बिहार: सिर्फ अपने नाम की शिलापट्टी लगवाने के लिए नीतीश कुमार खर्च कर रहे हैं म्यूजियम सब-वे पर 337 करोड़ रुपए
पटना म्यूजियम और बिहार म्यूजियम के बीच नीतीश कुमार 373 करोड़ की लागत से सब-वे बनवा रहे हैं। वैसा ही जैसा दिल्ली का पालिका बाजार है। इस सब-वे का फायदा, बस, इतना ही है कि जो लोग दोनों संग्रहालय एक बार में देखने आएंगे, वह इससे होकर आ-जा सकेंगे।
![फोटो : सोशल मीडिया](https://media.assettype.com/navjivanindia%2F2022-05%2F3770f46e-335e-4f91-a638-570ddf654395%2FMuseum_Subway_Patna.jpg?rect=33%2C0%2C933%2C525&auto=format%2Ccompress&fmt=webp)
चाहे प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी हों या बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार, जितना काम करते हैं, उससे अधिक शोर। लेकिन इस चक्कर में जो असली और जरूरी काम हैं, उन्हें ही भुला देते हैं।
पटना में 100 साल से ज्यादा पुराना संग्रहालय है। नीतीश कुमार पहली बार मुख्यमंत्री बने, तो उन्होंने नया संग्रहालय बनाने के लिए 500 करोड़ की एक बिल्डिंग जापानी कंपनी से तैयार कराई। एक-एक कर पटना म्यूजियम की ज्यादा पुरानी चीजें यहां लाने का आदेश हुआ। 2017 में जनता के लिए यह म्यूजियम खोल दिया गया। इसे नाम दिया गया बिहार म्यूजियम। अब पटना म्यूजियम और बिहार म्यूजियम के बीच नीतीश कुमार 373 करोड़ की लागत से सब-वे बनवा रहे हैं। वैसा ही जैसा दिल्ली का पालिका बाजार है।
अब इस चमकदार योजना की जरूरत समझिए। दोनों म्यूजियम की दूरी करीब डेढ़ किलोमीटर है और बिहार के हिसाब से पूछिए तो भी 15 मिनट। बिहार में अब भी दूरी किलोमीटर नहीं, समय से ही मापी जाती है। नीतीश सड़कों के विकास को लेकर जिलों में जाने पर खुद भी बताते हैं कि 6 घंटे में राजधानी पहुंचाएंगे। वर्षों से पटना में मेट्रो बना रही दिल्ली मेट्रो रेल कॉरपोरेशन को इस काम के लिए नामित किया गया है। यह सब-वे बिहार म्यूजियम से पटना वीमेंस कॉलेज, इनकम टैक्स गोलंबर होकर विद्यापति मार्ग से घूमकर पटना संग्रहालय पहुंचेगी। इसका रास्ता पटना संग्रहालय के मुख्य द्वार से क्यों नहीं है, इसकी भी वजह है। दरअसल, पटना संग्रहालय के सामने सात-आठ साल पहले नाले के लिए खुदाई होने लगी तो किसी प्राचीन सभ्यता की जल-निकासी व्यवस्था का प्रमाण सामने आने लगा। मृदभांड (पॉटरी) भी निकलने लगे। कुछ विशेषज्ञों ने इस पर काम करने की जरूरत बताई तो कुछ ने इसे नष्ट नहीं करने की। उस जगह पर काम करते, तो भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) के विशेषज्ञों की मदद से इतिहास उभरता। लेकिन झटपट इसे भर दिया गया।
उस समय इस घटना की कवरेज कर चुके पत्रकार अनुपम कहते हैं कि ‘पटना में डाक बंगला चौराहे के आसपास जब भी खुदाई होगी तो कुछ पुरातात्विक महत्व की चीजें जरूर निकलेंगी। संभवतः इसलिए मेट्रो का रूट भी इधर पहले नहीं दिया गया है। उस समय पटना संग्रहालय के सामने खुदाई में मिले मृदभांडों को हटा दिया गया। प्राचीन सभ्यता के नाले दफन कर दिए गए। कुछ समय तक चर्चा हुई, फिर लोग भूल गए कि यहां क्या निकला था। इसलिए, सब-वे का रूट भी डायवर्ट करते हुए सुरंग बनाई जाएगी।’ इस सब-वे का फायदा, बस, इतना ही है कि जो लोग दोनों संग्रहालय एक बार में देखने आएंगे, वह इससे होकर आ-जा सकेंगे।
वैसे, दिखावटी योजना पर इस किस्म का भारी-भरकम खर्च इतना भर ही नहीं है। नीतीश सरकार पटना के कला एवं शिल्प महाविद्यालय को बड़े सेंटर के रूप में भले विकसित नहीं कर सकी और न ही कलाकारों को रोजगार से जोड़ सकी है लेकिन वह 30 करोड़ रुपये की लागत से देश का पहला शिल्पकला म्यूजियम और 6.2 करोड़ रुपये से पाटलीपुत्र कॉलोनी में आर्ट डिस्प्ले सिस्टम भी तैयार कराएगी। यह भी आने वाले कुछ वर्षों में तैयार होगा। इनमें भी नीतीश कुमार के नाम का चमकता शिलापट्ट लग जाएगा।
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