नीतीश राज में दम तोड़ गया मोदी का डिजिटल इंडिया, कम्प्यूटर के कीबोर्ड-माउस की जगह सीपीयू में रहते हैं जिंदा चूहे

मोदी सरकार की महत्वाकांक्षी योजना डिजिटल इंडिया बिहार में दम तोड़ चुकी है। हालत यह है कि सरकारी पैसा खर्च कर खरीदे गए कम्प्यूटर कबाड़ बन गए हैं और उनमें असली चूहों ने अपने घर बसा लिए हैं।

प्रतीकात्मक फोटो (Getty Images)
प्रतीकात्मक फोटो (Getty Images)
user

शिशिर

मुख्यमंत्री नीतीश कुमार प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की डिजिटल इंडिया मुहिम के शायद सबसे बड़े दुश्मन भी हैं। नीतीश राज में कंप्यूटर शिक्षा के लिए दिखावा तो खूब हुआ लेकिन आलम यह है कि राजधानी के सरकारी स्कूलों में भी बच्चों को कंप्यूटर की शिक्षा नहीं मिल पा रही। 5,773 उच्च माध्यमिक विद्यालयों में से महज दो हजार सरकारी स्कूलों में कंप्यूटर पहुंचे भी, तो पांच साल में पड़े-पड़े कबाड़ हो गए। पांच साल के संविदा पर रखे गए 1,832 कंप्यूटर शिक्षक 818 दिनों से पुनर्बहाली के लिए अनशन कर रहे हैं।

कई बार नीतीश कुमार के सामने कंप्यूटर शिक्षक अपनी बात रखने का प्रयास कर चुके हैं। विधानमंडल में दर्जनों बार इनका मुद्दा उठ चुका है। सत्ता और विपक्ष, दोनों के विधायक दर्जनों बार इनके अनशन में आ चुके हैं लेकिन आश्वासनों से अधिक कुछ नहीं मिला। कंप्यूटर शिक्षक स्थायीकरण के साथ अपनी पुनर्बहाली की आवाज उठा रहे तो इसी के जरिये कबाड़ हो रहे कंप्यूटरों की आवाज भी सरकार तक पहुंच रही है। स्कूलों के प्राचार्य, जिला शिक्षा पदाधिकारी आदि कंप्यूटर लैब के बेकार होने की बात ऊपर तक पहुंचा चुके हैं लेकिन इनकी सुनने वाला कोई नहीं।

2009 में सरकारी स्कूलों में कंप्यूटर शिक्षा शुरू हुई। कुल 5,773 उच्च माध्यमिक विद्यालयों में से पहले चरण में एक हजार को 10-10 कंप्यूटर उपलब्ध कराने की प्रक्रिया शुरू हुई। बाकायदा कंप्यूटर लैब शुरू हो गए। 17 करोड़ की इस योजना का जिम्मा राज्य सरकार के उपक्रम बिहार स्टेट इलेक्ट्रॉनिक्स डेवलपमेंट कॉरपोरेशन लिमिटेड (बेल्ट्रॉन) को दिया गया। इसी योजना के तहत स्कूलों में कंप्यूटर शिक्षकों की पांच साल के लिए संविदा पर बहाली की प्रक्रिया भी हुई। योजना थी कि पांच साल के दौरान संविदा आधारित ये कंप्यूटर शिक्षक स्कूल के शिक्षकों को ट्रेनिंग भी दे देंगे। सबसे पहले तो यह सोचना ही गलत था और जब ऐसी योजना थी भी, तो इसकी मॉनिटरिंग सख्ती से की जानी चाहिए थी।


कंप्यूटर शिक्षकों ने बच्चों को तो पढ़ाया लेकिन शिक्षकों ने ट्रेनिंग नहीं ली। इसी दौरान दूसरे फेज में 2012 में 14 करोड़ के कंप्यूटर खरीदने की तैयारी की गई। बिहार सरकार ने तब तक शैक्षणिक आधारभूत संचरना विकास निगम का गठन कर लिया था। एक हजार स्कूलों के लिए कंप्यूटरों की खरीदारी हुई। दो हजार स्कूलों में कंप्यूटर पहुंचा और कुल 1,832 शिक्षक एक-एक स्कूल में कंप्यूटर शिक्षा दे रहे थे। 2015 तक ज्यादातर की संविदा अवधि खत्म हो गई, शेष की 2017 में। लिहाजा, कंप्यूटर शिक्षक बाहर हो गए और सभी कंप्यूटर लैब के अंदर बंद।

आगे भी कुछ नहीं

बिहार विधानसभा के 250 मीटर के दायरे में 1,832 कंप्यूटर शिक्षक 814 दिनों से धरना पर हैं। एक बार सभा के दौरान नीतीश तक इनकी आवाज पहुंची तो उन्होंने शिक्षा मंत्री कृष्ण नंदन वर्मा को मामला देखने के लिए भी कहा लेकिन अब तक प्रक्रिया आगे नहीं बढ़ी। शिक्षामंत्री ‘मामले में कुछ प्रगति’ की बात तो कर रहे लेकिन वास्तविक स्थिति नहीं बता रहे। बिहार कंप्यूटर टीचर वेलफेयर एसोसिएशन के अध्यक्ष अबिंदर प्रसाद यादव कहते हैं कि आरटीआई के जरिये कंप्यूटर शिक्षकों को सरकारी प्रक्रिया की वास्तविक स्थिति की जानकारी हासिल नहीं हो पा रही जबकि संविदा पर कंप्यूटर शिक्षकों को दोबारा रखने की योजना संबंधित फाइल जनवरी 2018 से ही शिक्षा विभाग के अंदर ही घूम रही है।


ज्यादातर सीपीयू बेकार

2009 में कंप्यूटर का जो वर्जन सरकारी स्कूलों में दिया गया, वह आज की तारीख में काम के लायक नहीं। आधे कंप्यूटर दो साल से, जबकि इतने ही पांच साल से बंद हैं। पटना के प्रतिष्ठित स्कूलों में भी कंप्यूटर लैब गोदाम बन गए हैं तो अन्य जिलों की हालत का अनुमान लगाना मुश्किल नहीं। कई स्कूलों से कंप्यूटर चोरी हो गए तो दर्जनों से मदर बोर्ड गायब है तो कई में की बोर्ड-माउस ढूंढ़ना पड़ रहा। सीपीयू के अंदर चूहों ने घर तक बसा लिए हैं।

Google न्यूज़नवजीवन फेसबुक पेज और नवजीवन ट्विटर हैंडल पर जुड़ें

प्रिय पाठकों हमारे टेलीग्राम (Telegram) चैनल से जुड़िए और पल-पल की ताज़ा खबरें पाइए, यहां क्लिक करें @navjivanindia


/* */