MP: दो चूहामार अभियान, करोड़ों का भुगतान, फिर भी इंदौर के अस्पताल में मरीजों को काट रहे चूहे

इंदौर के एमवायएच में नवजात बच्चों पर चूहों के हमले का यह कोई पहला मामला नहीं है। वर्ष 2021 में अस्पताल की नर्सरी में चूहों ने एक बच्चे की एड़ी कुतर दी थी। खाब बात यह है कि एमवायएच की गिनती सूबे के सबसे बड़े सरकारी अस्पतालों में होती है।

MP: दो चूहामार अभियान, करोड़ों का भुगतान, फिर भी इंदौर के अस्पताल में मरीजों को काट रहे चूहे
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नवजीवन डेस्क

गहन चिकित्सा इकाई (आईसीयू) में चूहों के काटने के बाद दो नवजात बच्चियों की मौत के कारण इंदौर का शासकीय महाराजा यशवंतराव चिकित्सालय (एमवायएच) इन दिनों चर्चा में है, लेकिन इस अस्पताल में चूहों की ‘घुसपैठ' का मामला कोई नया नहीं है। पहले भी चूहे मरीजों को काट चुके हैं। खास बात यह है कि इस अस्पताल में दो बड़े चूहामार अभियान चलाए गए हैं, जिनके लिए करोड़ों का भुगतान भी किया गया, फिर भी अस्पताल में घुसकर चूहे मरीजों को काट रहे हैं।

इंदौर के एमवायएच की गिनती सूबे के सबसे बड़े सरकारी अस्पतालों में होती है। प्रशासन ने गुजरे तीन दशक के दौरान एमवायएच में चूहों के खात्मे के लिए दो बड़े अभियान चलाए हैं। इसके साथ ही, निजी फर्मों को एमवायएच में कीट नियंत्रण, साफ-सफाई और रख-रखाव से जुड़े अन्य कामों के लिए सरकारी खजाने से करोड़ों रुपये का भुगतान किया जा चुका है, लेकिन अस्पताल की 75 साल पुरानी इमारत में चूहों की चहलकदमी जारी है और उनके काटने की स्थिति में मरीजों को संक्रमण का खतरा बना हुआ है।

अधिकारियों ने शुक्रवार को बताया कि वर्ष 1994 के दौरान सूरत में प्लेग के प्रकोप के बाद इंदौर के तत्कालीन जिलाधिकारी सुधि रंजन मोहंती (जो बाद में राज्य के मुख्य सचिव भी बने थे) के नेतृत्व में पूरे एमवायएच को कुछ दिनों के लिए खाली कराते हुए चूहामार अभियान चलाया गया था जिसके तहत 12,000 से ज्यादा चूहे मारे गए थे। उन्होंने बताया कि इंदौर के तत्कालीन संभाग आयुक्त (राजस्व) संजय दुबे के नेतृत्व में एमवायएच में 2014 के दौरान एक बार फिर चूहामार अभियान चलाया गया था। माना जाता है कि इस अभियान में कम से कम 2,500 चूहे मारे गए थे।

चूहों के हमले के बाद दो नवजात बच्चियों की मौत के ताजा मामले को लेकर मचे बवाल के बीच एमवायएच प्रशासन लगातार दावा कर रहा है कि दोनों शिशुओं की मौत का चूहों के काटने से कोई लेना-देना नहीं है और उन्होंने अलग-अलग जन्मजात विकृतियों के कारण पहले से मौजूद गंभीर स्वास्थ्यगत परेशानियों से दम तोड़ा।

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बहरहाल, पशु चिकित्सक डॉ. नरेंद्र चौहान ने बताया,‘‘संक्रमित चूहों के संपर्क में आने से इंसानों में अलग-अलग बीमारियां फैल सकती हैं जिनमें रैट-बाइट फीवर और प्लेग प्रमुख हैं। कुछ बीमारियां चूहों के पेशाब, मल, लार, बाल या उन पर पाए जाने वाले पिस्सू या किलनी के माध्यम से होने वाले संक्रमण से भी फैल सकती हैं।’’

एमवायएच में बच्चों की सर्जरी के विभाग के अध्यक्ष डॉ. ब्रजेश लाहोटी के इस सिलसिले में अपने तर्क हैं। कर्तव्य में लापरवाही के आरोपों का सामना कर रहे वरिष्ठ चिकित्सक ने कहा, "चूहों के काटने से किसी इंसान की मौत नहीं हो सकती। गांवों में किसानों के खेतों में काम करने के दौरान भी चूहे निकलते रहते हैं। कभी-कभी हम लोगों (चिकित्सकों) को भी यहां अस्पताल या दूसरी जगह ड्यूटी करते वक्त चूहे काट लेते हैं।"

