गणतंत्र दिवस की पूर्व संध्या पर राष्ट्रपति ने किया देश को संबोधित, ‘पद्मावत’ विवाद पर भी परोक्ष रूप से किया हमला
राष्ट्रपति ने कहा कि किसी दूसरे नागरिक की गरिमा का उपहास किए बिना, किसी के नजरिये से या इतिहास की किसी घटना के बारे में हम असहमत हो सकते हैं। ऐसे उदारतापूर्ण व्यवहार को ही भाईचारा कहते हैं।
![फोटोः IANS](https://media.assettype.com/navjivanindia%2F2018-01%2F1ff2da62-9d7f-44f6-be4d-25ac7f259b79%2Ffe7807aa-cecf-4508-be5f-4d38279a8441.jpg?rect=0%2C0%2C650%2C366&auto=format%2Ccompress&fmt=webp)
गणतंत्र दिवस की पूर्व संध्या पर राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने राष्ट्र के नाम अपना पहला संदेश दिया है। राष्ट्रपति ने अपने संदेश में कहा कि बराबरी के इस आदर्श ने आजादी के साथ मिले स्वतंत्रता के आदर्श को पूर्णता प्रदान की है। उन्होंने कहा कि एक तीसरा आदर्श, जो भाईचारे का आदर्श है, हमारे लोकतंत्र के निर्माण के सामूहिक प्रयासों को और हमारे सपनों के भारत को सार्थक बनाता है।
राष्ट्रपति कोविंद ने 25 जनवरी की शाम को अपने संदेश में विवादित फिल्म 'पद्मावत' के खिलाफ जारी विरोध प्रदर्शनों को लेकर परोक्ष रूप से हमला किया। राष्ट्रपति ने कहा कि असहमति में किसी साथी नागरिक की गरिमा व निजता का मजाक नहीं बनाया जाना चाहिए। राष्ट्रपति ने कहा, "मुहल्ले, गांव और शहर के स्तर पर सजग रहने वाले नागरिकों से ही एक सजग राष्ट्र का निर्माण होता है। हम अपने पड़ोसी के निजी मामलों और अधिकारों का सम्मान करते हैं। त्योहार मनाते हुए, विरोध प्रदर्शन करते हुए या किसी और अवसर पर, हम अपने पड़ोसी की सुविधा का ध्यान रखें।" उन्होंने कहा, "किसी दूसरे नागरिक की गरिमा और निजी भावना का उपहास किए बिना, किसी के नजरिये से या इतिहास की किसी घटना के बारे में हम असहमत हो सकते हैं। ऐसे उदारतापूर्ण व्यवहार को ही भाईचारा कहते हैं।"
कुछ संगठनों द्वारा फिल्म पद्मावत के खिलाफ की जा रही हिंसा की पृष्ठभूमि में राष्ट्रपति ने यह बात राष्ट्र के नाम अपने पहले संबोधन में कही। श्री राजपूत करणी सेना इस फिल्म का यह कह कर विरोध कर रही है कि इसमें राजपूत रानी पद्मावती को सम्मानजक तरीके से नहीं दिखाया गया है।
अपने संदेश में राष्ट्रपति ने कहा कि संविधान का निर्माण करने, उसे लागू करने और भारत के गणराज्य की स्थापना करने के साथ ही, हमने वास्तव में ‘सभी नागरिकों के बीच बराबरी' का आदर्श स्थापित किया, चाहे हम किसी भी धर्म, क्षेत्र या समुदाय के क्यों न हों। उन्होंने कहा कि हमारे संविधान के मूल्यों में भाइचारे की भावना देखी जा सकती है। हमारा समाज, इन्हीं सिद्धांतों पर आधारित है। और यही आदर्श हम विश्व समुदाय के सामने भी प्रस्तुत करते हैं।
राष्ट्रपति ने आगे कहा कि भारत के राष्ट्र निर्माण के अभियान का एक अहम उद्देश्य एक बेहतर विश्व के निर्माण में योगदान देना भी है। उन्होंने कहा कि यही ‘वसुधैव कुटुम्बकम्' का वास्तविक अर्थ है। उन्होंने कहा कि यही भावना हम प्रवासी भारतीय परिवारों के विषय में भी अपनाते हैं। जब विदेशों में रहने वाले भारतीय, किसी परेशानी में घिर जाते हैं तब हम उनकी मदद करने के लिए आगे आते हैं।
