मुंबई ब्लास्ट केस: 12 आरोपियों की रिहाई को केंद्र और महाराष्ट्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में दी चुनौती
17 जुलाई को बॉम्बे हाईकोर्ट की खंडपीठ, न्यायमूर्ति अनिल किलोर और न्यायमूर्ति एस चांडक ने विशेष टाडा अदालत के फैसले को पलटते हुए सभी 12 दोषियों को निर्दोष घोषित कर रिहा करने का आदेश दिया था।

2006 के मुंबई लोकल ट्रेन सीरियल ब्लास्ट मामले में बॉम्बे हाईकोर्ट द्वारा 12 आरोपियों को बरी किए जाने के फैसले के खिलाफ केंद्र सरकार और महाराष्ट्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया है। केंद्र की ओर से सॉलिसिटर जनरल (SG) ने मंगलवार को शीर्ष अदालत से इस मामले में तत्काल सुनवाई की मांग की, जिस पर सुप्रीम कोर्ट ने संज्ञान लेते हुए गुरुवार को सुनवाई तय की है।
हाईकोर्ट के फैसले में कहा गया था कि अभियोजन पक्ष आरोपियों के खिलाफ ठोस सबूत पेश करने में असफल रहा, इसलिए उन्हें संदेह का लाभ देते हुए बरी किया गया। इस फैसले ने देशभर में न्यायिक व्यवस्था और सुरक्षा एजेंसियों की भूमिका पर बहस छेड़ दी है।
हाईकोर्ट ने क्या फैसला दिया है?
17 जुलाई को बॉम्बे हाईकोर्ट की खंडपीठ, न्यायमूर्ति अनिल किलोर और न्यायमूर्ति एस चांडक ने विशेष टाडा अदालत के फैसले को पलटते हुए सभी 12 दोषियों को निर्दोष घोषित कर रिहा करने का आदेश दिया था। इन 12 में से 5 को ट्रायल कोर्ट ने फांसी और 7 को उम्रकैद की सजा सुनाई थी। अदालत ने कहा कि प्रस्तुत साक्ष्य पर्याप्त नहीं थे और अभियोजन द्वारा लगाए गए आरोप संदेह से परे सिद्ध नहीं हो सके।
सुप्रीम कोर्ट में अब क्या?
केंद्र सरकार और महाराष्ट्र ATS दोनों ने सुप्रीम कोर्ट से हाईकोर्ट के फैसले पर रोक लगाने की मांग की है। शीर्ष अदालत अब यह तय करेगी कि हाईकोर्ट के आदेश पर अस्थायी रोक लगेगी या नहीं और मामले की आगे की सुनवाई किस दिशा में बढ़ेगी। इस मामले में सुप्रीम कोर्ट की पहली सुनवाई गुरुवार को होगी।
क्या था पूरा मामला?
11 जुलाई 2006 को शाम के समय मुंबई की लोकल ट्रेनों में 11 मिनट के भीतर सात जगहों पर बम धमाके हुए थे। इन धमाकों में 189 लोगों की मौत हो गई थी और 827 से ज्यादा लोग घायल हुए थे। इस आतंकी हमले ने पूरे देश को हिलाकर रख दिया था।
ATS ने नवंबर 2006 में चार्जशीट दाखिल की थी, और 2015 में ट्रायल कोर्ट ने 12 लोगों को दोषी करार दिया। दोषियों ने इसके खिलाफ हाईकोर्ट में अपील की थी, जिस पर 19 साल बाद फैसला आया।
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