कोराना कहर नहीं, यह सामूहिक नरसंहार जैसा, समय मिलने के बावजूद हाहाकार की हालत पैदा की गई

इस बार पर्याप्त समय मिलने के बावजूद केंद्र ने कोई तैयारी ही नहीं की। इसलिए मार्च के आखिरी हफ्ते से ही जब वैक्सीन, रेमडेसिविर और ऑक्सीजन के लिए लोगों में हाहाकार मचना शुरू हुआ, तो सरकार इनकी कमी से ही इंकार करने लगी और विपक्ष-शासित प्रदेशों पर राजनीतिकरण का आरोप लगाने लगी।

फोटोः नवजीवन
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सुरेश बाना

कोविड-19 को जिस तरह क्रूर किस्म की लापरवाही के साथ संभाला जा रहा है, वह सामूहिक नरसंहार-जैसा ही है। जो दृश्य दिख रहे हैं, वे भयावह हैं: गुजरात में एक के ऊपर एक रखकर चार शव जलाने पड़े, जबकि गाजियाबाद में श्मशान घाट में अंत्येष्टि की जगह न मिलने पर वहां सीढ़ियों पर ही शव का अंतिम संस्कार करना पड़ा; कई जगह अस्पतालों में एक ही बेड पर दो कोविड पीड़ित लोग लिटाने पड़ रहे हैं; बीमार लोगों को लेकर उनके नाते-रिश्तेदार एक से दूसरे अस्पताल में भटक रहे हैं; न ऑक्सीजन मिल रही है, न रेमडेसिविर।

कोविड संक्रमण की दूसरी लहर पहली से तेज है। इससे मरने और बीमार होने वाले लोगों की संख्या में हम दुनिया में दूसरे नंबर पर हैं। हाल यह है कि 22 अप्रैल को भारत में 3 लाख से अधिक कोरोना मामले रिपोर्ट किए गए। किसी भी देश में इतने मामले एक दिन में नहीं आए। इस बार पर्याप्त समय मिलने के बावजूद दूसरी लहर की कोई तैयारी ही नहीं की गई। इसलिए मार्च के अंतिम सप्ताह से ही जब वैक्सीन, रेमडेसिविर और मेडिकल ऑक्सीजन के लिए लोगों में हाहाकार मचना शुरू हुआ, तो केंद्र सरकार इनकी कमी से ही इंकार करने लगी और विपक्ष-शासित प्रदेशों पर मामले के राजनीतिकरण का आरोप लगाने लगी।

इन सबकी भारी कमी, इनकी बड़े पैमाने पर चोरी, कालाबाजार में इनकी बिक्री, नकली माल बेचे जाने, और यहां तक कि रेमडेसिविर के चोरी-छिपे निर्यात की खबरें, जब जोर-शोर से चारों दिशाओं से आने लगीं, तब भी केंद्रीय स्वास्थ्य सचिव यह दावा करते रहे कि ‘रेमडेसिविर की कोई कमी नहीं है।’

बचकाने ढंग से नकारने के बाद सरकार आनन-फानन में कई कदम उठाने को बाध्य हुई। विपक्ष शासित महाराष्ट्र इस बार कोरोना से सबसे अधिक प्रभावित हुआ है। वहां मेडिकल ऑक्सीजन की घोर किल्लत होने लगी तो मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे ने प्रधानमंत्री कार्यालय को फोन मिलाया। उन्हें बताया गया कि मोदी चुनाव प्रचार के लिए बंगाल निकल गए हैं। इस बीच रेलवे मंत्री पीयूष गोयल बरस पड़े कि ‘महाराष्ट्र, दरअसल, इन दिनों अयोग्य और भ्रष्ट सरकार से पीड़ित है और केंद्र लोगों के भले के सारे उपाय कर रही है।’ बाद में, केंद्र सरकार ने 50,000 टन ऑक्सीजन के आयात की घोषणा की।


वहीं, देश में वैक्सिनेशन का अभियान 16 जनवरी को आरंभ हुआ। तब से सरकार दुनिया भर के 84 देशों को 6,450 लाख डोज वैक्सीन निर्यात कर ‘वैक्सीन डिप्लोमेसी’ में लग गई, जबकि भारत में 5,210 लाख डोज ही लगाए गए। इससे टीकाकरण के जरिये सामूहिक रोग प्रतिरोधक शक्ति हासिल करने का लक्ष्य ही पटरी से उतर गया। भारत में सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया (एसआईआई)-एस्ट्राजेनेका की कोविशील्ड और भारत बायोटेक के कोवैक्सीन का उत्पादन हो रहा है।

