सांसदों के सीधे सवालों पर मोदी सरकार के उलझे हुए और गोलमोल जवाब, आखिर क्या छुपाना चाहती है सरकार !

क्या मोदी सरकार सरकारी योजनाओं और उनके क्रियान्वयन के बारे में पूछे गए सवालों के सीधे जवाब न देकर कुछ छिपाना चाहती है? सांसदों द्वारा पूछे सवालों के जवाब देखने के लगता है कि सरकार के पास या तो आंकड़ें नहीं है, या फिर वह उन्हें बताना नहीं चाहती।

राज्यसभा टीवी का ग्रैब
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ऐशलिन मैथ्यू

राज्यसभा के 250वें सत्र की शुरुआत के मौके पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सोमवार को कहा कि जब भी देश का मामला आया है राज्यसभा ने उसमें अपना योगदान दिया। उन्होंने कहा कि जीएसटी, तीन तलाक और अनुच्छेद 370 जैसे कानून पास करने में संसद के उच्च सदन की अहम भूमिका रही है।

लेकिन, इन सारे उद्धरणों और अलंकारों के बावजूद सरकार धीरे-धीरे राज्यसभा में पूछे गए ज्यादातर सवालों के जवाब इस तरह दे रही है मानो खानापूर्ति की जा रही हो। हमने राज्यसभा में सांसदों द्वारा पूछे गए ऐसे ही कुछ सवालों की पड़ताल की तो सामने आया कि सरकार ने सवालों को और उलझा दिया है।

हाल ही में तेलुगु देशम पार्टी (टीडीपी) सांसद थोटा सीतारमा लक्ष्मी ने सवाल पूछा था कि नेशनल टैलेंट डेवलपमेंट प्रोग्राम को तहत क्या कोई फंड की व्यवस्था की गई है और आंध्र प्रदेश को इस फंड के तहत कितना पैसा मिला है। इस सवाल के जवाब में किरण रिजिजू के खेल मंत्रालय ने जवाब दिया है कि ऐसा कोई प्रोग्राम नहीं चल रहा है। अलबत्ता यह जरूर कहा कि खेलो इंडिया योजना के तहत चलने वाले टेलेंट सर्च एंड डवलपमेंट कार्यक्रम में 2741 खिलाड़ियों को आर्थिक सहायता दी जा रही है। लेकिन सरकार ने इस सवाल का जवाब नहीं दिया कि इस कार्यक्रम के तहत आंध्र प्रदेश को कितनी सहायता दी गई। पिछले साल प्रेस इंफार्मेशन ब्यूरो ने एक विज्ञप्ति में कहा था कि मेधाओं को निखारने के ले 50 करोड़ रुपए खर्च किए जाएंगे।

इसी तरह बीजेपी की सहयोगी पार्टी जेडीयू के रामनाथ ठाकुर ने भी सवाल पूछा था कि आखिर खेलो इंडिया योजना का लक्ष्य क्या है और इसने अभी तक कितने प्रशिक्षण शिविरों का आयोजन किया है? इस सवाल के जवाब में खेल मंत्रालय ने कहा है कि खेलो इंडिया का लक्ष्य पूरी खेल व्यवस्था को मजबूत करना है और इसके तहत अभी तक कोई प्रशिक्षण शिविर आयोजित नहीं किया गया है।

लेकिन रोचक है कि खेलो इंडिया की वेबसाइट कुछ और ही बताती है। यहां बताया गया है कि इस योजना का मकसद खेलो इंडिया केंद्रों पर सामुदायिक कोचिंग के माध्यम से खेल प्रतिभाओं को तैयार करना है।

इसके अलावा नितिन गडकरी की अगुवाई वाले सड़क परिवहन मंत्रालय से पूछे गए सवालों को भी टाल दिया गया। कांग्रेस सांसद बी के हरिप्रसाद ने पूछा था कि क्या कई राज्यों ने मोटर वाहन (संशोधन) अनिधिनिय 2019 को लागू करने से इनकारकर दिया है। साथ ही यह जानकारी भी मांगी थी कि क्या विभिन्न टैक्सी यूनियनों ने इस कानून के खिलाफ शिकायतें दर्ज कराई हैं। लेकिन मंत्रालय का जवाब था कि उसके पास इस बारे में किसी राज्य से कोई सूचना नहीं है और न ही यह सूचना है कि गुजरात, कर्नाटक, मणिपुर और उत्तराखंड ने जुर्माने की राशि में कमी की है।

गौरतलब है कि नए मोटर वाहन कानून को लेकर देश भर से तमाम तरह की खबरें सामने आई थीं। यह भी खबरें आईं थीं कि दिल्ली की टैक्सी और ट्रक यूनियन ने इस बारे में कई पत्र मंत्रालय को लिखे हैं।


