बेशक हमारे सैनिक बेहतर प्रशिक्षित और अनुभवी हों, लेकिन आसान नहीं है चीनी कब्जे से जमीन खाली करा लेना

चीन की पीएलए के पास सैनिकों. टैंक, बख्तरबंद वाहन, मिसाइल, लड़ाकू विमान आदि भारत के मुकाबले कहीं अधिक हैं। लेकिन इससे भी बढ़कर उसके पास उन्नत तकनीक है जिसका उसे ज्यादा फायदा मिल सकता है।

फोटो : Getty Images
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प्रवीण साहनी

अगर अमेरिका के सर्वोच्च सैन्य अधिकारी- ज्वाइंट चीफ्स ऑफ स्टाफ कमेटी दक्षिण चीन सागर के मामले में चीन को सैन्य कार्रवाई की धमकी देते, तय मानिए कि पीपुल्स लिबरेशन आर्मी (पीएलए) की ओर से इसका उचित जवाब जरूर दिया जाता। लेकिन भारत के चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ जनरल बिपिन रावत ने हाल ही में कहा कि अगर लद्दाख में भारत-चीन की वार्ता विफल रहती है तो सैन्य कार्रवाई का विकल्प है, तो इस पर पीएलए एकदम से मौन है। ऐसा क्यों?

इसका बड़ा सीधा-सा कारण हैः आधुनिक प्रौद्योगिकियों के जानकार भली-भांति जानते हैं कि या तो जनरल रावत जुमलेबाजी कर रहे हैं या फिर आज युद्ध के पूरी तरह बदल चुके चरित्र से वह पूरी तरह नावाकिफ हैं। प्रौद्योगिकियों और ऑपरेशन या युद्ध लड़ने की कला के मामले में भारतीय सेना और चीन की पीएलए के बीच जो विशाल अंतर है, उसे शायद 1991 के खाड़ी युद्ध के उदाहरण से बेहतर समझा जा सकता है। खाड़ी युद्ध 43 दिनों तक चला जिसमें से जमीनी मुकाबला मात्र 100 घंटे का था जो अनिवार्य रूप से ऑपरेशन को समाप्त करने के लिए था। पड़ोसी देश ईरान के साथ एक दशक लंबी लड़ाई का अनुभव रखने वाली इराकी सेना के जाबांज रिपब्लिकन गार्ड्स अमेरिकी प्रौद्योगिकी के सामने बिना लड़ाई लड़े बुरी तरह हार गए थे।

दुनिया, विशेष रूप से पीएलए को अमेरिका की ‘स्टील्थ तकनीक, गाइडेड युद्धक सामग्री, और इनसे भी ज्यादा युद्ध नेटवर्क (सेंसर, निशानेबाजों और कमांड पोस्ट के बीच वास्तविक समय की कनेक्टिविटी) पर आधारित युद्ध लड़ने की रणनीति देखकर मानो काठ मार गया। पीएलए ने तत्काल समझ लिया कि अमेरिकी सैन्य प्रौद्योगिकीय क्षमताओं का मुकाबला कर सकने वाला तकनीकी, वैज्ञानिक-औद्योगिक बुनियादी ढांचा और पैसा उसके पास नहीं है। लेकिन चीन ने इसकी तोड़ निकाली। युद्ध में समय पर निर्णय लेना सबसे अहम होता है और इसके लिए उसने सिस्टम डिस्ट्रक्शन वारफेयर, यानी ऐसी व्यवस्था विकसित की जो अमेरिका के युद्ध नेटवर्क कमांड, कंट्रोल, संचार और निगरानी प्रणाली को या तो काम ही न करने दे या फिर उसे सूचना इकट्ठा करने में देरी हो।

