मोदी के भाषण का अर्धसत्य: नेहरू ने नहीं कहा था भारतीयों को आलसी और बेअक्ल, इंदिरा ने नहीं कहा था नाउम्मीद

प्रधानमंत्री मोदी ने अपने भाषण में नेहरू और इंदिरा गांधी के जिन भाषणों का जिक्र किया, वे आधे-अधूरे हैं। पूरे भाषण देखने पर मोदी के इस अर्धसत्य की पोल खुल जाएगी।

बाएं से - पंडित जवाहर लाल नेहरू, इंदिरा गांधी और नरेंद्र मोदी
बाएं से - पंडित जवाहर लाल नेहरू, इंदिरा गांधी और नरेंद्र मोदी
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नवजीवन डेस्क

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सोमवार को लोकसभा में अपने भाषण के दौरान दो पूर्व प्रधानमंत्रियों जवाहर लाल नेहरू और इंदिरा गांधी का जिक्र किया। राष्ट्रपति के अभिभाषण के धन्यवाद प्रस्ताव के दौरान मोदी ने आरोप लगाया कि इन दोनों ही प्रधानमंत्रियों ने अपने पद का गरिमा का ध्यान नहीं रखा।

‘चुनावी वर्ष विपक्ष के ढीले-ढाले रवैये’ का मजाक उड़ाते हुए मोदी ने कांग्रेस के दो पूर्व प्रधानमंत्रियों का नाम लेकर कहा कि वे दोनों देश के नागरिकों पर भरोसा नहीं करते थे।

पंडित नेहरू की तरफ साफ तौर पर इशारा करते हुए मोदी ने 1959 के स्वतंत्रता दिवस पर दिए गए नेहरू के भाषण का जिक्र किया। मोदी ने कहा कि, “नेहरू जी ने लाल किले से कहा था कि भारतीयों को मेहनत करने की आदत नहीं है। उन्होंने कहा था कि भारतीय उतनी मेहनत नहीं करते जितनी यूरोप, जापान, चीन, रूस और अमेरिका के लोग करते हैं। नेहरू जी को लगता था कि भारतीय आलसी हैं।” 

लेकिन क्या हकीकत यही है। दरअसल नेहरू ने उर्दू-हिंदी मिश्रित भाषण में कहा था कि, “भारत में हम कड़ी मेहनत करने के आदी नहीं हैं। यह हमारी गलती नहीं है, कभी-कभी ऐसी आदतें पड़ जाती हैं। लेकिन यह हकीकत है कि हम उतनी कड़ी मेहनत नहीं करते जितनी कि यूरोप, जापान, चीन, रूस या अमेरिका के लोग करते हैं। ऐसा मत सोचों की ये देश किसी जादू से विकसित हो गए, यह विकसित हुए अक्ल से और कड़ी मेहनत से।”

लेकिन मोदी ने तो कांग्रेस सांसदों के तीखे विरोध के बीच कह दिया कि, “नेहरू जी को लगता था कि भारतीय आलसी और कम अक्ल हैं।”


नरेंद्र मोदी ने पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी का भी जिक्र किया। उन्होंने कहा कि, “इंदिरा जी ने कहा था कि हमारी आदत ये है कि जब कोई शुभ काम पूरा होने को होता है तो हम आत्मसंतुष्टि की भावना से भर जाते हैं और जब कोई कठिनाई आ जाती है तो हम नाउम्मीद हो जाते हैं। कभी-कभी तो ऐसा लगने लगता है कि पूरे राष्ट्र ने ही पराजय भावना को अपना लिया है। ये सोच है इनकी हमारे देश के, भारतीयों के प्रति।

दरअसल लाल किले से अपने भाषण में इंदिरा गांधी ने कहा था कि, “आज हमें यह समझने की जरूरत है कि समाज को बुराइयों से कैसे बचाया जाए। क्या यह हिंसा और विरोध से हो सकता है। एक दूसरे से लड़कर हो सकता है। इसमें कोई शक नहीं कि सरकार की भी एक जिम्मेदारी है, लेकिन क्या हर किसी को अपनी भूमिका नहीं निभानी चाहिए?”

उन्होंने आगे कहा था, “बदकिस्मती से जब भी कोई शुभ काम पूरा होने वाला होता है, हम आलसी हो जाते हैं, और जब कोई मुश्किल आती है, तो हम नाउम्मीद हो जाते हैं। कभी-कभी ऐसा लगता है कि पूरे देश ने ही पराजय की भावना को स्वीकार कर लिया है....मैं आपको बताना चाहती हूं कि, हिम्मत मत छोड़िए, देश के भविष्य और इसके लोगों में अपना भरोसा रखिए।”

लेकिन अपनी सुविधानुसार मोदी ने इंदिरा गांधी के भाषण का सिर्फ आधा-अधूरा हिस्सा ही सुनाया। उन्होंने राहुल गांधी का नाम लिए बिना कटाक्ष किया कि कांग्रेस तो एक प्रोडक्ट को बार-बार लॉन्च करने की कोशिश कर रही है, और वह हर बार फेल हो जाता है, फिर भी इन्होंने आत्मचिंतन नहीं किया।

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