NDA यानी 'नो डेटा अवेलेबल' सरकार के पास अस्थाई कर्मचारियों के आंकडे़ ही नहीं, बाकी मंत्रालयों में खाली हैं 25% पद

केंद्र सरकार के अधीन मंत्रालयों और विभागों में कितने अस्थाई कर्मचारी काम करते हैं, इसका कोई हिसाब-किताब केंद्र सरकार के पास नहीं है। इतना ही नहीं सरकार के विभिन्न विभागों में लाखों पद भी खाली पड़े हैं।

सौजन्य : @RahulGandhi
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ऐशलिन मैथ्यू

केंद्र की मोदी सरकार ने अपने विभिन्न विभागों में कितने अस्थाई कर्मचारियों को स्टाफ रखा है, इसका कोई भी केंद्रीयकृत आंकड़ा सरकार के पास नहीं है। यानी अगर सरकार से यह पूछा जाए कि कुल कितने अस्थाई कर्मचारी केंद्र सरकार के दफ्तरों में काम करते हैं, तो उसके पास जवाब नहीं होगा। और यही जवाब सरकार ने संसद में इस बाबत पूछे गए सवाल के जवाब में दिया है। अलबत्ता सरकार ने यह जरूर मान लिया है कि केंद्र सरकार के विभिन्न दफ्तरों में 25 फीसदी के आसपास पद खाली पड़े हैं।

केरल कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष और सांसद के सुधाकरन ने यही सवाल पूछा था, लेकिन कार्मिक मंत्रालय के राज्यमंत्री डॉ जितेंद्र सिंह ने बताया कि इस किस्म का कोई डेटा सरकार नहीं रखती है। इस जवाब के बाद उस सूची में एक और मुद्दा जुड़ गया है जिसके आंकड़े सरकार या तो रखती नहीं है या फिर सार्वजनिक नहीं करना चाहती।

गौरतलब है कि 2020 में भी सरकार ने बताया था कि उसके पास इस बात का कोई आंकड़ा नहीं है कि देशव्यापी लॉकडाउन के दौरान कितने कामगारों की जान गई थी। इसी तरह 2021 में सरकार ने कहा था कि उसके पास इस बात के भी कोई आंकड़े नहीं हैं कि विवादित कृषि कानूनों के खिलाफ हुए किसान आंदोलन के दौरान कितने किसानों की जान गई थी।

इसके अलावा सरकार ने इस बात की भी सूचना नहीं दी थी कि उसके पास ऐसे आंकड़े भी नहीं हैं जिनसे पता चल सके कि कोविड-19 महामारी के दौरान कितने पुलिस जवान, आंगनवाड़ी कार्यकर्ता, स्वास्थ्य कर्मचारी और सफाई कर्मचारियों की मौत हुई थी। साथ ही आरटीआई एक्टिविस्ट्स की मौत का भी कोई आंकड़ा सरकार के पास नहीं है।

इसी ‘नो डेटा’ जवाबों के कारण ही कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष और केरल के वायनाड से सांसद राहुल गांधी ने अपने ट्वीट में एनडीए की परिभाषा 'नो डेटा अवेलेबल' सरकार के तौर पर की थी। उन्होंने लिखा था कि ‘एनडीए (नो डेटा अवेलेबल) सरकार की तमाम अहम मुद्दों को लेकर न तो कोई जवाबदेही है और न ही उसके पास कोई जवाब है।’

राहुल गांधी ने यह कटाक्ष तब किया था जब केंद्रीय महिला और बाल विकास मंत्री स्मृति ईरानी ने संसद में बताया था कि कोविड-19 के दौरान कितने आंगनवाड़ी कार्यकर्ताओं की मौत हुई, इसका कोई आंकड़ा सरकार के पास नहीं है। इतना ही नहीं उन्होंने यहां तक कह दिया था कि केंद्र सरकार आंगनवाड़ी कार्यक्रम नहीं चलाती है, इसीलिए उसके पास ऐसा कोई आंकड़ा नहीं है।