चीन ने यह क्षमता साइबर और इलेक्ट्रॉनिक युद्ध कौशल और मिसाइलों (बैलिस्टिक और क्रूज) पर ध्यान केंद्रित करके विकसित की। वर्ष 2000 के शुरू में ही चीन के पास असासिन्समेस, यानी दुश्मन की सूचना व्यवस्था को ठप करके उसे अचानक और पूरी तरह से अक्षम कर देने की क्षमता आ गई थी। दुश्मन से सीधे लड़ने के बजाय उसे पंगु बना देने की चीन की इस क्षमता ने अमेरिकी सेना का ध्यान अपनी ओर खींचा। अमेरिका को इससे भी तेज झटका 2012 में उस समय लगा जब उसे पता चला कि आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (एआई) और 11 आधुनिक अवरोधात्मक प्रौद्योगिकी में भी चीन उसका एक बड़ा प्रतिस्पर्धी बन गया है और जाहिर है कि इन क्षमताओं के कारण समृद्धि के लिए चौथी औद्योगिक क्रांति की राह पर चलते हुए बीजिंग युद्ध-कौशल और भू-राजनीति को बदल देने जा रहा है।


चीन की ताकत को नया आयाम देने वाली ये प्रौद्योगिकियां हैंः माइक्रो इलेक्ट्रॉनिक, साइबर तकनीक, 5-जी वायरलेस संचार, अंतरिक्ष, हाइपरसोनिक, निर्देशित ऊर्जा हथियार, नेटवर्क संचार, मिसाइल रक्षा, क्वांटम तकनीक और परमाणु परीक्षण। और तो और, माना जाता है कि 5-जी, आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस और क्वांटम-जैसी कुछ तकनीकों में तो चीन ने अमेरिका को भी पीछे छोड़ दिया है। चीन की इस प्रौद्योगिकीय उन्नति का ही असर था कि अमेरिका ने 2014 में रोबोटिक्स, ऑटोनोमी और मानव- मशीन फ्यूजन पर ध्यान केंद्रित करने के लिए अपनी तीसरी ऑफसेट रणनीति की घोषणा की। चीन की चुनौती का सामना करने के लिए ही अमेरिका ने यह तीसरी ऑफसेट रणनीति पर आगे बढ़ने का फैसला किया और यह चीन की युद्ध कौशल के लिए तकनीक प्रेरित उन्नति का स्पष्ट प्रमाण था।

दुर्भाग्य है कि भारत के वरिष्ठ सैन्य अधिकारी 1990 के बाद के महत्वपूर्ण 30 वर्षों तक पाकिस्तान और आतंकवाद-रोधी अभियानों में उलझे रहे और चीन से लगती वास्तविक नियंत्रण रेखा पर पीएलए की बढ़ती चुनौतियों से मुंह मोड़े रहे। यह बात खास तौर पर जनरल रावत के मामले में एकदम सटीक बैठती है जिन्हें दिसंबर, 2016 में इसलिए सेना प्रमुख बनाया गया क्योंकि आतंकवाद विरोधी ऑपरेशंस में उन्हें कथित तौर पर विशेषज्ञता हासिल थी।

पीएलए और पाकिस्तान की सेना में बहुत अंतर है इसलिए यह बात शीशे की तरह साफ है कि चीन को रोकने के लिए युद्ध का एकदम नया खाका तैयार करना होगा। भारतीय सेना बहादुरी के साथ युद्ध लड़ने वाली अनुभवी सेना है और यह तय है कि पीएलए भारतीय सेना की इस ताकत से दो-दो हाथ नहीं करेगा। इसके बजाय वह युद्ध को अपनी ताकत के मुताबिक लड़ेगा, यानी उसकी युद्ध रणनीति तकनीक आधारित होगी। जब सीडीएस रावत ने चीन को धमकी दी तो उन्होंने पीएलए की युद्ध लड़ने की क्षमताओं में हुई बेतहाशा वृद्धि को नजरअंदाज कर दिया। उन्हें और ज्यादातर विश्लेषकों को यह बात समझ में नहीं आ रही कि 2017 के डोकलाम और 2020 के लद्दाख संकट में जमीन-आसमान का अंतर है।

यह मानते हुए कि जनरल रावत लापरवाह हैं और वह पूर्वी लद्दाख में कब्जे वाले इलाके को खाली कराने के मकसद से पीएलए पर दबाव डालने के लिए 3,488 किमी लंबे एलएसी पर एक नया मोर्चा खोलने का फैसला करेंगे, यह बात अच्छी तरह समझ लेनी चाहिए कि जैसे ही भारत की ओर से पहली गोली चली, चीन की ओर से तत्काल एक साथ चार मोर्चे पर जवाबी कार्रवाई का होना तय है। वैसी स्थिति में चीन युद्ध के निर्दिष्ट क्षेत्र से बाहर जाकर कार्रवाई करेगा। तब एक ऐसा बड़ा साइबर हमला संभव है जो पूरे देश को प्रभावित कर दे।


