अविश्‍वास प्रस्‍ताव तो गिर गया, लेकिन हरियाणा में खट्टर सरकार की नीति और नीयत हुई बेनकाब

हरियाणा विधानसभा में 10 मार्च का दिन इतिहास में दर्ज हो गया। यह तीसरा मौका था जब राज्य विधानसभा में अविश्‍वास प्रस्‍ताव आया था। लेकिन बीजेपी-जेजेपी सरकार ने सिर्फ हाथ खड़े करवा कर ही इसकी औपचारिकता पूरी कर दी। लेकिन बीजेपी सरकार की नीति-नीयत बेनकाब हो गई।

फोटो : सोशल मीडिया
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धीरेंद्र अवस्थी

हरियाणा विधानसभा में सरकार के खिलाफ अविश्‍वास प्रस्‍ताव बेशक गिर गया, लेकिन सरकार की नीति और नीयत बेनकाब हो गई। अविश्‍वास प्रस्‍ताव का मकसद भी यही था। सरकार ने साफ कर दिया कि किसानों का आंदोलन गुमराह लोगों का आंदोलन है। साथ ही न तो एमएसपी को कानूनी रूप दिया जा सकता है और न ही तीनों कृषि कानून वापस होने वाले हैं।

विधानसभा में सरकार की किरकिरी न हो इसके लिए उसने सारे बंदोबस्‍त कर रखे थे। सबसे पहले सरकार ने नेता विरोधी दल भूपिंदर सिंह हुड्डा की अविश्‍वास प्रस्‍ताव पर सीक्रेट वोटिंग की मांग को नामंजूर कर दिया। फिर किसानों के समर्थन में बोलने वाले जन नायक जनता पार्टी (जेजेपी) के तीन विधायकों को सदन में बोलने का मौका ही नहीं दिया गया, जिसके विरोध में एक जेजेपी विधायक वाकआउट भी कर गया। सदन में कई बार जमकर हंगामा हुआ।

हरियाणा विधानसभा के बजट सत्र में 10 मार्च का दिन इतिहास में दर्ज हो गया। हरियाणा विधानसभा के इतिहास में महज तीसरी बार आए अविश्‍वास प्रस्‍ताव पर सदन की कार्यवाही पर सभी की निगाहें टिकी हुई थीं। नेता विरोधी दल भूपिंदर सिंह हुड्डा ने प्रश्‍नकाल के बाद अविश्‍वास प्रस्‍ताव पेश करते हुए सीक्रेट वोटिंग की मांग की, जिससे विधायक अपनी मर्जी से मतदान कर सकें। लेकिन हुड्डा की यह मांग नहीं मानी गई।

चर्चा के दौरान सभी की निगाहें जेजेपी के तीन विधायकों पर टिकी हुई थीं, जो लगातार किसानों के समर्थन में आवाज उठा रहे थे। लिहाजा, जेजेपी के इन तीन विधायकों देबेंद्र सिंह बबली, जोगी राम सिहाग और राम कुमार गौतम को अविश्‍वास प्रस्‍ताव पर चर्चा में बोलने की अनुमति ही नहीं दी गई। विधायकों ने इसका विरोध भी किया। बोलने का मौका न मिलने पर देबेंद्र सिंह बबली तो काफी गुस्‍से में दिखे। काफी तेज आवाज में वह कुछ कहते हुए सुनाई दिए, लेकिन शोरगुल के कारण उनकी बात सुनाई नहीं पड़ी।

रामुकमार गौतम ने तो इसके विरोध में वाकआउट कर दिया। जब इन विधायकों ने विधानसभा अध्‍यक्ष ज्ञान चंद गुप्‍ता से इस पर सवाल किया तो उन्‍होंने कहा कि आपके पार्टी लीडर की तरफ से मिली बोलने वालों की लिस्‍ट में आपका नाम नहीं है।


