झारखंड में खंड-खंड एनडीए- सहयोगी ही खड़े हो गए हैं बीजेपी के खिलाफ, नीतीश-पासवान ने भी बनाई दूरी

झारखंड विधानसभा चुनाव से पहले ही बीजेपी की अगुवाई वाला कुनबा बिखर चुका है। आजसू जैसी राज्य की पार्टियों के साथ ही नीतीश-पासवान ने भी कर लिया है बीजेपी से किनारा।

फाइल फोटो
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रवि प्रकाश

महाराष्ट्र में तो राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) चुनाव नतीजे आने के बाद बिखरा था, लेकिन झारखंड में तो यह पहले ही खंड-खंड हो चुका है। चुनावी चक्रव्यूह में फंसी बीजेपी की सभी सहयोगी पार्टियों ने उसका साथ छोड़ दिया है। नतीजतन, एक तरफ अकेली बीजेपी है और दूसरी तरफ कांग्रेस, झारखंड मुक्तिमोर्चा और राष्ट्रीय जनता दल का महागठबंधन। ऐसे में झारखंड कीचुनावी लड़ाई अपनी शुरुआत में ही दिलचस्प हो चुकीहै। यहां अगले 23 दिसंबर को मतगणना होगी।

झारखंड की मौजूदा एनडीए सरकार में शामिल ऑल झारखंड स्टूडेंट यूनियन (आजसू) पार्टी ने राज्य की अधिकतर सीटों पर अपने उम्मीदवार उतार दिए हैं। आजसू ने न केवल बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष लक्ष्मण गिलुवा और रघुवर दास सरकार के मंत्रियों के खिलाफ उम्मीदवार उतार दिया है बल्कि बीजेपी के कुछ विधायकों पर भी उसकी नजर है। विधानसभा में बीजेपी के मुख्य सचेतक रहे विधायक राधाकृष्ण किशोर आजसू में शामिल हो चुके हैं। वह बीजेपी के अधिकृत प्रत्याशी के खिलाफ मैदान में हैं।

लेकिन बात आजसू और बीजेपी के बीच की लड़ाई तक ही सीमित नहीं है। एनडीए की मुख्य सहयोगी रही जनता दल (यूनाइटेड) और लोक जनशक्ति पार्टी भी झारखंड में बीजेपी के खिलाफ मैदान में है। जीडेयू ने संकेत दिए हैं कि बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार जमशेदपुर पूर्वी सीट पर मुख्यमंत्री रघुवर दास के खिलाफ चुनाव प्रचार के लिए भी आ सकते हैं। वहां से सरयू राय निर्दलीय चुनाव लड़ रहे हैं। वह रघुवर दास की ही सरकार में कैबिनेट मंत्री थे।

जेडीयू सांसद ललन सिंह ने इसी संदर्भ में कहा है कि अगर सरयू राय चाहेंगे, तो नीतीश कुमार उनके पक्ष में प्रचार कर सकते हैं। मतलब, बिहार में बीजेपी के साथ सरकार चला रहे नीतीश कुमार झारखंड में बीजेपी के सबसे बड़े चेहरे रघुवर दास के खिलाफ वोट मांगते नजर आएंगे। बीजेपी के लिए यह सियासी डेवलपमेंट सदमे के समान है। राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि झारखंड में भले ही जेडीयू का कोई बड़ा राजनीतिक आधार नहीं हो लेकिन नीतीश कुमार का रघुवर दास के खिलाफ प्रचार करने आना ही बड़ी सियासी घटना होगी। इसका असर राष्ट्रीय स्तर पर भी पड़ेगा। उल्लेखनीय है कि झारखंड के बाद दिल्ली में भी विधानसभा के चुनाव होंगे।


क्यों टूटा एनडीए?