चूहों के हमले के बाद दो नवजात बच्चियों की मौत को लेकर आलोचना झेल रहे एमवायएच प्रशासन ने उस निजी फर्म को राज्य सरकार की काली सूची में डालने की सिफारिश की है जिसके पास अस्पताल परिसर की साफ-सफाई, सुरक्षा, कीट नियंत्रण और डेटा एंट्री ऑपरेटर सरीखे मानव संसाधन मुहैया कराने का ठेका है। सरकारी खजाने से करोड़ों रुपये का भुगतान हासिल करने वाली इस फर्म पर एक लाख रुपये का जुर्माना पहले ही लगाया जा चुका है।

एमवायएच प्रशासन अस्पताल में चूहों की घुसपैठ के लिए मरीजों के तीमारदारों द्वारा लाये जाने वाले खाद्य पदार्थों को भी जिम्मेदार ठहरा रहा है। एमवायएच प्रशासन ने तीमारदारों से कहा है कि वे बाहर से खाने-पीने का सामान लेकर अस्पताल में न आएं क्योंकि ये चीजें चूहों को आकर्षित करती हैं। इसके अलावा, अस्पताल में चूहे, कॉकरोच और खटमल जैसे जीव दिखाई देने पर सूचना देने के लिए एक हेल्पलाइन नम्बर भी जारी किया गया है।


गैर सरकारी संगठन ‘जन स्वास्थ्य अभियान मध्य प्रदेश’ के संयोजक अमूल्य निधि ने कहा कि एमवायएच प्रशासन चूहों के मामले में मरीजों के तीमारदारों पर ठीकरा फोड़कर अपनी जिम्मेदारी से बचना चाहता है। उन्होंने कहा, ‘‘एमवायएच में इलाज के दौरान दम तोड़ने वाली दोनों नवजात बच्चियों को चूहों ने बेहद सुरक्षित समझे जाने वाले आईसीयू में काटा था जहां मां का दूध पीने वाले शिशुओं को भर्ती किया जाता है। मरीजों के तीमारदारों को आईसीयू के भीतर दाखिल होने की अनुमति नहीं होती। आईसीयू की सुरक्षा की पूरी जिम्मेदारी एमवायएच प्रशासन की है।"

निधि ने एमवायएच में चूहों के काटने के बाद दो नवजात बच्चियों की मौत को लेकर आरोप लगाया कि यह घटना बाल अधिकारों, संक्रमण-नियंत्रण प्रोटोकॉल और अस्पताल सुरक्षा मानकों का गंभीर उल्लंघन है। 'जन स्वास्थ्य अभियान मध्य प्रदेश’ की ओर से निधि की ही शिकायत पर राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग (एनसीपीसीआर) ने एमवायएच में इन नवजात बच्चियों की मौत का संज्ञान लेते हुए जिलाधिकारी को नोटिस जारी किया है और तीन दिन के भीतर कार्रवाई रिपोर्ट (एटीआर) तलब की है।

नवजात बच्चियों की मौत के मामले में एमवायएच प्रबंधन अब तक छह अधिकारियों पर अनुशासनात्मक कार्रवाई कर चुका है जिसमें निलंबन और पद से हटाए जाने के कदम शामिल हैं। वैसे एमवायएच में नवजात बच्चों पर चूहों के हमले का यह कोई पहला मामला नहीं है। वर्ष 2021 में अस्पताल की नर्सरी (वह स्थान जहां नवजात बच्चों को देख-भाल के लिए रखा जाता है) में चूहों ने एक बच्चे की एड़ी कुतर दी थी।

अधिकारियों ने बताया कि 2014 में चलाए गए चूहामार अभियान के दौरान एमवायएच परिसर में चूहों के 8,000 बिल होने का अनुमान लगाया गया था। चश्मदीदों के मुताबिक एमवायएच के परिसर में काफी खुली जगह है जहां अब भी चूहों के बिल देखे जा सकते हैं। उन्होंने बताया कि बारिश में बिलों में पानी भरने से चूहे अक्सर एमवायएच में घुस जाते हैं। इसके अलावा, अस्पताल की पुरानी इमारत में पड़ा कबाड़ भी चूहों को छिपने के लिए मुफीद जगह मुहैया कराता है।

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