मुंबईः एनकाउंटर स्पेशलिस्ट प्रदीप शर्मा को झटका, 2006 के फर्जी मुठभेड़ केस में आजीवन कारावास की सजा

प्रदीप शर्मा की मुश्किलें यहीं खत्म नहीं होंगी, क्योंकि वह 2021 में उद्योगपति मुकेश अंबानी के घर के पास जिलेटिन की छड़ की बरामदगी और मनसुख हिरानी की हत्या से संबंधित एक अलग मामले में भी फंसे हुए हैं। इस मामले में उन्हें सुप्रीम कोर्ट से जमानत मिल गई है।

मुंबई के एनकाउंटर स्पेशलिस्ट प्रदीप शर्मा को फर्जी मुठभेड़ केस में आजीवन कारावास की सजा
मुंबई के एनकाउंटर स्पेशलिस्ट प्रदीप शर्मा को फर्जी मुठभेड़ केस में आजीवन कारावास की सजा
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पीटीआई (भाषा)

मुंबई के पूर्व पुलिस अधिकारी और विवादास्पद ‘एनकाउंटर स्पेशलिस्ट’ प्रदीप शर्मा को मंगलवार को एक बड़ा कानूनी झटका लगा । बंबई उच्च न्यायालय ने उन्हें 2006 में मुंबई में गैंगस्टर छोटा राजन के कथित करीबी सहयोगी रामनारायण गुप्ता की फर्जी मुठभेड़ के मामले में दोषी ठहराया और आजीवन कारावास की सजा सुना दी।

उच्च न्यायालय का फैसला सत्र अदालत के पहले के फैसले के बिल्कुल उलट है, जिसने शर्मा को बरी कर दिया था। न्यायमूर्ति रेवती मोहिते डेरे और न्यायमूर्ति गौरी गोडसे की एक खंडपीठ ने शर्मा को बरी करने के निचली अदालत के फैसले को "गलत" और "नहीं टिकने लायक" करार देते हुए रद्द कर दिया। अदालत ने कहा, "निचली अदालत ने शर्मा के खिलाफ उपलब्ध पर्याप्त सबूतों को नजरअंदाज कर दिया। सबूत मामले में उनकी संलिप्तता को स्पष्ट रूप से साबित करते हैं।"

11 नवंबर 2006 को एक पुलिस दल ने गुप्ता उर्फ ​​लखन भैया को पड़ोसी वाशी से इस संदेह पर पकड़ा था कि वह राजन गिरोह का सदस्य है। उसके साथ उसके दोस्त अनिल भेड़ा को भी पकड़ा गया था। गुप्ता को उसी शाम पश्चिम मुंबई के उपनगरीय वर्सोवा में नाना नानी पार्क के पास एक "फर्जी" मुठभेड़ में मार डाला गया था।

अदालत ने कहा कि शर्मा को आपराधिक साजिश, हत्या, अपहरण और गलत तरीके से कैद करने सहित सभी आरोपों में दोषी ठहराया जाता है और आजीवन कारावास की सजा सुनायी जाती है। पीठ ने शर्मा को तीन सप्ताह में संबंधित सत्र अदालत के समक्ष आत्मसमर्पण करने का निर्देश दिया।


प्रदीप शर्मा की कानूनी मुश्किलें यहीं खत्म नहीं होती हैं, क्योंकि वह 2021 में उद्योगपति मुकेश अंबानी के आवास के बाहर जिलेटिन की छड़ की बरामदगी और व्यवसायी मनसुख हिरानी की हत्या से संबंधित एक अलग मामले में भी फंस हुए हैं। इस मामले में उन्हें उच्चतम न्यायालय से जमानत मिल गई है।

उच्च न्यायालय ने मंगलवार को 13 व्यक्तियों को निचली अदालत द्वारा दोषी ठहराने और उन्हें आजीवन कारावास की सजा सुनाने को भी बरकरार रखा। इसमें 12 पुलिसकर्मी और एक नागरिक शामिल है। दोषी ठहराए गए आरोपियों में पूर्व पुलिसकर्मी नितिन सरतापे, संदीप सरकार, तानाजी देसाई, प्रदीप सूर्यवंशी, रत्नाकर कांबले, विनायक शिंदे, देवीदास सपकाल, अनंत पटाडे, दिलीप पलांडे, पांडुराग कोकम, गणेश हरपुडे, प्रकाश कदम और एक नागरिक हितेश सोलंकी शामिल है।

उच्च न्यायालय ने छह अन्य आरोपियों की दोषसिद्धि और आजीवन कारावास की सजा को रद्द कर दिया और उन्हें बरी कर दिया। मनोज मोहन राज, सुनील सोलंकी, मोहम्मद शेख, सुरेश शेट्टी, ए. खान और शैलेन्द्र पांडे को बरी कर दिया गया। ये सभी नागरिक हैं। शुरुआत में तेरह पुलिसकर्मियों सहित 22 लोगों पर हत्या का आरोप लगाया गया था। सुनवाई के बाद 2013 में सत्र अदालत ने 21 आरोपियों को दोषी पाया और उन्हें आजीवन कारावास की सजा सुनाई।वर्ष 2013 में सत्र अदालत ने सबूतों के अभाव में शर्मा को बरी कर दिया था जबकि दो व्यक्तियों की हिरासत में मौत हो गई थी।

आरोपियों ने अपनी दोषसिद्धि को चुनौती देते हुए उच्च न्यायालय में अपील दायर की, वहीं अभियोजन पक्ष और मृतक के भाई रामप्रसाद गुप्ता ने शर्मा को बरी करने के फैसले के खिलाफ अपील दायर की। विशेष लोक अभियोजक राजीव चव्हाण ने दलील दी कि वर्तमान मामले में जो अधिकारी कानून और व्यवस्था के संरक्षक थे, वे स्वयं एक निर्मम हत्या में लिप्त थे। मामले में शर्मा को दोषी ठहराने का अनुरोध करने वाले अभियोजन पक्ष ने दलील दी कि पूर्व पुलिसकर्मी अपहरण और हत्या के पूरे अभियान का मुख्य साजिशकर्ता था।

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