी खाई है, उसे कम किया जा सके। पाटकर ने कहा कि किसानों को उनकी उपज के लिए उचित दाम दिलाने के जो उपाय सुझाए गए हैं, उनमें कुछ भी नया नहीं है, जिससे किसानों का भला हो। इसके लिए बजटीय आवंटन भी पर्याप्त नहीं है। फसलों की कीमत स्थिरता के लिए बाजार हस्तक्षेप की राशि घटाकर 200 करोड़ रुपये कर दी गई है।

मेधा ने कहा कि फसल बीमा स्कीम को लागू करने का तरीका इतना अव्यावहारिक है कि उससे किसानों को नहीं बल्कि बीमा कंपनियों को फायदा होता है। उन्होंने कहा कि सिंचाई मद पर जो खर्च होना चाहिए, उसका पूरा ब्यौरा नहीं है और जिन मदों पर खर्च की राशि बताई जा रही है वह बहुत कम है।

उन्होंने कहा, “सरकार की कथनी और करनी में फर्क है। सरकार एक ओर जैविक खेती की बात करती है, तो दूसरी ओर जीएम उत्पाद को प्रोत्साहन दे रही है। ग्रामीण इलाकों में आजीविका और बुनियादी संरचना पर 14.34 लाख करोड़ का बजटीय आवंटन किया गया है, जिसमें 11.98 लाख करोड़ अतिरिक्त बजटीय व गैर-बजटीय संसाधन शामिल है।”

इससे पहले अखिल भारतीय किसान संघर्ष समन्वय समिति (एआईकेएससीसी) के बैनर तले मेधा पाटकर, स्वाभिमानी शेतकारी के अध्यक्ष व सांसद राजू शेट्टी, अखिल भारतीय किसान सभा के महामंत्री व पूर्व सांसद हन्नान मोल्ला, जय किसान आंदोलन के नेता योगेंद्र यादव और समिति के संयोजक वी एम सिंह और अन्य ने नई दिल्ली में एक प्रेसवार्ता का आयोजन कर आम बजट 2018-19 की खामियां गिनाईं और किसानों के लिए की गई घोषणाओं को महज चुनावी शिगूफा बताया।

इस मौके पर समिति की ओर से 12 फरवरी से 19 फरवरी के बीच एक राष्ट्रव्यापी अभियान चलाने की घोषणा की गई। इस अभियान के जरिए गांव-गांव जाकर किसानों को बताया जाएगा कि बजट में अधिसूचित फसलों का न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) डेढ़ गुना करने समेत किसानों के लिए जो घोषणाएं की गई हैं, उसमें घालमेल है।

वी.एम. सिंह ने कहा कि सरकार ने एमएसपी ए-2 एफएल (खाद, बीज आदि की लागत व पारिवारिक श्रम) के आधार पर तय किया है, जबकि किसानों को स्वामीनाथन आयोग की रिपोर्ट के मुताबिक सी-2 के आधार पर दिया जाना चाहिए, जिसमें ए-2 एफएल के अलावा जमीन का किराया भी शामिल है।उन्होंने कहा, "हम सी-2 का 50 फीसदी एमएसपी बढ़ाने की मांग करते हैं। साथ ही, यह सुनिश्चित किया जाना चाहिए कि व्यापारी एमएसपी से नीचे के भाव पर किसानों से फसल न खरीदें।"

राजू शेट्टी ने कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 2014 में जो वादे किए, वो अभी तक पूरे नहीं हुए हैं। इस बजट से किसानों का फायदा नहीं होने वाला है। योगेंद्र यादव ने कहा कि बजट से यह साफ हो गया है कि यह सरकार न तो किसानों का दुख-दर्द समझती है और न ही समझना चाहती है। सरकार को लगता है कि किसानों की आंखों में धूल झोंककर ही वोट मिल सकते हैं, तो किसान आंदोलन अपने संघर्ष से सरकार की इस गलतफहमी को दूर कर देगा।

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