हाईकोर्ट के आदेश के बाद भी हज़ारों फर्जी शिक्षकों का पता नहीं लगा पाई नीतीश सरकार, अब एक लाख और करेगी बहाल

बिहार में शिक्षक बहाली में अब तक जो फर्जीवाड़ा सामने आया है उसमें महिलाओं का पुरुष बनना, धर्म परिवर्तन, एक ही सर्टिफिकेट पर दो जगह नौकरी और वेतन उठाना और फर्जी तरीके से मेरिट लिस्ट में आने के मामले सामने आ चुके हैं। मामले में चार साल से जांच जारी है।

फोटोः सोशल मी
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सीटू तिवारी

हो सकता है, आपके पास भी वे वाट्सएप वीडियो आए हों जिसमें बिहार के कोई शिक्षक बच्चों को गलत अंग्रेजी या मैथ्स पढ़ा रहे हैं। इसे देख-सुनकर चैंकने की जरूरत नहीं है, क्योंकि बिहार के सरकारी स्कूलों में एक लाख से ज्यादा फर्जी शिक्षक पढ़ा रहे हैं। दुखद यह है कि यह जानकारी होने और पटना हाईकोर्ट के आदेश के बाद भी इन्हें पहचान कर हटाने की कार्रवाई करीब चार साल से किसी नतीजे पर नहीं पहुंची है।

साल 2005 में नीतीश कुमार जब सत्ता में आए, तो शिक्षा-व्यवस्था सुधारने के नाम पर उन्होंने शिक्षकों की बंपर बहाली की। साल 2006 से 2015 के बीच प्राथमिक, माध्यमिक और उच्च शिक्षा में करीब 3 लाख 62 हजार शिक्षकों की नियुक्ति की गई। इन्हीं शिक्षकों के प्रमाण पत्र को लेकर 2015 में पटना हाईकोर्ट में एक याचिका दायर की गई थी जिसके बाद शिक्षकों के प्रमाण पत्र की जांच का जिम्मा निगरानी ब्यूरो को सौंपा गया जो अब तक पूरा नहीं हो पाया है।

इसी साल फरवरी में आरटीआई एक्टिविस्ट रंजीत पंडित ने जब सूचना के अधिकार के तहत सूचना मांगी, तो निगरानी अन्वेषण ब्यूरो ने जानकारी दी कि “पटना उच्च न्यायालय के आदेश के तहत नियोजित शिक्षकों के शैक्षणिक और प्रशैक्षणिक प्रमाण पत्रों की जांच की जा रही है जो प्राथमिक, माध्यमिक और उच्च माध्यमिक स्तर पर पढ़ा रहे हैं। ये मामले हजारों-लाखों की संख्या में हैं।”

पिछले महीने 26 अगस्त को इस सूचना के आधार पर पटना हाईकोर्ट में रंजीत पंडित की तरफ से दायर जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए कोर्ट ने फर्जी शिक्षकों को लेकर कड़ा रुख अपनाया। न्यायमूर्ति शिवजी पांडेय और पार्थसारथी की खंडपीठ ने राज्य सरकार और निगरानी ब्यूरो से 6 सप्ताह के भीतर बताने को कहा है कि फर्जी शिक्षकों के मामले पर अब तक कितने शिक्षक पकड़े गए और उन पर क्या कार्रवाई हुई?


दरअसल, साल 2015 से ही हाईकोर्ट के आदेश के बाद निगरानी ब्यूरो फर्जी शिक्षकों के रिकॉर्ड तलाश रही है। उस वक्त पटना हाईकोर्ट ने फर्जी शिक्षकों को एक माह के अंदर खुद त्यागपत्र देने का मौका दिया था। पर सच्चाई यह है कि ज्यादातर फर्जी शिक्षक अब तक जमे हुए हैं।

