मोदी सरकार की उज्ज्वला योजना का यूपी में निकला धुआं, जेब पर भारी पड़ रहा सिलिंडर रिफिल, चूल्हा फूंक रही महिलाएं

स्थिति यह है कि उज्जवला के 70, तो सामान्य कनेक्शन वाले 20 फीसदी लोग सिलिंडर रिफिल नहीं करा पा रहे हैं। कुछ लाख उपभोक्ताओं को ही 59 रुपये की सब्सिडी मिल रही है। ज्यादातर या तो खुद सब्सिडी नहीं ले रहे हैं या सिस्टम ने उन्हें आउट कर दिया है।

फोटो : सोशल मीडिया
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के संतोष

मोदी सरकार ने उज्जवला योजना को यह कहकर पेश किया था कि ग्रामीण औरतों को लकड़ी पर खाने बनाने के दौरान निकलने वाले धुएं से निजात मिलेगी और उन्हें सांस की बीमारियों से दो-चार होना नहीं पड़ेगा। इसका पर्यावरणीय फायदा भी था। लेकिन जमीन पर आते ही यह योजना धाराशायी हो गई। जो हालत यूपी की है, वही देश के अन्य इलाकों की भी। स्थिति यह है कि उज्जवला के 70, तो सामान्य कनेक्शन वाले 20 फीसदी लोग सिलिंडर रिफिल नहीं करा पा रहे हैं। कुछ लाख उपभोक्ताओं को ही 59 रुपये की सब्सिडी मिल रही है। ज्यादातर या तो खुद सब्सिडी नहीं ले रहे हैं या सिस्टम ने उन्हें आउट कर दिया है।

हजार पार गैस सिलिंडर ने उज्ज्वला के लाभार्थियों के किचन से गैस को ‘आउट’ कर ही दिया है, अब तो सामान्य कनेक्शन वाले भी रिफिलिंग से तौबा कर रहे हैं। गैस एजेंसियों के लोग कह रहे हैं कि शहरों में 10 से 15, तो कस्बों-गांवों में 40 फीसदी से अधिक लोगों ने खाना पकाने के पुराने विकल्प को अपना लिया है। लकड़ी और उपले पर निर्भरता बढ़ी है। ग्रामीण और कस्बाई इलाकों में इंडक्शन स्टोव पर निर्भरता बढ़ रही है। इससे बिजली निगम का बोझ बढ़ रहा है। लेकिन चुनाव नजदीक हैं इसलिए वे वसूली का दबाव नहीं बना सकते।

यूपी में एलपीजी उपभोक्ताओं की संख्या 4,26,33,197 हो गई है। इनमें उज्ज्वला योजना के लाभार्थियों की संख्या 1.47 करोड़ है। अब दूसरे चरण में 20 लाख कनेक्शन दिए जा रहे हैं। रसोई गैस की कीमत 962 रुपये पहुंच गई है। इसमें होम डिलिवरी चार्ज शामिल होता है। लेकिन कई जगह हॉकर लोगों से 40 से 60 रुपये अतिरिक्त वसूली करते हैं।

स्थिति यह है कि उज्जवला के 70, तो सामान्य कनेक्शन वाले 20 फीसदी लोग सिलिंडर रिफिल नहीं करा पा रहे हैं। कुछ लाख उपभोक्ताओं को ही 59 रुपये की सब्सिडी मिल रही है। ज्यादातर या तो खुद सब्सिडी नहीं ले रहे हैं या सिस्टम ने उन्हें आउट कर दिया है।

प्राइवेट कंपनी में काम करने वाले आजमगढ़ के दिनेश यादवके परिवार में पांच सदस्य हैं। वह बताते हैं कि ‘एक सिलिंडर 25 से 30 दिन चलता है। ठंड में इसकी खपत बढ़ जाती है। पहले 700 रुपये में सिलिंडर रिफिल होता था, तो सब्सिडी 200 रुपये तक मिल जाती थी। अब 1,020 रुपये में सिलिंडर लेने पर एक रुपया नहीं मिल रहा। पूछने पर एजेंसी वाला कहता है कि सबकुछ सिस्टम से आ रहा है।’ आग में घी यह कि तेल कंपनियां गैस एजेंसियों को नवंबर में सिलिंडर रिफिल में 150 रुपये तक बढ़ोतरी का संकेत दे रही हैं।

