मोदी जी तो सबको ‘झप्पी’ देते हैं, फिर भला चीन के राष्ट्रपति ने क्यों रखा उन्हें ‘आर्म लेंथ’ पर !

पीएम मोदी दो दिन की चीन यात्रा के बाद शनिवार को देश वापस आ गए। इस दौरान उनकी चीन के शी जिनपिंग से 6 मुलाकातें हुईं, लेकिन एक में भी मोदी जी की मशहूर झप्पी नहीं दिखी। आखिर ऐसा क्यों हुआ?

फोटो : PIB
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आशुतोष शर्मा

मोदी जी की झप्पी मशहूर है, और पिछले चार साल में तो उन्होंने इस मामले में विश्व स्तर पर प्रसिद्धि हासिल कर ली है। कई बार तो मोदी जी सारी औपचारिकताओं, जिन्हें राजनयिक भाषा में प्रोटोकॉल कहा जाता है, को दरकिनार कर तपाक से झप्पी दे देते हैं। लेकिन, ट्विटर पर सर्वाधिक फॉलोअर वाले मोदी जी ने अपनी दो दिन की चीन यात्रा के दौरान एक भी तस्वीर शेयर नहीं की, जिसमें वे चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग को झप्पी देते दिखे हों।

वैसे मोदी जी सिर्फ झप्पियां ही नहीं देते, बहुत तपाक से कर्रा वाला हाथ भी मिलाते हैं। राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय अखबारों में उनके इस ‘कर्रे’ हैंडशेक पर सुर्खियां भी बनी हैं। याद है, जब ब्रिटेन के राजकुमार 2016 में भारत आए थे, तो हैदराबाद में मोदी जी ने उनसे ऐसा हाथ मिलाया कि राजपरिवार में नाज़ों से पले राजकुमार विलियम के हाथ पर नीला निशान पड़ गया था।

मोदी जी सिर्फ झप्पी और निशान छोड़ जाने वाले हैंडशेक में ही महारत नहीं रखते। बच्चों के कान खींचने में भी उन्हें खूब मजा आता है। कई बार तो बेचारे बच्चे समझ ही नहीं पाते कि आखिर उनका कसूर क्या है, जिस पर कान खींचे जा रहे हैं।

लगता है मोदी जी ने गांधी जी के कथन, ‘अस्पृश्यता अभिशाप है’, को ज्यादा ही ‘अच्छी ‘तरह समझ लिया है। वाशिंगटन पोस्ट में 2016 में प्रकाशित एक लेख में एडम टेलर ने लिखा था कि, “भारतीय प्रधानमंत्री लोगों को गले लगाने वाले नेता के तौर पर मशहूर हैं। सरकारी आयोजनों में वे किसी अधिकारी से मिलें या विश्व मंच पर किसी विश्व नेता से, वह झप्पी जरूर देते हैं।” इस लेख का शीर्षक था, ‘कितना ही अटपटा क्यों न लगे, नरेंद्र मोदी झप्पी तो देकर रहेंगे’।

लेकिन चीन में तो झप्पी दिखी ही नहीं। वुहान से पहले मोदी जी चीन के राष्ट्रपति शी से शी जिनपिंग से शियामेन में ब्रिक्स सम्मेलन के दौरान मिले थे। उस वक्त भी सिर्फ हाथ ही मिले, झप्पी का मौका नहीं आया। इसी तरह पिछले साल जुलाई में हैम्बर्ग में हुए जी-20 शिखर सम्मेलन में भी दोनों के बीच झप्पी नदारद रही, और सिर्फ हैंडशेक ही हो पाया।

मोदी जी मई 2015 में भी चीन गए थे। उनकी तीन दिन की इस यात्रा में दोनों देशों ने सीमा विवाद समेत कई मुद्दों के राजनीतिक हल पर सहमति बनाई थी। लेकिन, झप्पी.... तब भी नहीं दिखी थी।

आपको सितंबर 2014 की वह तस्वीरें याद होंगी, जिनमें मोदी जी अहमदाबाद के साबरमति रिवर फ्रंट पर चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग के साथ झूले पर बैठे हैं। लेकिन इतनी आत्मीयता के बावजूद शी जिनपिंग ने झप्पी नहीं लेने दी थी, और मोदी जी ने सिर्फ फॉर्मल हैंडशेक ही किया था।

विश्लेषक भी यह सब देखते हैं, और कूटनीति में तो देहभाषा बहुत मायने रखती है। विश्लेषकों का कहना है कि दरअसल यह मामला कूटनीति से ज्यादा संस्कृति और रीति-रिवाजों का भी है। चीन के रीति-रिवाजों में ऐसे किसी भी शख्स से शारीरिक संपर्क करने से परहेज किया जाता है, जिससे वे अच्छी तरह वाकिफ नहीं होते।

हालांकि, कई बार ऐसे मौके भी दिखे हैं कि मोदी जी की झप्पी से अटपटी स्थिति भी पैदा हुई है, लेकिन मोदी जी कहां इस सब की परवाह करते हैं, झप्पी देनी है तो देनी है। लेकिन चीन के शी जिनपिंग अलग ही मिट्टी के बने हैं। वह अंग्रेजी में कहते हैं न, आर्मस लेंथ, हां उन्होंने तो मोदी जी को उतनी ही दूर रखा है।

चलिए, आपको मोदी जी की झप्पियों की कुछ तस्वीरें दिखा देते हैं, न, इन्हें फोटोशॉप मत समझिएगा, ये सारी तस्वीरें पीआईबी की हैं, पीआईबी तो सरकारी महकमा है

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