अब वो पहले सी अयोध्या कोई मांगे तो कहां से लाऊं…

एक और खास बात दिखी इस बार। लोगों ने अपनी दुकानों और घरों पर प्रतीक चिन्ह बनवाए हैं। राम और बजरंग बली की आकृतियां, त्रिशूल और तिलक की आकृति। बड़ी और लाउड। ये इंसान की बनाई नई अयोध्या है जिसमें धर्म चारों ओर है। पुलिस बूथ और पीएसी बैंड के गीतों में भी।

अब वो पहले सी अयोध्या कोई मांगे तो कहां से लाऊं…
अब वो पहले सी अयोध्या कोई मांगे तो कहां से लाऊं…
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अनिकेत आनंद

करीब दो साल पहले यहां पहली बार आना हुआ था। तब ये एक परंपरागत शहर था। प्राचीनता की झलक लिए। गलियां खूब थीं, सड़कें भी थोड़ी पतली-पतली थीं। घर छोटे-बड़े हर आकार के थे। हर रंग के थे। लोग भी हर तरह के थे। बोलने बतियाने को तैयार। हनुमान गढ़ी वाली सड़क पर एक टेलर की दुकान थी। मुसलमान बुजुर्ग टेलर की दुकान। नाम इस वक्त याद नहीं। बातों बातों में उन्होंने बताया था कि कई साल से रामलला के कपड़े सिलते हैं। बाबरी मस्जिद के पीछे कहीं उनका घर था। किसी जमाने में उनके वालिद मस्जिद में नमाज पढ़ा करते थे। 

... आप रामलला को मानते हैं?? मैंने थोड़ा हिचकिचाते हुए पूछा था। उन्होंने बेलौस मुस्कुरा कर जवाब दिया, इसमें मानना क्या? वो राजा हैं हमारे। हम सबके। हम सब उनकी छत्र छाया में रहते हैं। 

मुझे अल्लामा इकबाल की याद आ गई थी। किसी ज़माने में उन्होंने अपनी जुबान में राम को इमाम ए हिंद कहा था।

खैर, इस मर्तबा जब प्राण प्रतिष्ठा से दो दिन पहले अयोध्या गए तो बुजुर्ग टेलर नहीं मिले। हो सकता है कहीं और दुकान खोल ली हो या अब नजर साथ न देती हो। फिर अब रामलला टेलर के बनाए कपड़े पहनेंगे भी नहीं। वो अब डिजाइनर कपड़े पहनेंगे। अयोध्या भी अब परंपराओं में डूबा प्राचीन शहर नहीं रहा। अयोध्या अब डिजाइनर सिटी है। गलियां लगभग खत्म हो गई हैं। सड़कें फोर लेन हो गई हैं। फ्लाइओवर बन गया है। यही सब तो तरक्की है... तो क्या ये गलत है? क्या विकास नहीं होना चाहिए? आखिर अयोध्या वेटिकन सिटी बनने जा रहा है। 

इस बार की अयोध्या यात्रा में ऐसा ही होता लगा। मसलन घर... सड़कें चौड़ी करने की कवायद में घर तोड़ दिये गए। तमाम घरों का अगला हिस्सा अब भी टूटा पड़ा है। 60 या 65 साल की रामवती से पूछा- ‘घर तोड़ने का मुआवजा मिला’, बोलीं ...बताया गया कि नजूल की जमीन पर घर बना था, इसलिए मुआवजा नहीं मिलेगा। तो अब आप घर कैसे बनाएंगी? रामवती टूटे छज्जे को देखती और कहती हैं ... नहीं बनवाएंगे। पड़ा रहेगा। बच्चे देखेंगे बाद में। टूट गया हमारा घर, कोई बात नहीं... रामलला का तो बन गया। इस बार रामवती मुस्कुराती हैं। 

सड़कें चौड़ी करने की कवायद में घर तोड़े गए
सड़कें चौड़ी करने की कवायद में घर तोड़े गए
अनिकेत आनंद

