बॉर्डर पर आंदोलनकारी ही नहीं, कुछ रोजगार के कारण भी बन रहे आंदोलन का हिस्सा, बेरोजगारों का छलका दर्द...

उत्तरप्रदेश के शामली जिले के निवासी शेखर शर्मा एयरपोर्ट पर नौकरी करते थे, लेकिन कोरोना काल में घर चले गए, नौकरी से निकाले जाने के बाद वे बेरोजगार हो गए, हालांकि किसान आंदोलन में उन्हें रोजगार मिला और वो अब यहां रोज की दिहाड़ी पर काम कर रहे हैं।

फोटो: Getty Images
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आईएएनएस

"मुझे किसान आंदोलन में खाना बनाना, बर्तन धोने और अन्य कामों के 500 रुपये दिहाड़ी मिलती है। साथ ही गांव के लड़के भी आए हुए हैं और सभी रोज की दिहाड़ी पर काम कर रहे हैं।" उत्तरप्रदेश के शामली जिले के निवासी शेखर शर्मा एयरपोर्ट पर नौकरी करते थे, लेकिन कोरोना काल में घर चले गए, नौकरी से निकाले जाने के बाद वे बेरोजगार हो गए, हालांकि किसान आंदोलन में उन्हें रोजगार मिला और वो अब यहां रोज की दिहाड़ी पर काम कर रहे हैं।

उन्होंने आगे बताया, "मैं बीते तीन साल से एयरपोर्ट पर काम करता था, लेकिन कोरोना काल में कंपनी ने नौकरी से निकाल दिया। घर में पिता नहीं है। मेरी मां और भाई हैं, उनका ध्यान रखने के लिए कुछ तो करना पड़ेगा।"

शेखर शर्मा ही नहीं बल्कि अन्य लोग भी किसान आंदोलन से ही अपना घर चला रहे हैं। बीते 82 दिनों से कृषि कानून के खिलाफ दिल्ली की सीमाओं पर किसानों का आंदोलन जारी है। ऐसे में हर कोई अपने हिसाब से आंदोलन का हिस्सा बन रहा है।

कोई लंगर की सेवा देकर आंदोलन का हिस्सा है तो कोई यहां काम करके, लेकिन कुछ लोगों के लिए आंदोलन उनके घर के अन्य लोगों के पेट पालने का सहारा बना हुआ है।


दरअसल किसान आंदोलन में पहले दिन से ही लंगर चल रहा है पंजाब, हरियाणा, उत्तरप्रदेश और उत्तराखंड के किसानों ने आंदोलन स्थलों पर लंगर सेवा शुरू की हुई है। सभी किसान अपने साथ महीनों के हिसाब से राशन लेकर आए हैं और लगातार आना जारी है।

सभी बॉर्डर पर रोजाना सैंकड़ों किसानों और अन्य लोगों का खाना बनता है, जगह जगह लंगर सेवा चल रही है। लाखों लोगों का खाना आंदोलन स्थल पर बैठे किसान खुद ही बना रहे हैं, लेकिन कहीं बावर्चियों और मजदूरों की भी मदद ली जा रही है।

गाजीपुर बॉर्डर पर भी कुछ इसी तरह का नजारा है, जहां एक तरफ किसान खुद ही लंगर चला रहे हैं, तो कुछ लंगरों पर बाहर से बावर्ची खाना बना रहे हैं, जिसके लिए उन्हें रोजाना के हिसाब से पैसे मिलते हैं।

उत्तरप्रदेश के बुलंदशहर निवासी अशोक ने बताया, "किसान आंदोलन में बीते एक महीने से मौजूद हूं, हर दिन काम करने के लिए 300 रुपए दिहाड़ी मिलती है। जिसमें मुझेसब्जी काटनी होती है, बर्तन धोने होते हैं।" "हमारा ठेकेदार हमारा हिसाब करता है, बॉर्डर पर हम यहां 8 लोगों की टीम आई हुई है और सभी को रोज के हिसाब से पैसे मिलते हैं।"

बुलंदशहर के ही चंद्रपाल को भी 500 रुपए दिहाड़ी मिलती है, उनका भी यही काम है सुबह से लेकर शाम तक किसानों के लिए खाना बनाना और बर्तन धोना। चंद्रपाल ने बताया, "15 दिन से यहीं हूं और रोजगार के लिए आया हूं।"

21 दिसंबर से बॉर्डर पर मौजूद अंजुल कुमार भी 500 रुपए दिहाड़ी पर काम कर रहे हैं। हालांकि वे अपने गांव में भी काम करते थे, लेकिन वे अपने साथियों के साथ यहां आए हैं और काम कर रहे हैं।

दरअसल तीन नए अधिनियमित खेत कानूनों के खिलाफ किसान पिछले साल 26 नवंबर से राष्ट्रीय राजधानी की विभिन्न सीमाओं पर विरोध प्रदर्शन कर रहे हैं। किसान उत्पाद व्यापार और वाणिज्य (संवर्धन और सुविधा) अधिनियम 2020, मूल्य आश्वासन और कृषि सेवा अधिनियम 2020 और आवश्यक वस्तु (संशोधन) अधिनियम, 2020 पर किसान सशक्तिकरण और संरक्षण समझौता हेतु सरकार का विरोध कर रहे हैं।

हालांकि सरकार और किसान संगठनों के बीच 11 दौर की वार्ता हुई, लेकिन सभी बातचितें बेनतीजा रही। ऐसे में किसान अपनी मांगों को लेकर अड़े हुए है और सरकार इन कानूनों में संशोधन की बात कर चुकी है।

यही कारण है कि किसान बोर्डरों से उठने का नाम नहीं ले रहे हैं, किसान सगठन साफ कर चुके हैं कि जब तक कानून वापसी नहीं तब तक घर वापसी नहीं।

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