फसलों की लागत का डेढ़ गुना देने का वादा सिर्फ एक चुनावी घोषणा: कृषि विशेषज्ञ विजय सरदाना

कृषि विशेषज्ञ विजय सरदाना ने कहा कि 2014 में एनडीए सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में हलफनामा दाखिल कर कहा था कि वह फसलों की लागत का 50 फीसदी से ज्यादा एमएसपी नहीं दे सकती। अब डेढ़ गुना देने का वादा कैसे?

फोटो: सोशल मीडिया 
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आईएएनएस

किसानों की आमदनी 2022 तक दोगुनी करने के लक्ष्य को लेकर चल रही नरेंद्र मोदी सरकार ने इस बार आम बजट में किसानों की ज्यादा सुध ली है। वित्तमंत्री अरुण जेटली ने 1 फरवरी को संसद में आम बजट 2018-19 पेश करते हुए किसानों को उनकी फसलों की लागत का डेढ़ गुना न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) देने की घोषणा की। हालांकि कृषि विशेषज्ञ विजय सरदाना इसे महज चुनावी वादा करार दे रहे हैं।

उन्होंने कहा कि लगातार दो फसल वर्ष 2016-17 (जुलाई-जून) और 2017-18 में धान, गेहूं, दलहन, तिलहन आदि फसलों का रिकार्ड उत्पादन होने से किसानों को उनकी उपज का सही दाम नहीं मिल पाया है।

कृषि अर्थशास्त्री विजय सरदाना ने कहा, “2014 में सत्ता में आने के बाद केंद्र की मौजूदा एनडीए सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में हलफनामा दाखिल कर कहा था कि वह फसलों की लागत मूल्य के 50 फीसदी से ज्यादा एमएसपी नहीं दे सकती है। वहीं सरकार अब 150 फीसदी एमएसपी देने का वादा कैसे कर रही है।”

उन्होंने आगे कहा, “अब देखने वाली बात यह होगी कि सरकार ने जो घोषणा की है उसको अमल में लाने के लिए सरकार के पास कोई रोडमैप भी है या यह महज चुनावी घोषणा है।” उन्होंने कहा कि सबसे बड़ा मसला लागत मूल्य की गणना का है। यह भी देखने वाली बात होगी कि सरकार इसके लिए कौन सी गणना पद्धति इस्तेमाल करती है। गणना की जो पद्धति इस्तेमाल की जाएगी, उसकी व्यावहारिकता पर भी सवाल होगा।

उन्होंने कहा, “सरकार ने करीब 14 लाख करोड़ रुपये कृषि और ग्रामीण क्षेत्र पर खर्च करने की घोषणा की है और आगे 2019 में आम चुनाव है। इससे पहले सरकार यह पैसा खर्च करना चाहेगी तो यह भी देखना होगा कि सरकार के पास ऐसा कौन सा चैनल है जिससे वह इतना पैसा देश के करीब 6 लाख गांवों तक पहुंचाएगी।”

इससे भी बड़ा सवाल यह है कि सरकार किन-किन फसलों की खरीद एमएसपी पर करती है और कहां-कहां किसान अपनी फसल एमएसपी पर बेच पाते हैं। पिछले साल रबी सीजन में चौथे अग्रिम उत्पादन अनुमान के मुताबिक, देश में 9.83 करोड़ टन गेहूं की रिकॉर्ड पैदावार हुई थी। सरकार ने गेहूं का एमएसपी 1625 रुपये प्रति क्विंटल तय किया था। लेकिन पंजाब और हरियाणा को छोड़कर किसी भी राज्य में गेहूं की सरकारी खरीद का लक्ष्य पूरा नहीं हो पाया जबकि बाजार भाव एमएसपी से काफी कम था।

देश के सबसे बड़े गेहूं उत्पादक राज्य उत्तर प्रदेश में करीब 37 लाख टन गेहूं की सरकारी खरीद हो पाई जबकि प्रदेश सरकार ने शुरुआत में 50 लाख टन का लक्ष्य रखा था, जिसको बाद में नई सरकार ने बढ़ा दिया था। बिहार में बिल्कुल भी खरीद नहीं हो पाई, राजस्थान और मध्यप्रदेश में भी सरकारी खरीद कम हो पाई।

उन्होंने कहा कि अगर सरकार चाहती है कि वह व्यापारियों को एमएसपी पर फसल खरीदने को मजबूर कर सकती है तो यह भी असंभव प्रतीत होता है।

उन्होंने कहा, “सबसे हैरानी की बात है कि पंजाब जहां 99 फीसदी कृषि योग्य भूमि सिंचित है। धान और गेहूं की खरीद अक्सर एमएसपी पर होती है वहां भी जब किसान खुश नहीं हैं और उन्हें कर्ज तले दबकर आत्महत्या करनी पड़ रही है तो फिर एमएसपी की घोषणा से किसानों का भला हो जाएगा और उनकी आमदनी दोगुनी हो जाएगी, यह कोरी कल्पना जान पड़ती है।”

कृषि अर्थशास्त्री विजय सरदाना का मानना है कि सरकार को कृषि पैदावार बढ़ाने के साथ-साथ भंडारण की भी व्यवस्था करनी चाहिए। उन्होंने बताया कि हर साल एक लाख करोड़ रुपये का अनाज बर्बाद हो जाता है क्योंकि देश में गोदाम और वेयर हाउस हर जगह नहीं है और उस पर कभी अपेक्षित खर्च नहीं किया गया।

उन्होंने सवाल किया, “सरकार ने सांसदों के वेतन वृद्धि का जो तरीका बजट घोषणा में बताया क्या वही तरीका किसानों की आय बढ़ाने के लिए नहीं हो सकती है?”

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