चूंकि चीनी कंपनियां भारत के दूरसंचार, बिजली, सूचना और संचार से लेकर रक्षा ग्रिड से भी जुड़ी हुई हैं, इसलिए सहज ही अंदाजा लगाया जा सकता है कि युद्ध के आभासी मैदान में एक साइबर युद्ध वास्तव में क्या कुछ कर जाएगा। इस तरह का युद्ध दुनिया ने अब तक देखा भी नहीं है। पूरे व्यावसायिक और वित्तीय क्षेत्र में घबराहट, भय और अफरा-तफरी का माहौल होगा और सरकार को समझ में नहीं आ रहा होगा कि क्या करे।

पीएलए की ओर से दूसरा संभावित हमला होगा कमांड और संचार प्रणाली पर। चीन की सर्वोच्च सैन्य नीति निर्धारक निकाय सेंट्रल मिलिट्री कमीशन इस रणनीति को अपने मातहत दो प्रमुख संगठनों के जरिये अंजाम देगा। ये संगठन हैंः साइबर, स्पेस, इलेक्ट्रॉनिक और मनोवैज्ञानिक क्षमताओं से युक्त स्ट्रैटेजिक सपोर्ट फोर्स और रॉकेट फोर्स जिसके तहत सभी बैलिस्टिक, क्रूज और हाइपरसोनिक मिसाइल आती हैं। ऐसी स्थिति में माना जा सकता है कि भारत के अंतरिक्ष उपग्रह साइबर मालवेयर हमलों से लेकर पीएलए की उप-कक्षीय उपग्रहों को पंगु बनाने और उपग्रह-विरोधी क्षमताओं के निशाने पर होंगे। इसके साथ ही कमांड सेंटर, विभिन्न फील्ड मुख्यालय, एयरफील्ड और महत्वपूर्ण सूचना उपलब्ध कराने वाले केंद्रों पर भी हमले किए जाएंगे।

मोटे तौर पर पीएलए का लक्ष्य होगा समय पर निर्णय लेने के लिए जरूरी सूचनाओं से भारतीय सेना को वंचित कर देना। इसका नतीजा यह होगा कि युद्ध के दौरान निर्णय लेने के मामले में पीएलए को अहम बढ़त मिल जाएगी और वह तेजी से सटीक कार्रवाई कर सकेगी। महत्वपूर्ण बात यह है कि पीएलए ने आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस तकनीक से अपने हथियारों को लैस कर रखा है। इसका असर युद्ध लड़ने के हर पहलू पर पड़ेगा- तेज और सटीक जानकारी पाने, टोही और निगरानी से लेकर त्वरित कार्रवाई तक।

आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस का विकास अभी आरंभिक चरण में है लेकिन ये दो उदाहरण यह समझने के लिए काफी हैं कि युद्ध में इनका इस्तेमाल किस तरह हो सकता है। इसका सीधा मतलब है कि क्रूज मिसाइल बिना नियंत्रण के खुद ही इतनी सक्षम होंगी कि लक्ष्य को खोजकर उसे खत्म कर सकें। इसके अलावा पीएलए ने बड़ी संख्या में ड्रोन या मानवरहित हवाई वाहनों को नियंत्रित करने वाले एक उन्नत जमीनी स्टेशन की क्षमता का भी प्रदर्शन किया है।

कुल मिलाकर यह यह निश्चित है कि उन्नत प्रौद्योगिकी क्षमता के मुकाबले खड़ी भारतीय प्रशिक्षित सेना पीएलए को कब्जे वाले क्षेत्रों से बेदखल नहीं कर सकेगी। वही वजह है जो जनरल रावत की चेतावनी को हवा-हवाई बनाती है।

(लेखक सैन्य मामलों के विशेषज्ञ और फोर्स पत्रिका के संपादक हैं)

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