बिहार में अब तक लौटे सवा लाख प्रवासी मजदूर, नीतीश सरकार के लिए सबकी जांच बनी चुनौती

बिहार के स्वास्थ्य विभाग के अनुसार क्वारंटाइन सेंटर में रह रहे सभी प्रवासियों का टेस्ट संभव नहीं, क्योंकि उनकी संख्या एक लाख से ज्यादा हो चुकी है। हालांकि, जरूरी व्यवस्था और सुविधाओं को बढ़ाने के लिए विभाग ने भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद को लिखा भी है।

फोटोः IANS
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आईएएनएस

बिहार में अन्य प्रदेशों से आ रहे प्रवासी मजदूरों की जांच राज्य में सीमित संसाधनों के बीच सरकार के लिए चुनौती बन गई है। एक मई से 10 मई तक करीब 1.10 लाख से ज्यादा मजदूर बिहार पहुंच चुके हैं, जबकि 15 मई तक इनकी संख्या दो लाख तक पहुंच जाने की उम्मीद है। फिलहाल राज्य में प्रतिदिन 1500 से 1600 नमूनों की जांच हो रही है। ऐसे में इतनी बड़ी संख्या में मजदूरों की जांच नीतीश सरकार के लिए एक बड़ी चुनौती के रूप में खड़ी हो रही है।

बिहार के स्वास्थ्य विभाग के एक अधिकारी ने बताया कि दिल्ली, मुंबई और अहमदाबाद से ट्रेनों से आए यात्रियों में 1,100 के रैंडम टेस्ट किये गए, जिनमें से 44 के रिपोर्ट पॉजिटिव आए हैं। पिछले एक हफ्ते से प्रदेश में रोजाना लगभग 1,000 प्रवासियों की रैंडम सैंपलिंग की जा रही है। स्वास्थ्य विभाग के सचिव लोकेश कुमार सिंह ने बताया कि बिहार में अब तक बाहर से जो लोग आए हैं, उनमें से 142 लोग कोरोना पॉजिटिव पाए गए हैं।

उन्होंने बताया कि 4 मई से अब तक महाराष्ट्र, गुजरात, उत्तर प्रदेश, नई दिल्ली, राजस्थान सहित अन्य राज्यों से आने वाले 85 प्रवासियों में कोरोना संक्रमण की पुष्टि हुई है, जिनमें महाराष्ट्र के 30, गुजरात के 22, दिल्ली के 8 और अन्य राज्यों से बिहार आने वाले लोग शामिल हैं। अन्य राज्यों से आने वाले प्रवासियों के लिए प्रखंड स्तर पर क्वारंटाइन सेंटर में उनके क्वारंटाइन करने की व्यवस्था की गई है। विभिन्न जिलों में कोविड केयर सेंटर में भी आइसोलेशन वार्ड की संख्या बढ़ाई गई है।

स्वास्थ्य विभाग भी क्वारंटाइन सेंटर में रह रहे लोगों की जांच को चुनौती मानता है। स्वास्थ्य विभाग के प्रधान सचिव संजय कुमार ने बताया कि बिहार में आ रहे प्रवासियों के टेस्ट रिपोर्ट चौंकाने वाले हैं। 1100 की रैंडम सैंपल में 4 फीसदी के टेस्ट पॉजिटिव आए हैं। प्रधान सचिव ने कहा, "क्वारंटाइन सेंटर में रह रहे सभी प्रवासियों का टेस्ट नहीं कर सकते, क्योंकि उनकी संख्या एक लाख से ज्यादा पहुंच चुकी है।”

हालांकि उन्होंने कहा, “हम चुनौतियों को समझ रहे हैं और इसके लिए जरूरी व्यवस्था और अपनी सुविधाओं को बढ़ाने के लिए 9 मई को भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद को लिखा भी है।" उन्होंने कहा कि फिलहाल हम लोग सात जांच केंद्रों पर प्रतिदिन औसतन करीब 1800 जांच कर रहे हैं। अगर सभी सुविधाएं मिल जाती हैं तो यह संख्या 8,500 से ज्यादा पहुंच जाएगी।

कोरोना वायरस के पहले मरीज के मिलने से तीन सप्ताह पहले से ही बिहार ने एहतियाती कदम उठाना शुरू कर दिया था। शुरुआती दौर में कोरोना के कम मामलों को देखते हुए ऐसा लग रहा था कि बिहार ने बाजी मार ली है, लेकिन समय के साथ राज्य में कोरोना वायरस की रफ्तार तेज होती जा रही है। बिहार में मार्च महीने में कोरोना का पहला पॉजिटिव मरीज मिला था और उसकी 22 मार्च को मौत हो गई थी। मौत के कुछ ही देर पहले उसके पॉजिटिव होने की पुष्टि हुई थी।

स्वास्थ्य विभाग का दावा है कि राज्य के अंदर लोगों में संक्रमितों की संख्या नहीं के बराबर है। प्रधान सचिव कहते हैं कि राज्य में डोर-टू-डोर स्क्रीनिंग की व्यवस्था बनाई गई है और अब तक करीब 1.04 करोड़ लोगों का सर्वे किया गया है। 3,849 नमूने एकत्र किये गए हैं। इससे पता चलता है कि प्रदेश में लोगों के बीच इसका ज्यादा प्रभाव नहीं है।

गौरतलब है कि बिहार में अब तक 36 हजार से ज्यादा नमूनों की जांच हुई है, जिनमें 714 लोगों को कोरोना वायरस से संक्रमित पाया गया है। इसमें से 358 संक्रमित इलाज होने के बाद स्वस्थ होकर वापस अपने घर चले गए हैं जबकि छह लोगों की मौत हो चुकी है। फिलहाल बाकी मरीजों का इलाज जारी है।

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