एक और खास बात दिखी इस बार। कभी कहा जाता था कि भारत विविधता का देश है, तरह तरह की संस्कृतियों-रंगों वाला। लेकिन कुछ लोगों को विविधता पसंद नहीं। इसीलिए सारे घर, दुकानें एक रंग में रंग गई हैं। हल्का भगवा रंग। खिड़कियां और दरवाजों की आउटलाइन गहरे भगवा रंग की है। एकाध घर या दुकान अलग रंग की भी दिख जाती हैं। मानो साफ कोई विभाजक रेखा हो कि ये हममें शामिल नहीं हैं, हम इनमें शामिल नहीं हैं। 

लोगों ने अपनी दुकानों और घरों पर प्रतीक चिन्ह बनवाए हैं। राम और बजरंग बली की आकृतियां, त्रिशूल और तिलक की आकृति। बड़ी और लाउड। ये इंसान की बनाई नई अयोध्या है जिसमें धर्म चारों ओर है। पुलिस बूथ और पीएसी बैंड के गीतों में भी।... राम लला आयेंगे, हिंदू राष्ट्र बनायेंगे जैसे गीत रिपीट मोड पर बज रहे थे। शायद अब भी बज रहे होंगे। इनकी तेज आवाज में मस्जिद की अज़ान दब गई थी। मंदिर की घंटियां भी।

लोगों ने दुकानों और घरों पर बनाए प्रतीक चिन्ह
लोगों ने दुकानों और घरों पर बनाए प्रतीक चिन्ह
अनिकेत आनंद

सरयू किनारे एक फोटो जर्नलिस्ट से मुलाकात हुई। कोलकाता से आए थे और माघ महीने में पवित्र नदियों के किनारे होने वाले स्नान, अनुष्ठान की तस्वीरें खींच रहे थे। पहले प्रयाग राज में थे अब अयोध्या में। मैंने पूछा- तो क्या खींचा फिर? वो बोले ... क्या खींचे? कई पुरानी इमारतें गिर गईं। गुम्बद सारे होटलों के पीछे छुप गए। सभी मंदिर एक रंग में हैं। पूरी स्काईलाइन ही खत्म हो गई है। 

ओह। तो मतलब जमीन के साथ साथ असमान से भी अयोध्या गायब है। जाहिर है कि होटल बने तो पुरानी इमारतें जिनमें अयोध्या की गमक थी, पीछे छुप गईं। कई तो गिर या गिरा भी दी गईं। वो फोटोग्राफर फिर बोले: खाना भी नहीं ठीक से खाया। इधर अभी सब बंद है।

बंद यानी, मांस मच्छी बंद। अंडे के ठेले भी नहीं दिखे। शायद पहले भी ये सब न बिकता रहा हो या प्राण प्रतिष्ठा के मद्देनजर बंद किया गया हो। लेकिन एक नए बने फोर स्टार होटल में तो बटर चिकन मिल रहा था। लोग खा भी रहे थे। फिर सड़क पर क्या दिक्कत है? ये सवाल किसी से पूछ नहीं सकते थे तो खुद ही जवाब ढूंढा। देखिए, राजू... बिल्लू या इस्माइल ठेले पर अंडा बेचेंगे तो अधर्म कहलाएगा। फोर स्टार होटल वाले चिकन बेचेंगे तो व्यापार कहलाएगा।

लोगों ने दुकानों और घरों पर बनाए प्रतीक चिन्ह
लोगों ने दुकानों और घरों पर बनाए प्रतीक चिन्ह
अनिकेत आनंद

एक धार्मिक पर्यटक से बातचीत हुई। उन्होंने बड़े चाव से पूछा कि लखनऊ कितनी दूर है? वो दक्षिण भारत से आए थे और टुंडे के कबाब खाना चाहते थे। मैंने कहा हो सकता है आप जब अगली बार आएं तो शायद यहीं अयोध्या में टुंडे मिल जाएं, पर्यटक बोले, ये कैसे हो सकता है। अयोध्या में कोई कबाब कैसे बेच सकता है? मैंने कहा वो देखिए डोमिनोज खुला है, वो चिकन पिज्जा बेच रहा है तो टुंडे कबाब क्यों नहीं बेच सकता।

एक और फोटोग्राफर से मुलाकात हुई। ये किसी अखबार के छायाकार थे। उन्होंने बताया कि वो 6 दिसंबर को भी अयोध्या में थे। उस दिन का नजारा बयां करना मुश्किल है। किसी तरह जान बचाई थी। कारसेवक हमारे कैमरे तोड़ रहे थे। हमें लगा सर टूट जाए लेकिन कैमरा न टूटे। कैमरा टूट गया तो बनवाएंगे कैसे? 