अविश्‍वास प्रस्‍ताव पर चर्चा की शुरुआत करते हुए नेता प्रतिपक्ष भूपिंदर सिंह हुड्डा ने सबसे पहले आंदोलन में शहीद हो गए 250 से ज्‍यादा किसानों को श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए उनके नाम शहीदों की लिस्‍ट में शामिल करने की मांग की। हुड्डा ने कहा कि "तीन कृषि कानूनों के विरोध में आंदोलन कर रहे किसानों को पाकिस्‍तानी, खालिस्‍तानी, आतंकी, चीनी और न जाने क्‍या-क्‍या गया। दिल्‍ली की सीमाओं पर बैठे किसानों के बिजली के कनेक्‍शन काट दिए गए। उनके शौचालय के कनेक्‍शन काट दिए गए।" उन्‍होंने कहा कि पिछले विधानसभा चुनाव में बीजेपी को बहुमत नहीं मिला है, बल्कि यह बैसाखियों की सरकार है। जेजेपी पर तंज करते हुए हुड्डा ने कहा कि, "पिछले चुनाव में बीजेपी को यमुनापार करने की बात कहने वाले अब सत्‍ता में साझीदार हो गए। आज हालत यह है कि यह सरकार लोगों का विश्‍वास खो चुकी है। विरोध के चलते आज मंत्री और विधायक गांवों तक में नहीं जा सकते।"

उन्‍होंने इस सरकार की तुलना अंतिम मुगल शासक शाह आलम, जिसकी सल्‍तनत सिर्फ दिल्‍ली से पालम तक कही जाती थी, से करते हुए कहा कि अब सिर्फ यह चंडीगढ़ से पंचकूला तक की सरकार है। रोम जल रहा था और नीरो बंशी बजा रहा था वाली स्थिति इस सरकार की है। हुड्डा ने कहा कि, "सरकार कहती है कि यह सिर्फ पंजाब के किसान हैं। यह सिर्फ पंजाब के नहीं बल्कि पूरे देश के किसान आंदोलन पर हैं। किसान जब दिल्‍ली आ रहे थे तो उन पर सर्दी में पानी की बौछारें की गईं। उन्‍हें रोकने के लिए खाइयां तक खोद डाली गईं।" इस पर सदन में विपक्ष के विधायकों ने शेम-शेम के नारे लगाए।

हुड्डा ने कहा कि जेजेपी के मेनीफेस्‍टो में एमएसपी और बोनस का वादा था, लेकिन न तो एमएसपी मिला और न बोनस। बीजेपी ने भी वादा किया था। क्‍या इसी तरह किसानों की आय दोगुना करेगी सरकार। इसीलिए आपकी हालत ऐसी हो गई है कि आप अपने हल्‍कों में नहीं जा सकते। हरियाणा के इतिहास में ऐसा पहले कभी नहीं देखा। दुष्‍यंत की तरफ इशारा करते हुए कहा कि उचाना में तो जाकर दिखाओ। लोग आपको घरों और गांवों में नहीं घुसने दे रहे।

चर्चा में शामिल पूर्व स्‍पीकर और विधायक डा. रघुबीर कादियान ने राकेश टिकैत के आसुओं को हिंदुस्‍तान के किसानों के आंसू बताया। कहा, "आज लोगों की चुनी हुई सरकार का लोग ही विरोध कर रहे हैं। गांवों में नो एंट्री के बोर्ड लगे हैं। पंचायतों की ओर से बहिष्‍कार किया जा रहा है। सीएम और डिप्‍टी सीएम अपने हेलीकाप्‍टर नहीं उतार पा रहे हैं। विधायकों को घरों में मेमोरेंडम दिया जा रहा है।" कादियान ने कहा कि चुनाव से पहले नैना चौटाला ने कहा था कि हम मर जाएंगे, लेकिन बीजेपी का सपोर्ट नहीं करेंगे। जेजेपी की तरफ इशारा करते हुए डा. कादियान ने कहा कि "ये आंख बंद कर देखें, इन्‍हें चौधरी देवीलाल की तस्‍वीर नजर आए तो सरकार का समर्थन करें और यदि 250 किसानों के खून के धब्‍बे नजर आएं तो यह कुर्सी छोड़ दें वर्ना इतिहास इन्‍हें माफ नहीं करेगा।"