निगरानी विभाग के सूत्रों की मानें तो जांच में मुश्किलें दो वजहों से हैं। पहला तो यह कि खुद शिक्षा विभाग के कर्मचारियों की मिलीभगत से यह कारनामा हुआ है; दूसरा यह कि देश का कोई ऐसा हिस्सा नहीं है जहां के सर्टिफिकेट-प्रमाण पत्र का उपयोग इन नियोजित शिक्षकों ने नहीं किए हों। जम्मू-कश्मीर से लेकर नगालैंड तक के शिक्षण संस्थानों के सर्टिफिकेट के आधार पर नियोजित शिक्षकों की नियुक्ति हुई है। इस वजह से जांच में बहुत सारे पेंच है और आरोप की सूई घुमकर विभाग पर आ जाती है।

अब तक जो जांच हुई भी है, उसमें नौकरी के लिए महिला का पुरुष बनना, धर्म परिवर्तन, एक ही सर्टिफिकेट पर दो जगह से नौकरी पाकर वेतन का लाभ उठाना, फर्जी तरीके से मेरिट लिस्ट में आने के मामले शामिल हैं। अकेले भोजपुर जिले में 13 ऐसे फर्जी शिक्षक मिले हैं जिन्होने एक ही सर्टिफिकेट पर दो जगह नौकरी हासिल की और दोनों ही जगहों से वेतन उठाया।

साल 2015 में हाईकोर्ट के आदेश के 4 साल बीत जाने के बावजूद अब भी निगरानी ब्यूरो को 74 हजार शिक्षकों का शैक्षणिक रिकॉर्ड नहीं मिल पाया है। इस बीच शिक्षा विभाग ने निगरानी को रिकॉर्ड मुहैया नहीं कराने वाली सभी नियोजन इकाइयों के खिलाफ कार्रवाई करने की छूट दे दी है। इसके बाद 22 जिला शिक्षा और कार्यक्रम पदाधिकारी, 156 ब्लॉक शिक्षा पदाधिकारी, 234 मुखिया फिलवक्त तक निगरानी के रडार पर हैं।


हाईकोर्ट में दायर जनहित याचिका के अधिवक्ता दीनू कुमार के मुताबिक, विजिलेंस और शिक्षा विभाग के बड़े अधिकारियों की मिलीभगत से ही फर्जी शिक्षक अब तक वेतन और अन्य सुविधाएं ले रहे हैं। ऐसे में, शिक्षकों से इस राशि की रिकवरी के साथ-साथ जिन अधिकारियों के कार्यकाल में ये धोखाधड़ी हुई है, उनसे भी राशि की वसूली की जानी चाहिए।

केंद्र सरकार की हालिया रिपोर्ट के मुताबिक, बिहार का छात्र-शिक्षक अनुपात देश में सबसे बदतर है। मानव संसाधन मंत्रालय की रिपोर्ट कहती है कि यहां प्राथमिक स्कूलों में 38 और उच्च प्राथमिक स्कूलों में 39 छात्रों पर एक अध्यापक है। बिहार के 68 फीसदी प्राइमरी स्कूल और 78 फीसदी उच्च प्राथमिक स्कूल में छात्र-शिक्षक अनुपात बहुत बुरी स्थिति में है। आंकड़ों से हटकर जमीनी हालात अगर देखें तो बिहार के सुदूर ग्रामीण इलाकों में 500 छात्रों पर एक अध्यापक है जबकि राजधानी पटना के पॉश इलाकों में जो स्कूल हैं, वहां 50 छात्रों पर 10 अध्यापक हैं।

इस बीच शिक्षकों की कमी से जूझते बिहार में, शिक्षा मंत्री कृष्णनंदन वर्मा ने विधानसभा में यह आश्वासन दिया है कि साल 2019 के अंत तक 1 लाख 40 हजार शिक्षकों की नियुक्ति कर ली जाएगी। लेकिन सवाल अंततः यही है कि भ्रष्टाचार में गले तक डूबी सरकार क्या इस नियुक्ति को पारदर्शी बना पाएगी? और ये भी कि पिछली नियुक्तियों में जो गड़बड़ियां हुई हैं क्या उन्हें दूर करने के उपाय किए गए हैं?

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