ज्ञानवापी पर कोर्ट के फैसले को मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने बताया निराशाजनक, कहा- 1991 का कानून किया गया नजरअंदाज

ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के महासचिव मौलाना खालिद सैफुल्लाह रहमानी ने एक बयान में कहा, ''जिला न्यायाधीश की अदालत का प्रारंभिक निर्णय 'निराशाजनक और दुखद' था।

फोटो: सोशल मीडिया
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नवजीवन डेस्क

ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने ज्ञानवापी से जुड़े एक मामले में वाराणसी की अदालत के फैसले को 'निराशाजनक' बताया है। बता दें कि वाराणसी की अदालत ने सोमवार को कहा था कि श्रृंगार गौरी में पूजा के लिए हिंदू पक्ष की याचिका विचारणीय है और ज्ञानवापी परिसर में पूजा के अधिकार की मांग करने वाली पांच हिंदू महिलाओं की याचिका पर सुनवाई की जाएगी।

समाचार एजेंसी पीटीआई के मुताबिक, ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के महासचिव मौलाना खालिद सैफुल्लाह रहमानी ने एक बयान में कहा, ''जिला न्यायाधीश की अदालत का प्रारंभिक निर्णय 'निराशाजनक और दुखद' था।

रहमानी ने कहा कि 1991 में संसद ने मंजूरी दी थी कि बाबरी मस्जिद को छोड़कर बाकी सभी धार्मिक स्थलों पर 1947 वाली यथास्थिति बरकरार रहेगी और इसके खिलाफ कोई भी विवाद वैध नहीं होगा। इसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने बाबरी मस्जिद के फैसले में पूजा स्थल कानून की पुष्टि की थी और इसे अनिवार्य घोषित किया था।

रहमानी ने कहा, ''इसके बावजूद जो लोग घृणा फैलाना चाहते हैं और इस देश की एकता की परवाह नहीं करते हैं, उन्होंने वाराणसी में ज्ञानवापी मस्जिद का मामला उठाया और अफसोस की बात है कि जिला न्यायाधीश की अदालत ने 1991 का कानून नजरअंदाज किया और याचिका को अनुमति दे दी।''


दरअसल मुस्लिम पक्ष की ओर से कोर्ट में ज्ञानवापी श्रृंगार गौरी मामले में इस बात को चुनौती दी गई थी कि यह मामला सुनवाई करने योग्य है या नहीं। इस पर कोर्ट ने मुस्लिम पक्ष की याचिका को खारिज करते हुए कहा है कि यह मामला उपासना स्थल अधिनियम और वक्फ अधिनियम के लिहाज से वर्जित नहीं है, लिहाजा वह इस मामले की सुनवाई जारी रखेगी। मामले की अगली सुनवाई अब 22 सितंबर को होगी।

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