मध्य प्रदेशः घोषणावीर शिवराज का ऑनलाइन पढ़ाई का दावा, भोपाल के बाहर मोबाइल-नेटवर्क के अभाव में हकीकत कुछ और

मध्य प्रदेश के सरकारी स्कूलों के 71 लाख बच्चों में से करीब 40 फीसदी के पास या घर में एन्ड्राॅयड फोन तक नहीं हैं। करीब 25 फीसदी गांवों में नेटवर्क नहीं मिलता। ऐसे में ऑनलाइन पढ़ाई के शिवराज सिंह चौहान के दावे की हवा भोपाल से बाहर आते ही निकलते लगती है।

फोटोः सोशल मीडिया
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पूजा

मध्य प्रदेश में अकेले ही सरकार चला रहे मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान इन दिनों भी पहले की तरह ही सिर्फ घोषणावीर वाला ही काम कर रहे हैं। उन्होंने लाॅकडाउन के बीच पहली से आठवीं क्लास तक के बच्चों की पढ़ाई ऑनलाइन कराने को कह दिया। शिक्षा विभाग इसके स्मूथ ढंग से चलने का दावा भी कर रहा है। जबकि हकीकत जानने-देखने वाला कोई नहीं है।

मध्य प्रदेश के सरकारी स्कूलों में करीब 71 लाख बच्चे रजिस्टर्ड हैं। ये जिन इलाकों में हैं, उनमें 25 फीसदी गांव ऐसे हैं, जहां नेटवर्क नहीं मिलता। करीब 40 फीसदी बच्चों और उनके अभिभावकों के पास एन्ड्राॅयड फोन तक नहीं हैं। फिर भी, सरकारी स्कूलों के शिक्षकों को अभिभावकों और बच्चों के वाट्सएप ग्रुप बनाने को कहा गया है। कहा गया कि इन ग्रुप्स से वीडियो काॅलिंग में तो सुविधा होगी ही, पठन-पाठन सामग्री भी ऑनलाइन भेजने में सुविधा होगी। पढ़ने-सुनने में तो यह सब बहुत अच्छा लग रहा है, पर राजधानी भोपाल से थोड़ा दूर जाते ही हकीकत नजर आने लगती है।

भोपाल से लगभग 200 किलोमीटर दूर है बैतूल जिले का धामनियां गांव। यहां के गोविंद सिंह का कहना है कि हमारे यहां तो मोबाइल डिब्बा है। गांव के अंदर रहो, तब तक फोन नहीं लगता। गांव में किसी का निधन हो जाए तो रिश्तेदारों को खबर देने के लिए पास की टेकड़ी पर चढ़ते हैं, तब नेटवर्क मिलता है और तब फोन लगा पाते हैं। अभी तक गांव में किसी मोबाइल कंपनी ने टावर नहीं लगाया है। उन्होंने बताया कि गांव में 75 फीसदी ग्रामीणों के पास एन्ड्राॅयड फोन नहीं हैं। कवरेज नहीं होने के कारण अब तक किसी शिक्षक का फोन भी किसी के पास नहीं आया है।

छिंदवाड़ा जिले के मानकादेही कला गांव के गुलाब चंद्रवंशी ने बताया कि एक शिक्षक ने उन्हें फोन किया था, पर उन्होंने शिक्षक से कहा, “मासाब, हमारो पास छोटो मोबाइल है ते पोरिया-पारी (छात्र-छात्राओं) को पास बड़ो मोबाइल कहां से रहे। बड़ी मुश्किल से तो हम छोटो मोबाइल बपर (उपयोग करना) हैं। तुमक ऑनलाइन पढ़ानो ही है ते बड़ो मोबाइल तो दिलवा दो।”

यह जरूर है कि कुछ शिक्षक इस प्रयास में लगे हैं कि बच्चों की ऑनलाइन पढ़ाई किसी तरह हो। लेकिन कम्प्यूटर तो छोड़िए, एन्ड्राॅयड फोन भी न होना फिलवक्त सबसे बड़ी बाधा है। शिक्षा विभाग के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि पूरे प्रदेश में आठ दिनों में शिक्षक शायद 10 फीसदी बच्चों तक भी नहीं पहुंच पाए हैं। कई जिले के शिक्षकों ने कहा कि अगर वे ज्यादा फोन लगाते हैं, तो उलटे अभिभावक चिढ़ जाते हैं।

मध्य प्रदेश में सरकारी स्कूलों के शिक्षक एक दूसरी समस्या से भी रू-ब-रू हैं। होशंगाबाद जिले के एक मिडिल स्कूल के शिक्षक की ड्यूटी चैराहे पर लगा दी गई है। उन्होंने अपना नाम न छापने की शर्त पर कहा कि वह अप्रैल के पहले सप्ताह से चौक-चौराहों पर पुलिस वालों के साथ रहकर वाहन वालों को रोकते हैं और उन्हें मास्क लगाने और घर पर ही रहने की सलाह देने की ड्यूटी कर रहे हैं। उन्हें भी बच्चों को ऑनलाइन पढ़ाने के लिए कई निर्देश आ चुके हैं, पर संस्था प्रमुख और संकुल प्रमुख को बताने के बावजूद इस ड्यूटी से मुक्त नहीं किया जा रहा, तो वह पढ़ने-पढ़ाने के बारे में सोचें भी कैसे।

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