विपक्ष की आवाज दबाने की नई कोशिश! सदन में हंगामा करने वाले माननीयों के लिए बनेगा कोड ऑफ कंडक्ट
लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला ने साथ ही कहा कि कानून बनाने के मामले में विधायिका सर्वोच्च है। न्यायालय के पास कानून की न्यायिक समीक्षा का अधिकार है लेकिन न्यायपालिका को अपनी संवैधानिक मयार्दा का पालन करना चाहिए। हर कानून की समीक्षा के लिए पीआईएल उचित नहीं है।
![फोटोः IANS](https://media.assettype.com/navjivanindia%2F2023-01%2F41ee6ef3-7950-4b7e-890a-3bb67ddea802%2FOm_Birla.jpg?rect=0%2C0%2C900%2C506&auto=format%2Ccompress&fmt=webp)
केंद्र की मोदी सरकार अब संसद या विधानसभाओं में हंगामा करने वाले सांसदों-विधायकों के खिलाफ कार्रवाई के लिए नए नियम बनाने जा रही है। दरअसल राजस्थान के जयपुर में आयोजित पीठासीन अधिकारियों के अखिल भारतीय सम्मेलन में सदन में हंगामा करने वाले सांसदों और विधायकों के लिए मॉडल कोड ऑफ कंडक्ट बनाने, न्यायपालिका को संवैधानिक मर्यादा का पालन करने और जी-20 और पी-20 से जुड़े कार्यक्रमों सहित कुल नौ प्रस्तावों को पारित किया गया। इससे साफ संकेत मिलते हैं कि सरकार सदन में विपक्ष की आवाज दबाने के लिए सदन के नियमों में मनमर्जी बदलाव करने वाली है।
न्यायपालिका को संवैधानिक मयार्दा में रहने की नसीहत
सम्मेलन में पारित किए गए प्रस्तावों की जानकारी देते हुए लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला ने बताया कि कानून बनाने के मामले में विधायिका सर्वोच्च है। न्यायालय के पास कानून की न्यायिक समीक्षा का अधिकार है लेकिन न्यायपालिका को अपनी संवैधानिक मयार्दा का पालन करना चाहिए और हर कानून की समीक्षा के लिए पीआईएल उचित नहीं है। बिरला ने कहा कि इसके साथ ही सम्मेलन में यह भी तय किया गया कि सदन में हंगामे को रोकने के लिए संसद और देश की विभिन्न विधानसभाओं में बने अच्छे नियमों को एक साथ लाकर एक मॉडल कोड ऑफ कंडक्ट बनाया जाए।
पीठासीन अधिकारियों के सम्मेलन की भूमिका महत्वपूर्ण
इससे पहले समापन सत्र को संबोधित करते हुए लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला ने कहा कि अखिल भारतीय पीठासीन अधिकारियों के सम्मेलन ने सदैव विधायी निकायों में ठोस लोकतांत्रिक परंपराओं और संसदीय पद्धतियों तथा प्रक्रियाओं को सुस्थापित करने और विभिन्न विधान मंडलों में आपस में बेस्ट प्रैक्टिसेज साझा करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभायी हैं। उन्होंने कहा कि बदलते परिप्रेक्ष्य में विधान मंडलों की भूमिका भी महत्वपूर्ण हो गई है।
विधायिकाओं में नियमों और प्रक्रियाओं की एकरूपता आवश्यक
संसद, विधानसभाओं में सार्थक, अनुशासित और उत्पादक चर्चा पर जोर देते हुए बिरला ने कहा कि सदनों में अधिकतम संवाद, तकनीक का सही उपयोग और जनता और विधायिका का जुड़ाव सशक्त होना चाहिए। उन्होंने जोर देकर कहा कि सदन में पूर्व नियोजित संगठित व्यवधान लोकतंत्र के लिए अच्छा नहीं है। विधायिकाओं में नियमों और प्रक्रियाओं की एकरूपता की आवश्यकता को दोहराते हुए बिरला ने कहा कि वित्तीय स्वायत्तता के बावजूद नियमों और प्रक्रियाओं की एकरूपता संसदीय लोकतंत्र को मजबूत करने में मदद करेगी। उन्होंने संसदीय समितियों को और मजबूत करने की वकालत करते हुए कहा कि संसदीय समितियों में दलगत भावना से ऊपर उठकर कार्य करने की उत्कृष्ट परंपरा है। वे मिनी संसद के रूप में कार्य करती हैं।
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