खाली पड़े हैं तमाम पद

केंद्र सरकार ने माना है कि मोदी सरकार के विभिन्न विभागों में 9.8 लाख पद खाली हैं। कार्मिक मंत्रालय के राज्यमंत्री जितेंद्र सिंह ने बताया कि केंद्र सरकार के विभिन्न मंत्रालयों और उनसे जुड़े विभागों में कुल 40,35,203 पद हैं, जिनमें से सिर्फ 30,55,878 पद ही भरे हुए हैं। यानी 24.26 फीसदी पद खाली पड़े हैं। केंद्र के 78 विभागों और मंत्रालयों में कम से कम 10 विभाग ऐसे हैं जिनमें 40 फीसदी या उससे अधिक पद खाली हैं, जबकि 40 विभाग ऐसे हैं जिनमें 30 फीसदी या उससे अधिक पद खाली पड़े हैं।

विभिन्न मंत्रालयों में खाली पड़े पदों की स्थिति देखने के बाद एक नई कहानी सामने आती है कि आखिर समस्या है कहां। इन खाली पड़े पदों से साफ है कि भले ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी वैज्ञानिक स्वभाव के गुणों (साइंटिफिक टेम्परामेंट) की बातें करते हों, लेकिन केंद्र के विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग में ही 69 प्रतिशत रिक्तियां हैं। इस विभाग में स्वीकृत 12,442 पदों में से केवल 3,899 ही भरे गए हैं। इसी तरह प्रधानमंत्री जिस विभाग के प्रभारी हैं, उसी परमाणु ऊर्जा विभाग में 9,460 रिक्तियां हैं। स्वीकृत 38,153 पदों में से केवल 28,693 पद ही भरे गए हैं।

महिला और बाल कल्याण विभाग में भी करीब 50 फीसदी पद खाली पड़े हैं। स्मृति ईरानी के तहत आने वाले मंत्रालय में कुल स्वीकृत 725 पदों में से सिर्फ 372 पद ही भरे गए हैं। बताया गया कि केंद्र सरकार के विभागों में कुल 30.87 लाख पदों में से सिर्फ 3,37,439 यानी 9.14 फीसदी महिलाएं ही काम करती हैं। वैसे तो सरकार बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ के नारे देती है, लेकिन बेटी को स्वीकृत सरकारी पदों पर नौकरी देने में हिचकिचाती है।

और अब जबकि देश के सबसे बड़े संवैधानिक पद पर एक आदिवासी महिला आसीन हुई हैं, यह विडंबना ही है कि केंद्र के आदिवासी मामलों के मंत्रालय में 46 फीसदी पद खाली पड़े हैं। इस विभाग में कुल 320 पद स्वीकृत हैं, लेकिन सिर्फ 173 पद पर ही नियुक्तियां हैं।

याद दिलादें कि 2014 के आम चुनाव में प्रचार के दौरान प्रधानमंत्री मोदी ने खुद को गंगा का बेटा कहा था और वादा किया था कि 2019 से पहले गंगा को स्वच्छ कर दिया जाएगा। लेकिन जल संसाधान, नदी विकास और गंगा पुनर्जीविकरण मंत्रालय की स्थिति से इस वादे का हाल सामने आ गया है। 2014 से अब तक गंगा को स्वच्छ करने का लक्ष्य कई साल आगे बढ़ा दिया गया है। इस विभाग में भी 46 फीसदी पद खाली पड़े हैं। विभाग में कुल स्वीकृत पद 15,499 हैं, जिनमें से सिर्फ 8,639 पद ही भरे हुए हैं।


सेना में अग्निवीरों की भर्ती की अग्निपथ योजना को लेकर खूब प्रचार प्रसार किया गया है, लेकिन रक्षा मंत्रालय में भी 40.97 फीसदी पद खाली पड़े हैं। इस विभाग में कुल स्वीकृत पद 6,46,042 हैं लेकिन सिर्फ 3.8 लाख पद ही भरे हुए हैं।

अमित शाह के अधीन केंद्रीय गृह मंत्रालय का हाल भी अलग नहीं है। इस विभाग में कुल 10,85,728 पद स्वीकृत हैं। लेकिन भरे हुए सिर्फ 9,42,192 पद ही हैं।

देश में रोजगार देने वाले सबसे बड़े मंत्रालय रेलवे में भी 2.94 लाख पद खाली पड़े हैं। इस विभाग में 15,14,007 पदों की स्वीकृति है। लेकिन भर्ती सिर्फ 12,20,064 पदों पर ही हुई है।

ये सब ऐसे वक्त में सामने आ रहा है जब रेलवे के निजीकरण की चर्चा आम है और विभाग में काम करने वाले कर्मचारी और नौकरी की आस लगाए युवाओं को निराशा ही हाथ लगी है।

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