आजसू पार्टी के सुप्रीमो और पूर्व उपमुख्यमंत्री सुदेश महतो ने गठबंधन टूटने के लिए बीजेपी नेताओं को जिम्मेवार ठहराया है। वैसे, आजसू पार्टी ने जमशेदपुर पूर्व सीट पर मुख्यमंत्री रघुवर दास के खिलाफ प्रत्याशी नहीं दिया है। बीजेपी ने भी सिल्ली सीट पर सुदेश महतो के खिलाफ उम्मीदवार नहीं उतारा है। इसके बावजूद बीजेपी के एक मौजूदा विधायक और कुछ पूर्व विधायकों को आजसू पार्टी में शामिल करा कर सुदेश महतो ने बीजेपी को खुली चुनौती दी है।

हालांकि, बीजेपी के दूसरे स्तर के नेता अब इस मुद्दे पर आधिकारिक बयान देने से बच रहे हैं लेकिन बीजेपी सूत्रों ने बताया कि पार्टी प्रवक्ताओं को कहा गया है कि वे आजसू से गठबंधन और सरयू राय की बगावत के मुद्दे पर पूछे जा रहे सवालों पर चुप्पी साधे रखें। यह निर्णय केंद्रीय मंत्री प्रकाश जावडेकर के रांची दौरे के दौरान लिया गया था। बीजेपी ने अपने बागी सरयू राय को भी इस रिपोर्ट को फाइल किए जाने तक न तो पार्टी से निकाला है और न उनसे कोई जवाब-तलब ही किया गया है। मतलब, बीजेपी चुनाव बाद की परिस्थितियों के लिए अपने दरवाजे खोल कर रखना चाहती है। जाहिर है, विपक्षी महागठबंधन के सामने अकेली पड़ चुकी बीजेपी इस चुनाव में जीत को लेकर पूरी तरह आश्वस्त नहीं है।

कैसी-कैसी परिस्थितियां

आजसू पार्टी पिछले 19 सालों से झारखंड में बीजेपी की सहयोगी रही है। पार्टी मौजूदा सरकार में भी शामिल है। अब बीजेपी की मुश्किल यह है कि उसके नेताओं को अपनी ही सरकार में शामिल आजसू कोटे के मंत्री रामचंद्र सहिस के खिलाफ चुनाव प्रचार करना पड़ रहा है। वह जुगसलाई सीट पर बीजेपी के खिलाफ चुनाव लड़ रहे हैं। आजसू ने कहा है कि अभी कुछ और उम्मीदवारों की लिस्ट जारी होगी। उनके नेता राजनीतिक घटनाक्रम पर नजर बनाए हुए हैं और कोई भी निर्णय राज्यहित और पार्टी हित में लिया जाएगा। आजसू के केंद्रीय प्रवक्ता देवशरण भगत ने कहा कि राज्य में पांच चरणों में चुनाव होने हैं। ऐसे में उम्मीदवारों की कुछ और सूचियां जारी होंगी।


इधर, बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष रह चुके ताला मरांडी भी झारखंड मुक्ति मोर्चा के संपर्क में हैं। उन्होंने जेएमएम नेता और पूर्व मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन से मुलाकात भी की है। राजनीतिक गलियारे की चर्चा के मुताबिक, उनके बीजेपी से अलग हो जाने की संभावना है। सीटिंग विधायक होने के बावजूद पार्टी ने इस बार उनकी सीट से दूसरे प्रत्याशी को टिकट दे दिया गया है जिसकी वजह से ताला मरांडी खासे नाराज बताए जाते हैं। बीजेपी में रहते हुए भी उन्होंने रघुवर दास सरकार की कई नीतियों की आलोचना की थी और उन पर सवाल उठाए थे।

राजनीतिक विश्लेषक मधुकर कहते हैं कि झारखंड में यह पहला मौका है जब मंत्रिमंडल के सहयोगी एक-दूसरे के खिलाफ चुनावी मैदान में हैं। यह दरअसल रघुवर दास कीअग्निपरीक्षा है। बहरहाल, झारखंड की दिलचस्प हो चुकी चुनावी लड़ाई का परिणाम क्या होगा, अभी नहीं कहा जा सकता।

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