ऐसी ही स्थितियों की वजह से कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने वैक्सीन निर्यात पर रोक लगाने की मांग की। उन्होंने कहा कि इस बात का कोई स्पष्ट कारण नहीं है कि सरकार ने कोविड-19 टीकों के बड़े पैमाने पर निर्यात की अनुमति क्यों दी, जबकि हमारा देश टीकाकरण की कमी का सामना कर रहा है। उन्होंने जरूरत होने की वजह से दूसरे टीकों को भी अनुमति देने की मांग की। किसी भी बात पर बेवजह नाक फुलाकर बोलने के आदी केंद्रीय मंत्री रविशंकर प्रसाद इस पर आरोप लगाने लगे कि ‘वह फार्मा कंपनियों के लॉबिंग कर रहे हैं।’

यह बात दूसरी है कि इस मांग के दो दिनों बाद ही केंद्र सरकार ने वैक्सीन आयात की अनुमति दी। यही काम तीन हफ्ते पहले हो गया होता, तो वे काफी लोग बचाए जा सकते थे, जो दूसरी लहर में हमारे बीच से चले गए। इन सबके बीच महाराष्ट्र के एक मंत्री नवाब मलिक ने व्यंग्यपूर्ण ही सही, बहुत जरूरी बात कहीः ‘सभी वैक्सिनेशन प्रमाण पत्र पर प्रधानमंत्री की फोटो लगी है। उसी तरह कोविड के शिकार हुए सभी मृतकों के मृत्यु प्रमाण पत्र पर भी प्रधानमंत्री की तस्वीर लगाई जानी चाहिए।’

अब भी फोकस वह नहीं जो होना चाहिएः जगदीश रतनानी

सरकार का फोकस अब भी क्या है, इसे इन दो उदाहरणों से समझा जा सकता है। ऋषिकेश में अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) के एक एसोसिएट प्रोफेसर को विज्ञान और टेक्नोलॉजी विभाग ने अस्पताल में दाखिल कोविड मरीजों पर गायत्री मंत्र और प्राणायाम के प्रभावों पर अध्ययन के लिए पायलट प्रोजेक्ट के तहत राशि दी है। सरकारी दस्तावेज में कहा गया, ‘दुनिया भर को अपने शिकंजे में ले लेने वाली इस वैश्विक महामारी के उपचार/वैक्सीन के लिए वैज्ञानिक समय के साथ जूझ रहे हैं। ऐसी स्थिति में, प्राणायाम और गायत्री मंत्र का जाप जिनका दूसरे रोगों में उपयोग किया गया है और जिन्होंने असरकारी प्रभाव किए हैं, महत्वपूर्ण हो जाते हैं।’ हिंदू हों या गैर-हिंदू, करोड़ों लोग गायत्री मंत्र का जाप करते हैं, वे भी समझ जाएंगे कि किसी महामारी से जूझने के लिए यह कोई सबसे अच्छा रास्ता नहीं है।

दूसरी स्थिति पर नजर डालें। भारतीय सार्स-कोव-2 संगठन (इन्साकॉग) में 10 प्रयोगशालाएं हैं। इसे 2020 में शुरू किया गया। इतने कम समय में इसने भारत में वायरस के भिन्न-भिन्न वेरिएंट की पहचान की है। लेकिन इसे मार्च तक कोई राशि नहीं मिली थी। यह बात इसलिए चिंता पैदा करने वाली है क्योंकि माना जाता है कि विभिन्न वेरिएंट नई लहर लेकर आए हैं। वायरस जीनॉम की पहचान के लिए लगातार, योजनाबद्ध और समन्वित प्रयास शुरू करने में अब भी बहुत धीमी गति से काम किया जा रहा है। 24 मार्च को स्वास्थ्य मंत्रालय ने सूचना दी कि ‘हालांकि चिंता पैदा करने वाले वेरिएंट और एक नया लगातार बदलने वाला वेरिएंट भारत में पाया गया है। लेकिन ये इतनी संख्या में नहीं पाए गए जिससे पता चल सके कि कुछ राज्यों में मामलों के तेजी से बढ़ने के साथ इनका संबंध है या इससे इनका सीधा रिश्ता है।’

(जगदीश रतनानी का आलेख द बिलियन प्रेस से साभार)

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