महराजगंज जिले के गैस एजेंसी के मालिक शकील अहमद कहते हैं कि ‘जंगल किनारे रहने वालों ने लकड़ी की उपलब्धता के चलते सिलिंडर रिफिल कराना छोड़ दिया है। एजेंसी के 5,000 उज्ज्वला कनेक्शन में से बमुश्किल 1,000 भी रिफिल नहीं हो रहे हैं। सामान्य कनेक्शन की रिफिलिंग भी 97 से घटकर 65 से 70 फीसदी पर पहुंच गई है।’ महंगाई की मार से एजेंसी वाले भी जूझ रहे हैं। गोरखपुर में एजेंसी मालिक विनय शुक्ला कहते हैं कि ‘पांच साल पहले भी एक सिलिंडर के एवज में 32 रुपये कमीशन मिलता था, इसमें कोई बढ़ोतरी नहीं हुई। कर्मचारियों का वेतन और लेबर की मजदूरी में दोगुने का इजाफा हो गया है।’ वहीं नौतनवा में गैस एजेंसी के मैनेजर धनंजय कहते हैं, ‘नगरपालिका क्षेत्र के 20 फीसदी उपभोक्ता रीफिल नहीं कर रहे हैं।’ सिद्धार्थनगर के हसुड़ी ग्राम सभा में शत-प्रतिशत गैस कनेक्शन है। यहां के ग्राम प्रधान दिलीप तिवारी हकीकत बयां करते हुए कहते हैं कि ‘गांव में 278 गैस कनेक्शन हैं। ग्रामीणों को छह हजार किसान सम्मान निधि का मिल रहा है। वहीं फ्री के राशन को बेचकर एक परिवार को 500 से ऊपर मिल जा रहा हैं। सिलिंडर मेहमानों के आने पर निकल रहा है। खाना ज्यादातर लकड़ी और उपले पर ही पक रहा है।’

गोरखपुर के गोला कस्बे के आरा मशीन के मालिक सत्यपाल पांडेय बताते हैं कि ‘जलौनी लकड़ी की मांग बढ़ी है। ईट-भट्टों पर जहां थोक भाव में ढाई से तीन रुपये में लकड़ी सप्लाई हो रही है, वहीं फुटकर में पांच रुपये किलो बिक रहा है।’ बस्ती जिले के परसा लगड़ा गांव के पूर्व प्रधान सीताराम का कहना है कि ‘जंगल के नजदीक के गांव वालों को तो लकड़ी की दिक्कत नहीं है। वहीं लोग गोबर से उपला पाथ रहे हैं।’


लोग खरीद रहे इंडक्शन

इन स्थितियों में ग्रामीण इलाकों में बिजली वाले इंडक्शन स्टोव की मांग में जबरदस्त इजाफा हुआ है। इंडक्शन के थोक बिक्रेता राजीव रस्तोगी का कहना है कि ‘सिर्फ दो महीने में ग्रामीण इलाकों में 50 फीसदी तक इंडक्शन की मांग बढ़ी है। कंपनियां डिमांड पूरी नहीं कर पा रही हैं। कम बिजली खपत के लिए अब 500 से लेकर 1,500 वाट में इंडक्शन आ रहा है।’ एशिया के सबसे बड़े गांव में शुमार गहमर के अरविंद सिंह का कहना है कि ‘दोनों टाइम का खाना पकाने में 3 से 4 यूनिट बिजली खर्च होता है। ऐसे में 20 से 25 रुपये में खाना पक जाता है। सिलेंडर के मुकाबले महीने में 250 रुपये तक की बचत हो जाती है।’

इसका असर बिजली निगम पर पड़ेगा। गोरखपुर जोन में 8.50 लाख विद्युत कनेक्शन हैं। इनमें से सिर्फ 56 हजार घरों में स्मार्ट मीटर लगा है। निगम के एक इंजीनियर का कहना है कि ‘तमाम घरों में लगे मीटर चालू नहीं हैं। उपभोक्ता फिक्स्ड चार्ज देते हैं। इनके लिए इंडक्शन स्टोव मुफीद साबित हो रहे है।’ लोग इंडक्शन पर खाना तो पका रहे हैं लेकिन बिजली बिल का भुगतान नहीं कर रहे हैं।

यूपी में 25 हजार करोड़ से अधिक का बिजली बिल बकाया है। सिर्फ गोरखपुर मंडल के 15.52 लाख उपभोक्ताओं पर 3,756 करोड़ रुपये का बकाया है। इनमें 9 लाख से अधिक बकायेदार ग्रामीण इलाकों के हैं। गोरखपुर जोन के मुख्य अभियंता राजेन्द्र प्रसाद का कहना है कि ‘बिजली आपूर्ति में सुधार और कनेक्शन बढ़ने के बाद बकाया का संकट खड़ा हो गया है। ग्रामीण इलाकों में बकायेदार काफी अधिक हो गए हैं।’ वहीं आगरा जोन के 36 लाख उपभोक्ताओं पर 5,000 करोड़ रुपये से अधिक बिजली बिल का बकाया है। बकायेदारों में 31.34 लाख ग्रामीण उपभोक्ता हैं। इन पर साढ़े चार हजार करोड़ का बकाया है। विधानसभा चुनावों को देखते हुए मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने बकाएदारों के जबरन वसूली कर उत्पीड़न पर रोक लगा दी है। ऐसे में बिजली निगम मुश्किल में फंस गया है। आगरा जोन में डीवीवीएनएल के प्रबंध निदेशक अमित किशोर का कहना है कि ‘30 नवंबर तक चलने वाले ओटीएस स्कीम से वसूली का प्रयास किया जा रहा है। ग्रामीण इलाकों में बिजली की खपत बढ़ी है। रिकवरी का प्रयास हो रहा है।’

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