फिर... सर टूटा आपका या बचा? वो बोले नहीं टूटा, हमारा बच गया। एक साथी का टूट गया था। उसको ईंट उठानी थी, कह रहा था अम्मा को देंगे, वो मंदिर में रखेंगी। फिर हमने ही उसके लिए ईंट उठाई। मरहम पट्टी भी कराई। ये छायाकार, मुसलमान थे।

मैंने अगला सवाल पूछा, 32 साल पुरानी अयोध्या और इस अयोध्या में क्या अलग है? उन्होंने कहा, बहुत अलग है। तमाम मंदिर टूट गए हैं। पिछली बार आए थे कतार थी छोटे-छोटे मंदिरों की, इस बार बहुत ढूंढा, मिले नहीं। मैंने फिर पूछा, आपने मस्जिद टूटते देखी थी, अब मंदिर बनते देखा है? क्या फर्क लगा? उन्होंने कहा, कोई फर्क नहीं लगा। घर चलाना तब भी मुश्किल था, आज भी मुश्किल है।

अच्छी बात ये है कि अयोध्या में पान की कुछ दुकानें बची हैं। पान की दुकान पर थोड़ी देर रुको तो शहर का हाल मिल जाता है। इस दुकान पर भी ऐसा ही हुआ! बहुत कुछ सुनने-समझने को मिला। अयोध्या में बाजार समृद्ध हुए हैं। बड़े ब्रांड आ गए हैं। रिटेल इंडस्ट्री, फूड इंडस्ट्री आगे बढ़ी है। स्थानीय लोगों को काम भी मिला है। जाहिर है कि लोग इससे खुश हैं। लोगों ने रावायतदारी भी बनाकर रखी है। अभी भी दुकानदार आपको बैठने दे रहे हैं। मोबाइल चार्ज करने दे रहे हैं। सचेत भी कर रहे हैं.... एक दुकानदार बताते हैं मोबाइल खूब गायब हो रहे हैं, पॉकेट भी कट रही है। सावधानी जरूरी है। फिर हंसते भी हैं... बताइए, रामलला आ गए, फिर भी ये सब हो रहा है।


लोगों में एक सकपकाहट सी भी है। उनको लग रहा है कि तरक्की हो रही है, होते दिख रही है लेकिन क्या ये टिकेगी? एक बड़े होटल के मैनेजर का कहना है कि सुन रहे हैं ताज बनेगा। ओबेरॉय ने भी जमीन ली है लेकिन अब ओबेरॉय वाले होटल बनाने से मना करा रहे हैं। क्यों? मैनेजर साहब ने बताया कि देखिए अभी तो वीआईपी का जमावड़ा है, सेलेब आ रहे हैं, कुछ वक्त तक ये रहेगा। फिर अयोध्या वापस सामान्य दिनों जैसी होगी। लोग आएंगे दर्शन को।लेकिन उनमें मिडिल क्लास के लोग ज्यादा होंगे। मिडल क्लास ओबेरॉय या ताज में नहीं रुकेगा। उसे धर्मशालाएं या इकोनॉमिकल होटल चाहिए होंगे। 