राष्ट्रपति ने अपने संदेश में संपन्न लोगों से गरीबों के लिए त्याग करने की भी बात की। उन्होंने ऐसे राष्ट्र पर जोर दिया जहां संपन्न परिवार अपनी इच्छा से सुविधाओं का त्याग कर देता है। आज यह सब्सिडी वाली एलपीजी हो, या कल कोई और सुविधा, ताकि इसका लाभ किसी जरूरतमंद परिवार को मिल सके। उन्होंने कहा कि नि:स्वार्थ भावना वाले नागरिकों और समाज से ही, एक नि:स्वार्थ भावना वाले राष्ट्र का निर्माण होता है। देश का हर-एक युवा, हर-एक बच्चा देश के लिए नए सपने देख रहा है जिसमे हमारे देश की ऊर्जा, आशाएं, और भविष्य समाए हुए हैं। उन्होंने कहा कि दान देने की भावना, हमारी युगों पुरानी संस्कृति का हिस्सा है। आइए, हम इसे मजबूत बनाएं।
राष्ट्रपति ने कहा कि अनुशासित और नैतिकतापूर्ण संस्थाओं से एक अनुशासित और नैतिक राष्ट्र का निर्माण होता है। ऐसी संस्थाएं, अन्य संस्थाओं के साथ, अपने भाई-चारे का सम्मान करती हैं।ऐसी संस्थाओं में, वहां काम करने वाले लोगों की नहीं बल्कि संस्था की महत्ता सबसे ऊपर होती है। इन संस्थाओं के सदस्य, देशवासियों के ट्रस्टी के रूप में, अपने पद की अपेक्षाओं पर खरे उतरते हैं।
राष्ट्रपति ने अपने संबोधन में बच्चों के स्वास्थ्य, पोषण, गुणवत्तापूर्ण शिक्षा, महिलाओं को न्याय दिलाने की सरकार की पहल का भी उल्लेख किया।
उन्होंने अपने संदेश में कहा कि देशवासियों की सेवा करने वाली हर नर्स, सफाई कार्य में लगा हर स्वच्छता कर्मचारी, हर अध्यापक, नवोन्मेष से जुड़ा हर वैज्ञानिक, देश को नया स्वरूप प्रदान करने वाला हर इंजीनियर, देश की रक्षा में लगा हर सैनिक, देशवासियों की पेट भरने वाला हर किसान, सुरक्षा में लगा हर पुलिस और अर्ध-सैनिक बल का जवान, पालन पोषण करने वाली हर मां, उपचार करने वाला हर डॉक्टर एवं अन्य लोगों का राष्ट्र निर्माण में अहम योगदान है।
राष्ट्रपति ने कहा कि यह उन लाखों स्वतंत्रता सेनानियों के महान प्रयासों और बलिदानों को याद करने का दिन है, जिन्होंने अपना खून-पसीना एक कर हमें आजादी दिलाई, और हमारे गणतंत्र का निर्माण किया। आज का दिन हमारे लोकतान्त्रिक मूल्यों को नमन करने का भी दिन है।
उन्होंने कहा कि वर्ष 2020 में हमारे गणतंत्र को 70 साल हो जाएंगे। 2022 में, हम अपनी स्वतंत्रता की 75वीं वर्षगांठ मनाएंगे। स्वतंत्रता सेनानियों और संविधान के निर्माताओं द्वारा दिखाए रास्तों पर चलते हुए हमें एक बेहतर भारत बनाने के लिए प्रयास करना है ।
उन्होंने कहा कि सामाजिक और आर्थिक रूप से पिछड़े हुए लोगों के जीवन को खुशहाल बनाना ही हमारे लोकतंत्र की सफलता की कसौटी है। गरीबी के अभिशाप को जड़ से मिटा देना हमारा पुनीत कर्तव्य है। यह कर्तव्य पूरा करने पर ही हम संतोष का अनुभव कर सकते हैं।
राष्ट्रपति ने कहा कि हम सबका सपना है कि भारत एक विकसित देश बने। उस सपने को पूरा करने के लिए हम आगे बढ़ रहे हैं। हमारे युवा अपनी कल्पना, आकांक्षा और आदर्शों के बल पर देश को आगे ले जाएंगे।
अंत में राष्ट्रपति ने कहा, “मैं एक बार फिर आप सभी को गणतंत्र दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं देता हूं, और आप सभी के उज्ज्वल और सुखद भविष्य की मंगल-कामना करता हूं। धन्यवाद। जय हिन्द!”
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