गोहाना से विधायक जगबीर मलिक ने कहा कि इससे गंभीर मुद्दा कभी सदन में नहीं आया। पूरा हरियाणा आज सदन की तरफ देख रहा है। मलिक ने कहा कि कृषि मंत्री ने कहा है कि किसान ड्रग एडिक्‍ट और नामर्द हैं इसलिए आत्‍महत्‍याएं कर रहे हैं। इस पर कृषि मंत्री सफाई देते नजर आए कि ऐसा मैंने कभी नहीं कहा, लेकिन जगबीर मलिक अडिग रहे। मलिक ने कहा कि कृषि मंत्री को शहीद किसानों से माफी मांगनी चाहिए।

तोशाम से विधायक किरण चौधरी ने कहा कि तीनों काले कानून कारपोरेट को फायदा पहुंचाने और किसानों को निचोड़ने के लिए लाए गए हैं। राज्‍यसभा में जब कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर से पूछा गया कि किसान की परिभाष क्‍या है तो मंत्री ने जवाब दिया कि कृषि राज्‍य का विषय है वे ही किसान की परिभाष बताएं। किरण चौधरी ने कहा कि इन कानूनों के लागू होने से मंडियां अपनी मौत खत्‍म हो जाएंगी। निर्दलीय बलराज कुंडू ने कहा कि किसान कानून से एक-एक फायदा ही गिना दो मैं इनके पक्ष में खड़ा हो जाएंगा।

निर्दलीय सोमवीर सांगवान ने कहा कि सत्‍ता पक्ष के कई विधायक और मंत्री भी दिल से किसानों के साथ हैं, लेकिन अपनी विधायकी या मंत्री पद बचाने के लिए वह सामने नहीं आ रहे। विधायक गीता भुक्‍कल ने कहा कि हम राइट टू रिकॉल की बात करते हैं। यही जनता का राइट टू रिकाल है जब सत्‍ता पक्ष के विधायक और मंत्रियों को कहीं जाने तक नहीं दिया जा रहा। गीता भुक्‍कल ने सदन में शहीद किसानों की तस्‍वीरें दिखाते हुए कहा कि सरकार इन्‍हें कम से कम याद तो कर ले।

इसके विपरीत उप मुख्यमंत्री दुष्‍यंत चौटाला अपनी उपलब्धियां गिनाते नजर आए। उन्‍होंने कहा कि हमने किसानों की 30000 करोड़ की फसलों की खरीद की। वहीं सत्‍ता पक्ष की तरफ से कृषि मंत्री जेपी दलाल और शिक्षा मंत्री कंवर पाल कुर्जर भी सरकार की उपलब्धियां गिनाते रहे। मुख्‍यमंत्री ने जवाब में तर्क दिया कि यदि एमएसपी को कानूनी रूप दे दिया तो सरकार के फसलों की खरीद में ही 17 लाख करोड़ चले जाएंगे। इसका मतलब है कि हमें सारे काम बंद कर सिर्फ प्रक्‍योरमेंट ही करना होगा।

किसान आंदोलन की तोहमत विपक्ष पर मढ़ते हुए सीएम ने कहा कि उन्‍हें इंजेक्‍शन दिया जा रहा है। इस आंदोलन को आपकी मूक सहमति है। इसलिए इसके नुकसान की जिम्‍मेवारी भी आपकी है। आप उनको उकसा रहे हैं। आप गांव-गांव जाकर लोगों को भड़का रहे हैं। हमारे संयम को कोई कमजोरी न समझे। यह विरोधी इतनी संख्‍या में नहीं हैं कि हम डर जाएंगे। यह भी साफ कर दिया कि तीनों कानून किसी भी हालत में वापस होने वाले नहीं हैं।


अविश्‍वास प्रस्‍ताव पर तकरीबन पांच घंटे तक चली चर्चा में 24 वक्‍ताओं की भागीदारी के बाद डिवीजन के जरिये हुए मतदान में, जिसमें पक्ष-विपक्ष के विधायकों को खड़े कर गिनती गई, इसके समर्थन में 32 और विरोध में 55 विधायकों की गणना की गई। कांग्रेस के 30 सदस्‍यों के साथ दो निर्दलीय विधायकों बलराज कुंडू और सोमवीर सांगवान ने अविश्‍वास प्रस्‍ताव का समर्थन किया। 90 सदस्‍यीय सदन में दो विस सीटें खाली हैं, जबकि स्‍पीकर विशेष परिस्थितियों में ही मतदान में भाग लेता है।

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