वहीं शिवसेना सांसद संजय राउत ने सरकार से पूछा था कि नेशनल हाइवे के किनारे अगले पांच साल में सवा करोड़ पेड़ लगाने की क्या सरकार की कोई योजना है। अगर हां तो इस पर कितना पैसा खर्च होगा और क्या इसके लिए किसी एजेंसी पर विचार किया जा रहा है जो पेड़ लगाएगी और बाद में इसकी देखरेख और जियोटैगिंग आदि का काम देखेगी। इस सवाल के जवाब में गडकरी के मंत्रालय ने कहा है कि हाईवे किनारे पेड़ लगाने का काम इंडियन रोड कांग्रेस द्वारा प्रकाशित नियमावली के तहत हो रहा है और वृक्षारोपण और देखरेख के साथ ही जियोटैगिंग करना भी सामान्य प्रक्रिया है। सरकार ने सीधे कह दिया कि जियोटैगिंग वृक्षारोपण का अभिन्न अंग है, लेकिन जो सवाल पूछा गया था उसका जवाब नहीं दिया।

सीपीएम सांसद के के रागेश ने भारी उद्योग मंत्रालय से पूछा था कि क्या सरकारी कंपनियों से खरीद में कमी आ रही है। उन्होंने खरीद की विस्तृत जानकारी के साथ कमी आने का कारण भी पूछा था। लेकिन प्रकाश जावड़ेकर के प्रभार वाले मंत्रालय का कहना है कि केंद्र सरकार की इकाइयों ने सेंट्रल पब्लिक सेक्टर इंटरप्राइज के माध्यम से बीते तीन साल में कोई खरीद नहीं की है। मंत्रालय के पास इस बारे में कोई आंकड़े ही उपलब्ध नहीं हैं।

इसी तरह कांग्रेस सांसद राजीव गौड़ा का सवाल था कि स्वच्छ भारत अभियान के तहत बनाए गए सभी शौचालयों का क्या दोबारा निरीक्षण और सत्यापन किया गया है। यह भी पूछा गया था कि क्या इसकी किसी निष्पक्ष संस्था ने पुष्टि की है। लेकिन रतन लाल कटारिया के प्रभार वाला जलशक्ति मंत्रालय इस सवाल के जवाब से बचता नजर आया। मंत्रालय ने कहा कि ग्रामीओं ने खुद ही अपने गांव को खुले में शौच से मुक्त घोषित किया है और कुल 5,99,963 गांवों में से 1,54,807 गांलों में दोबारा निरीक्षण पूर्ण हो चुका है। सरकार ने बताया कि राष्ट्रीय वार्षिक स्व्च्छता सर्वेक्षण ने इस बारे में 2017-18 और 2018-19 में सर्वे किया था।

इस विषय में राजीव गौड़ा ने बताया कि, “सवाल पूछने का मकसद सरकार की जवाबदेही तय करना और पारदर्शिता लाना था, क्योंकि सरकारी योजनाएं पिछड़ रही हैं और जमीनी स्तर पर सच्चाई सबके सामने है।” उन्होंने कहा कि जिस तरह फसल बीमा योजना नाकाम साबित हुई है उसी तरह स्वच्छ भारत अभियान भी जमीनी स्तर पर नाकाम ही साबित हुआ है।

इसी प्रकार कांग्रेस के एल हनुमनथप्पा और पी भट्टाचार्य ने सवाल पूछा था कि सरकार के जल जीवन अभियान के तहत कितने घरों को पानी मुहैया कराया गया। इसके जवाब में मंत्रालय ने कहा कि राष्ट्रीय पेयजल कार्यक्रम को जल जीवन मिशन का हिस्सा बना दिया गया है और मंत्रालय राज्यों को इस बारे में आर्थिक सहायता देता है।


इतना ही नहीं बीजेपी सांसदों के सवालों पर भी सरकार ने गोलमोल जवाब दिए हैं। बीजेपी सांसद प्रभात झा ने पूछा था कि देश में जल स्त्रोतों की स्थिति क्या है और क्या देश के सामने जल संकट से निपटने के लिए क्या केंद्र ने राज्यों को कोई एडवाइजरी जारी की है। इसके जवाब में कटारिया के मंत्रालय ने जवाब दिया है कि नेशनल हाइड्रोलॉजी प्रोजेक्ट को डेटा शेयरिंग के लिए बनाया गया है।

रक्षा मंत्रालय से पूछे गए सवालों के जवाब तो और भी अद्भुत हैं। बीजेपी के लाल सिंह वडोडिया ने आतंकी घुसपैठ के बारे में सवाल पूछते हुए सरकार ने जानकारी चाही थी कि इसे रोकने के लिए सरकार क्या कदम उठा रही है। राजनाथ सिंह के मंत्रालय का जवाब था, “सरकार घुसपैठ रोकने के लिए एक मजबूत रणनीति बनाई है जिसमें तकनीक और मानव संसाधनों का इस्तेमाल किया गया है। सुरक्षा बलों को नए सिरे से तैनात करने और निगरानी करने वाले उपकरणों की मदद से घुसपैठ की कोशिश करने वाले आतंकियों को रोका जा रहा है।”

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