थोड़ा कंफ्यूजन भी हुआ, अयोध्या धर्म नगरी की तरह बढ़ रही है या व्यापार नगरी की तरह। फिर याद आया कि अरे, अयोध्या तो वेटिकन सिटी बन रही है। लेकिन ये और भी कन्फ्यूजन वाली बात है क्योंकि वेटिकन सिटी शहर नहीं, देश है। शायद सबसे छोटा देश। स्वयं की सरकार, प्रशासन वाला देश। क्या अयोध्या में भी ऐसा होगा? वेटिकन सिटी का अपना संविधान है, वहां अंतरराष्ट्रीय नियमों का पालन होता है। अयोध्या में ये? वेटिकन सिटी की कुल जनसंख्या 700 या 800 के बीच है और अयोध्या की? वेटिकन सिटी में ईसाई धर्म के सर्वोत्तम स्तंभ पोप स्वयं रहते हैं। अयोध्या के आयोजन में हिंदू धर्म के सर्वोच्च स्तंभ शंकराचार्य जी आए भी नहीं।

क्या हम वेटिकन सिटी में रह सकते हैं? नहीं। केवल वो लोग जो किसी भी तरह वहां की कार्यप्रणाली या सुरक्षा का हिस्सा हैं, वो ही रह सकते हैं। क्या हम अयोध्या में रह सकते हैं...  बिलकुल रह सकते हैं। क्या हम बतौर पर्यटक वेटिकन सिटी में रह सकते हैं.. नहीं, वहां होटल या गेस्ट हाउस नहीं हैं। वहां आप रात नहीं गुजार सकते। लेकिन अयोध्या में दिन-रात होटल खुल रहे हैं। वेटिकन सिटी में आप शराब नहीं पी सकते। अयोध्या में शराब की दुकानें भी हैं, होटल में बार भी है, बस अभी लाइसेंस नहीं मिला है। 

शायद अर्थव्यवस्था के स्तर पर अयोध्या वेटिकन सिटी जैसी बने? लेकिन वेटिकन सिटी में अर्थव्यवस्था है ही नहीं। वहां का खर्च घोषित तौर पर टिकट, स्टांप और प्रतीक चिह्न की बिक्री से चलता है, अघोषित तौर पर कई जगह से पैसा आता है। वहां व्यापार जैसी कोई चीज नहीं है। ऐसे कई सवाल हैं ... लेकिन अयोध्या फिलहाल सोच नहीं रही है। अयोध्या में थिंक टैंक नहीं है। अयोध्या सिर्फ महसूस कर रही है। उत्साह, उल्लास और ढेर सारी रेलम पेल।


शाम हो चली थी। सरयू किनारे कुछ दीपमालाएं जगमगा रही थीं। महाराष्ट्र से आए एक दंपत्ति से मैंने पूछा रामलला कैसे लगे? उसने कहा साउथ इंडियन लग रहे हैं। उत्तर भारत की झलक कम है। यूपी में रहने वाले एक दक्षिण भारतीय प्रोफेसर से मुलाकात हुई। वो बहुत खुश थे। कह रहे थे अब हिंदू सुरक्षित हैं। मैंने पूछा किस्से सुरक्षित तो बोले मुसलमानों से। मेरी इच्छा थी मैं उनसे पूछूं कि 90 के दशक में मुंबई में जिस राजनीतिज्ञ ने आप दक्षिण भारतीयों का जीना हराम किया था क्या वो मुसलमान था?

जाने अंजाने पूरे अयोध्या में एक भाव तैर रहा था। भक्ति और श्रद्धा से बड़ा भाव। भाव कि भारत हिंदू राष्ट्र बन रहा है। हिंदू राष्ट्र में हिंदू सुख चैन से रहेंगे। कहां के हिंदू ? जवाब था .... अयोध्या के। उत्तर भारत के। पूरे देश के। 

मणिपुर के भी? अयोध्या में राम मंदिर बन गया है, लेकिन क्या अयोध्या और मणिपुर के बीच कोई रामसेतु बनेगा? मुझे याद आ रही हैं फैज़ अहमद फैज़ साहब की वो पंक्तियां जहां वो कहते हैं- “मुझसे पहले सी मुहब्बत मिरी महबूब न मांग…”

मैं सोच रहा हूं, अब पहले सी वो अयोध्या भी कोई मांगे तो कहां से लाऊं…!

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